धमतरी

छत्तीसगढ़ संवाददाता
नगरी, 26 मार्च। मंजिल ग्रुप साहित्य मंच के प्रधान कार्यालय, हर्ष विहार-93,नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय साहित्य समागम कुंभ में भारत के विभिन्न राज्यों यथा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडू, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा, मध्यप्रदेश राज्यों से आये साहित्यकारों की उपस्थिति में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार अंजनीकुमार सुधाकर की 7 पद्य व गद्य पुस्तक कृतियाँ यथा- मुक्तिबोध, लोकायतन ा्, आरण्यक, क्षणिकायनी, समीक्षायन, दिनकर प्रकाश एवं प्रसादिका लोकार्पित हुईं।
इस अवसर पर अंजनीकुमार को मगसम के राष्ट्रीय संयोजक सुधीर सिंह सुधाकर,वरिष्ठ साहित्यकार उत्तराखंड नैनीताल से पधारे रमेश चंद्र द्विवेदी, छत्तीसगढ़ से पधारे छंदाचार्य बाबूजी भरत नायक के कर कमलों द्वारा अंगवस्त्रम्,श्री फलम्, उरमाल्यम् भेंट किया गया तथा श्रेष्ठ रचनाकार व समीक्षक स मान स्वर्ण कमल मातो श्री स मान एवं समीक्षा दीपक स मान से स मानित किया गया। सुधीर सिंह, राष्ट्रीय संयोजक-मगसम एवं रमेशचंद्र द्विवेदी तथा भरत नायक बाबूजी द्वारा कृतियों की समीक्षा की गई।
उक्त समागम में कार्यक्रमों में अंजनीकुमार द्वारा अध्यक्ष व मु य अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ का साहित्यकार प्रतिनिधित्व किया गया। रचना पाठ के अंतर्गत उन्होंने छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी एवं हिंदी भाषा में लिखी काव्य रचनाओं का पाठन कर श्रोता गण का आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों किरण वैद्य, प्रदीप वैद्य, अमिता रवि दुबे, डॉ.मनोरमा चंद्रा, मंजू सरावगी, पुरुषोत्तम चक्रधारी, अंजनीकुमार सुधाकर, गया प्रसाद साहू द्वारा छत्तीसगढ़ी लोक गीत पर छत्तीसगढ़ी नृत्य प्रस्तुत किया गया, जिसकी सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा किया।
अंजनीकुमार ने आगे बताया कि उक्त सातों कृतियों के माध्यम से जीवन दर्शन, प्रकृति में प्रेम का रंग व सुगंध, राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, प्रसाद रस के जनक कवि जयशंकर प्रसाद की कामायनी की काव्य रचनाओं पर काव्यात्मक समीक्षा का नया प्रयोग के साथ साहित्यिक समाज में गुमनाम मनीषियों के साथ चाय पर चर्चा के नाम से ऐसे लोगों के जीवन संघर्ष, अनुभव व कंटकाकीर्ण पथ पर चलकर अपने मुकाम तक पहुँच पाने में कितने कामयाब हुये को लेकर साक्षात्कार को लेखबद्ध करने का नव प्रयोग किया गया है। लोकायतनम् के माध्यम से लोक भाषा छत्तीसगढ़ी एवं भोजपुरी में लोक कला,परंपरा, संस्कृति,त्योहार,जनमानस के उद्गारों को काव्यरुप में संजोया गया है।
उन्होंने बताया कि साहित्य सृजन में उनकी रूचि बचपन से रही तथा आचार्य रामचीज तिवारी(बाबा)जो कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के सहपाठी रहे, का आभासी आशीर्वाद,पंडित सुधाकर तिवारी(बाबुजी), माँ तारा देवी तिवारी जी तथा नीलम तिवारी(पत्नी) का मानवीय संवेदना, वात्सल्य एवं उद्दात्त चरित्र का प्रभाव पड़ा है।उत्तर प्रदेश से छत्तीसगढ़ की निरंतर यात्रा संपर्क,कर्मक्षेत्र छत्तीसगढ़ में 41 वर्षों की सेवा जिसमें संपूर्ण छत्तीसगढ़ के दूरांचल तक पहुँच कर व्यक्ति,समाज,लोक संस्कृति,लोक भाषा, जीवन शैली, ग्रामीण कृषि, जीविकोपार्जन,अर्थ तंत्र पर किया गया गहन अध्ययन व अनुभव का निचोड़ उक्त पुस्तकों में है। लोक भाषा के शब्दों को हिंदी भाषा शब्द कोश में समाहित करने का प्रयोग भी किया गया है।