रायगढ़

सूरजगढ़वासियों ने बाढ़ के अभिशाप को बना लिया वरदान
18-Mar-2023 4:46 PM
सूरजगढ़वासियों ने बाढ़ के अभिशाप को बना लिया वरदान

पानी उतरने पर टापू में जमकर करते हैं खेती

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 18 मार्च। 
रायगढ़ जिले के पुसौर ब्लाक के अंतर्गत आने वाले ग्राम सूरजगढ़ वासियों के लिये जहां महानदी बरसात के दिनों में कहर बनकर टूटती है वहीं बरसात का पानी उतरते ही यही महानदी कई किसानों के लिये वरदान भी साबित होती है। गांव के ग्रामीण महानदी के बीच में बने टापू में बीते कई सालों से खेती करते हुए हर प्रत्येक किसान हजारों से लाखों रूपये की कमाई करते आ रहे हैं।

रायगढ़ जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर महानदी के किनारे बसे गांव सूरजगढ़ की जनसंख्या करीब 400 सौ के आसपास है। हर साल बरसात के दिनों में महानदी में आने वाली बाढ़ की वजह से जिला प्रशासन के द्वारा गांव को पूरी तरह से खाली करवाकर उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाता है। बाढ़ के पानी से यहां रहने वाले ग्रामीणों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

वहीं बरसात का पानी उतरते ही यही महानदी उनके लिये वरदान बन जाती है। वैसे तो इस गांव में रहने वाले किसानों के पास उनकी खुद की जमीन है, लेकिन फिर भी महानदी का पानी कम होते ही गांव के अधिकांश किसान नाव के सहारे महानदी के बीच में बने टापू में पहुंचकर खेती करना पसंद करते हैं। चूंकि यहां की रेतीली जमीन काफी उपजाउ होती है जिससे कम लागत में क्षेत्र के किसानों को यहां से अच्छा खासा मुनाफा मिल जाता है।

गांव के किसान रामलाल मांझी, रामकुमार मांझी, बाबाजी मांझी, सतवान मांझी, परसु गुप्ता, रमेश, प्रशांत यादव के अलावा अन्य किसानों ने बताया कि महानदी के बीच में बने टापू में बैगन, ग्वारफली, बरबट्टी, झुनगा, मखना, करेला, हरी मिर्च के अलावा अन्य हरी सब्जियां लगाते है। इसके अलावा गर्मी के दिनों में खरबूजा, ककडी, खीरा, तरबूज लगाते हैं। वर्तमान में अभी यहां किसानों के द्वारा करेला, बैगन, हरी मिर्ची लगाया गया है। गांव के किसानों के मुताबिक प्रति किसान यहां से 55 से 60 हजार रूपये की आमदनी अर्जित करते हैं। सीजन के हिसाब से कभी-कभी सब्ज्यिों के दाम बढऩे पर उन्हें दो से तीन गुना अधिक आय भी हो जाती है। जबकि इस व्यवसाय में लागत कम लगती है।

6 महीने होती है खेती
गांव ने किसानों ने बताया कि महानदी के बीच में बने टापू में लगभग गांव के सभी किसान बरसात के बाद पूरे 6 महीनों तक खेती करते हैं और बरसात के दिनों में टापू पूरी तरह पानी में डूब जाने की स्थिति में मछली पकडक़र उसे बाजारों में बेचकर जीवन यापन करते हैं।  

गांव के युवाओं व बुजुर्ग किसानों ने बताया कि महानदी के टापू की लंबाई और चैड़ाई काफी अधिक है, इसका पाट काफी चैड़ा होनें के कारण बरसों से किसान यहां सब्जी उगाते रहें हैं। यहां का क्षेत्रफल इतना बड़ा है कि एक गांव बसाया जा सकता है। इसलिये यहां की जमीन को लेकर आज तलक विवाद की स्थिति निर्मित नही हुई है और पानी उतरने पर किसानों को सब्जी उगाने के लिये हमेशा से पर्याप्त जमीन उपलब्ध होती आई है। गांव के अधिकांश किसान यहां के जमीन में अलग-अलग जगहों में खेती किसानी करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं।    

इस क्षेत्र में सब्जी उगाने वाले किसानों को काम करने के लिये अजीबो गरीब तरीका अपनाना पड़ता है। टे्रक्टर से जोताई के लिये उन्हें पुल से हाईड्रा की सहायता से टे्रक्टर को नीचे खेत में उतारना पड़ता है। वहीं काम करने के लिये भी किसानों को अपने जमीन पर नाव में जाना पड़ता है। क्योंकि टापू नुमा इस जमीन पर चारो तरफ पानी भरा रहता है।

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