सरगुजा

जोगीमाड़ा गुफा के भित्तिचित्र ऐतिहासिक काल की भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम उदाहरण है...
07-Jun-2023 5:38 PM
जोगीमाड़ा गुफा के भित्तिचित्र ऐतिहासिक काल की  भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम उदाहरण है...

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में अजय चतुर्वेदी ने रामगढ़ के अंतरराष्ट्रीय महत्व को बताया

 ‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

अंबिकापुर,7 जून। सरगुजा  की रामगढ़ पहाड़ी पर  आषाढ़सय  प्रथम दिवसे रामगढ़ महोत्सव के प्रथम दिन रामगढ़ के महत्व को राष्ट्रीय  शोध संगोष्ठी  के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। 

सरगुजा अंचल में श्रीराम  वन गमन परिपथ पर जिला पुरातत्व संघ के सदस्य राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने अपने शोध में बताया कि विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के रूप में विख्यात रामगढ़ का ऐतिहासिक, धार्मिक एवं साहित्यिक महत्व है। सरगुजा में भगवान श्रीराम ने अंबिकापुर में विश्राम किया और रामगढ़ की पहाडिय़ों में चौमासा बिताए थे। 

उन्होंने बताया कि मैंने अभी तक सरगुजा अंचल के 40 स्थलों का भ्रमण कर वहां के ग्रामीणों से मिलकर लोक कथाओं, किंवदंतियों, रामायण से संबंधित मूर्त और अमूर्त धरोंहरों और तथ्यों को इक_ा किया। और शोध के दौरान पाया कि सरगुजा संभाग के पांच जिला अंतर्गत प्रभु श्रीराम ने नदी जलमार्ग होते हुए वनवास काल का समय सरगुजा की पावन धरा में व्यतीत किया है। आज भी यहां के जनमानस में राम के प्रति अगाध श्रद्धा है। यहां के जनश्रुतियों और लोकगीतों में राम कथा सुनने को मिलता है।

रामगढ़ का ऐतिहासिक महत्व

रामगढ़ की पहाड़ी पर सर्वाधिक प्राचीन नाट्यशाला सीता बइंगरा गुफा हैै। यह गुफा एक प्रेक्षागृह के रूप में प्रयुक्त की जाती थी। इस गुफा के प्रेक्षागृह में नटी अभिनय करती थी। प्राचीन काल में भारतवर्ष में गुफाओं का उपयोग नृत्यशाला के रूप में किया जाता था। सीता बइंगरा गुफा के प्रवेश द्वार के उत्तरी हिस्से पर छत के ठीक नीचे मागधी भाषा(पाली) ब्राहृमी लिपी में मौर्यकालीन दो पंक्तियां उत्कीर्ण हैं। सीता बइंगरा गुफा की आंतरिक सुव्यवस्था के आधार पर इसे ‘‘एशिया की सबसे प्राचीन नाट्यशाला कहा जा सकता है। सीता बइंगरा गुफा के समीप ऐतिहासिक जोगीमाड़ा गुफा है। यहाँ सुतनुका नाम की देवदासी रहती थी ,जो वरूण देव को समर्पित थी। सुतनुका ने इस गुफा को सीता बइंगरा नृत्यशाला में नृत्य करने वाली नृत्यांगना के विश्राम के लिए बनवाया था। जोगीमाड़ा गुफा के भित्तिचित्र ऐतिहासिक काल की भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम उदाहरण है। इस गुफा की चित्रों का सम्भावित समय दूसरी शताब्दी ईशा पूर्व मौर्य काल माना गया है। यहां के चित्रों की रचना-शैली समकालीन  भरहुत और साँची को मुर्तिकला से मिलती-जुलती है। सीता बइंगरा और जोगीमाडा गुफाओं के दायें तरफ नीचे उतरने पर पहाड़ी के अंदर - अंदर एक प्राकृतिक सुरंग है। सुरंग का द्वार काफी उंचा है इसमें हाथी भी आसानी से एक छोर से दूसरे छोर तक जा सकता है। इसलिए इस सुरंग का नाम हाथीपोल या हाथी खोह पडा। इसका विवरण रामायण में भी है। 

रामगढ़ का साहित्यिक महत्व

महाकवि कालिदास ने अपनी अमर कृति सुमधुर संस्कृत-गीति काव्य मेघदूत की रचना रामगढ की पहाड़ी पर की थी । जोगीमाड़ा  गुफा को ही कालिदास की रचनाओं से संबंधित मानी जाती है। मेघदूत का यक्ष इसी जोगीमाड़ा गुफा में निर्वासित था। मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया को प्रेम और विरह-यातना संदेष यहीं से भेजा गया था। प्राकृतिक वन सौन्दर्य ,जलकुण्डों का वर्णन एवं पूर्व मेध में रामगिरि से अलकापुरी तक के मार्ग का वर्णन मेघदूत में मिलता है, जो रामगढ की पहाड़ी पर आज भी देखे जा सकते हैं। रामगढ से कुछ दूरी पर उदयपुर से पहले  अलकापुरी गाँव आज भी प्रमाण के रुप में है। शायद यही अलकापुरी कवि कालिदास द्वारा मेघदूत में वर्णित अलकापुरी है।

रामगढ़ का धार्मिक महत्व

दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ़) में सरगुजा अंचल के मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी- भरतपुर जिले के मवई नदी के तट पर प्रभु श्रीराम के चरण पडऩे से छत्तीसगढ़ की धरा पवित्र हो गई। श्री रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ़ में प्रथम पड़ाव मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी- भरतपुर जिला जिले के सीतामढ़ी हरचौका को ही माना जाता है। जनश्रुति है कि यहीं से संपूर्ण सरगुजा अंचल का नदी मार्ग से भ्रमण करते हुए कोंटा बस्तर तक लगभग 10 वर्षों तक छत्तीसगढ़ में प्रभु श्रीराम व्यतीत किए। सरगुजा में भगवान श्रीराम ने अंबिकापुर में विश्राम किया और रामगढ़ की पहाडिय़ों में चौमासा बिताए थे। रामगढ़ की पहाडिय़ों पर जहां माता सीता रहती थी सीता बइंगरा, जहां भगवान श्रीराम रहते थे, जोगीमाड़ और जहां लक्ष्मण जी रहते थे लक्ष्मण बइंगरा गुफ प्रमाण स्वरूप विद्यमान है। सीता बइंगरा के ठीक सामने लक्ष्मण रेखा भी खींची हुई है। पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर राम-जानकी कुंड और राम - जानकी मंदिर है। इस मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता की प्रतिमा रखी हुई है। रामगढ़ की पर्वती चट्टानों के नीचे एक प्राकृतिक गुफा है, जिसे चंदन माटी गुफा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है भगवान श्री राम एवं लक्ष्मण जी अपनी जटाओं को यहां धोए थे। इसी कारण चंदनमाटी को पवित्र मानकर लोग अपने माथे में लगाते हैं। इस पहाड़ी को ग्रामीण लोग आदर और भाव के साथ पूजते हैं।

श्रीराम कथा का विश्व संदर्भ महाकोष में शामिल हुआ सरगुजा अंचल की 40 पावन स्थल

श्रीराम कथा का विश्व संदर्भ महाकोष के प्रथम खंड में भारत  के विभिन्न प्रांतों के लोकगीतों तथा लोक कथाओं में श्रीराम का संदर्भ को समाहित किया गया है। इस कोष के छत्तीसगढ़ अंक में सरगुजा अंचल के विभिन्न स्थल जहां जहां भगवान श्री राम के पावन चरण पड़े और सरगुजिहा लोकगीतों को समाहित किया गया है। इस अध्याय के लेखक राजपाल पुरस्कृत व्याख्याता और साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि इस महाकोष में सरगुजा संभाग के पवित्र 40 स्थलों का वर्णन किया गया है, जहां-जहां प्रभु श्री राम के पावन चरण पड़े थे।

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