बलौदा बाजार

मेरा कुछ भी नहीं, सिर्फ आत्मा ही मेरी है, भाव से प्रकट होता है आंकिचन्य धर्म-अभिषेक
28-Sep-2023 6:44 PM
मेरा कुछ भी नहीं, सिर्फ आत्मा ही मेरी है, भाव से प्रकट होता है आंकिचन्य धर्म-अभिषेक

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

भाटापारा, 28 सितम्बर। श्री 1008 आदिनाथ नवग्रह पंच बालयती दिगंबर जैन मंदिर में पर्यूषण पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। पर्यूषण पर्व का नववा दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म है। प्रात: काल 7 बजे मंगलाष्टक प्रारंभ किया गया। 7.15 पर श्री 1008 मल्लीनाथ भगवान की प्रतिमा पांडुकशिला में विराजमान की गई। 7.30 पर अभिषेक प्रारंभ हुआ।

आज की शांति धारा का सौभाग्य संदीप सनत कुमार जैन एवं अंकुश जैन को प्राप्त हुआ। शांति धारा के पश्चात भगवान की मंगल आरती हुई। मंगल आरती के पश्चात सभी ने मिलकर पर्युषण पर्व पर पूजा प्रारंभ की। सर्वप्रथम देव शास्त्र गुरु पूजा, सोलहकारण पूजा, दसलक्षण पूजा, रत्नात्रय पूजा, आचार्य विद्यासागर महाराज, मुनि चिन्मय सागर महाराज की पूजा ,स्वयंभू स्तोत्र का वाचन सम्पन्न हुआ। अकिंचन धर्म के बारे में विस्तार से बताकर समझाया गया। धर्म सभा को संबोधित करते हुए प्रवचनकर्ता अभिषेक ने बताया, धर्म का नवमा लक्षण है उत्तम आकिंचन्य।

आचार्य कुंदकुंद देव ने आकिंचन के बारे में कहा है कि अविनाशी ज्ञान दर्शन लक्षणों से युक्त एक आत्मा ही मेरी है। कर्मों के संयोग से होने वाले अन्य सभी भाव मुझसे बाह्य हैं, मेरे नहीं है, यानी आत्मा के अलावा कुछ भी अपना नहीं है, इसी भाव एवं साधना का नाम आकिंचन्य धर्म है।

त्याग करते-करते जब यह एहसास होने लगे कि यहां मेरा कुछ भी नहीं है तब आकिंचन्य धर्म प्रकट होता है। जहां कुछ भी मेरा नहीं है, वहां है आकिंचन्य। खालीपन, बिल्कुल अकेलापन यह है आकिंचन्य। विश्व में किसी भी पर पदार्थ से किंचित भी लगाव ना रहना आकिंचन्य धर्म है। मेरा मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस भाव का नाम है आकिंचन्य। हित और अहित की यह दो ही बातें हैं, अहित की बात यह है कि मैं जिस पर्याय रूप में हूं, जिस परिणमन में चल रहा हूं, मैं यह ही हूं, इससे परे और कुछ भी नहीं हूं। यह श्रद्धा होती है तो संसार में रुलना पड़ता है।

और आकिंचन्य स्वभावी शुद्ध चैतन्य मात्र हूं, ऐसा जिसके भाव रहता है वह पुरुष अपनी आत्मा को प्राप्त करता है।

रात्रि में श्री जी की, आचार्य विद्यासागर महाराज, मुनि चिन्मय सागर महाराज की मंगल आरती संपन्न हुई। सुरभि मोदी ,नेहा मोदी एवं बेबी अनायसा मोदी द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम कराए गए।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सुमन लता मोदी, आलोक मोदी, अभिषेक मोदी, अभिनव, अभिनंदन, अक्षत, अरिंजय, अविरल मोदी, नेहा, सुरभि, रजनी मोदी, नवीन कुमार, नितिन कुमार, सचिन कुमार, पंकज, अक्षत, अंजू, भावना गदिया, संदीप सनत कुमार जैन, लाला जैन आदि उपस्थित थे। आकिंचन धर्म का विरोधी है परिग्रह। अकिंचन धर्म कहता है परिग्रह का त्याग कर आत्मा को पवित्र बनाओ, क्या परिग्रह के संचय से किसी को शांति मिली है। क्या जहर खाकर कोई अमर हुआ है।

नहीं, तो परिग्रह का संग्रह कर सुखी रहने की कल्पना करना अग्नि से ठंडक प्राप्ति की आकांक्षा के समान व्यर्थ है। इस संसार में नवग्रह हैं, यह ग्रह बलवान नहीं है, इनसे बचने की चेष्टा भले ना करो पर सबसे बड़ा ग्रह है ,परिग्रह इससे बचो और समस्त अंतरंग व बहिरंग परिग्रह का त्याग कर आकिंचन्य धर्म को धारण करो।

 

 

 

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