गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा-राजिम, 10 सितंबर। मेरा मनुष्य जीवन मूल्यवान, कहीं आए यह भान। यह मनुष्य जन्म हमें मिला है, जीवन में सुख प्राप्ति के लिए अनेक कार्य कर रहे हैं पर अपने हित के लिए क्या किया। घर बनाया, गृहस्थी बसाई सब सुख के लिए पर आत्मा के हित के लिए क्या किया। आत्मा का हित कैसे हो कभी इसका चिंतन किया? स्थानीय श्वेतांबर जैन मंदिर प्रांगण में सामूहिक क्षमापना समारोह के अंतर्गत पू. संघमित्रा श्रीजी ने उक्त बातें कहीं।
पर्यूषण का सार क्षमापना का भाव है- संघमित्रा श्रीजी
उन्होंने कहा कि पर्व पर्यूषण सिर्फ आत्मा के हित की बात करता है। पर्यूषण के आठ दिनों में हमने श्रावक के कर्तव्यों का विवेचन सुना, उसमें सबसे प्रमुख था क्षमापना। क्षमापना भाव के लिए सर्वप्रथम वाणी का संयम, पांचों इंद्रियों का संयम, साथ कषायों का विसर्जन आवश्यक है। इन आठ दिनों में हमने जितना भी सुना उसका चिंतन मनन कर लें व जीवन में उतारने का प्रयास करें तो यह ही इस पर्यूषण पर्व मनाने की सार्थकता है।
सिद्धितप आराधिका शैला सांखला ने अपने तप की पूर्णता के लिए सर्वप्रथम माता-पिता तुल्य अपने सास-श्वसुर को मंच पर बुलाया। श्रीसंघ द्वारा सर्वप्रथम उनका बहुमान किया। उसी प्रकार सिद्धितप आराधिका आभा बंगानी ने अपने मायका परिवार व ससुराल बंगानी परिवार दोनों पक्ष से मिले धर्म की विरासत को तपस्या की पूर्णता का श्रेय दिया। उन्होंने माता-पिता के रूप में भाई-भाभी के आशीर्वाद की भूरि-भूरि अनुमोदना की।
बहुमान समारोह में समस्त मासक्षमण, सिद्धितप, सत्रह, बारह, ग्यारह अठाई तपाराधकों के साथ स्थानीय स्थानकवासी परंपरा में पर्यूषण आराधना के लिए आए स्वाध्यायी बहना भविकाजी व चंचल जी सालेचा का सम्मान श्रीसंघ द्वारा किया गया। सभी तपस्याओं की अनुमोदना स्वरूप भव्य शोभायात्रा मंदिर प्रांगण से निकाली गई। जिसमें कुंभ कलश धारण करने का लाभ शिखरचंद बाफना ने व कल्पसूत्र पोथा जी लेकर चलने का लाभ आनंद छल्लानी परिवार ने लिया। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक दुग्गड़ ने किया।