बिलासपुर

48 साल बाद न्याय की उम्मीद, गंगरेल बांध प्रभावितों को तीन माह के भीतर मुआवजा देने हाईकोर्ट का आदेश
28-Dec-2020 10:37 AM
48 साल बाद न्याय की उम्मीद, गंगरेल बांध प्रभावितों को तीन माह के भीतर मुआवजा देने हाईकोर्ट का आदेश

'छत्तीसगढ़ संवाददाता' 

बिलासपुर, 28 दिसम्बर। धमतरी जिले के गंगरेल बांध से प्रभावित किसानों को 48 साल लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद अब न्याय मिलने की उम्मीद है। हाईकोर्ट ने उनके मुआवजा तथा पुनर्वास प्रकरण का निराकरण 3 माह के भीतर करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है।

रविशंकर शुक्ला बांध (गंगरेल बांध) के निर्माण के लिये सन् 1972 में 55 गांवों को खाली कराया गया था। सिर्फ एक पत्र जारी कर 8 हजार 500 की जनसंख्या वाले आदिवासी बाहुल्य 55 ग्रामों को अधिग्रहित कर लिया गया था, जिसमें उन्हें जमीन, मकान और पेड़ का मुआवजा देने की बात भी कही गई थी। जब मुआवजा बांटा गया तो उन्हें नाम मात्र की राशि मिली। एक आदिवासी परिवार को सिर्फ 10, 20 रुपये मुआवजा मिला। एक पेड़ की कीमत 25 पैसे लगाई गई। अधिकतम मुआवजा 250 रुपये का था। अनेक परिवार ऐसे थे जिन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया, न ही उनका व्यवस्थापन किया गया। इसे लेकर ग्रामीणों ने आपत्ति की तो अधिकारी आश्वासन देते रहे लेकिन उचित मुआवजा देने की कार्रवाई नहीं की। इसके खिलाफ ग्रामीणों ने जबलपुर हाईकोर्ट में मुआवजा और व्यवस्थापन की मांग करते हुए याचिका दायर की। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद यह प्रकरण बिलासपुर हाईकोर्ट में सुना गया। यहां लगभग 20 साल यह प्रकरण चला। हाईकोर्ट में जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने मुआवजे और व्यवस्थापन्न की कार्रवाई को अपर्याप्त बताते हुए नये सिरे से आकलन कर मुआवजे तथा व्यवस्थापन्न का लाभ देने का निर्देश दिया है।  

48 साल पुराने मामले में अधिकांश विस्थापित आदिवासी गुजर चुके हैं। अब उनके बेटे और पोते इस मुकदमे को लड़ रहे थे जिन्हें हाईकोर्ट के आदेश का लाभ मिलेगा। तीन जिलों धमतरी, दुर्ग और कांकेर में जिला प्रशासन द्वारा मुआवजे और व्यवस्थापन की कार्रवाई अब की जायेगी।

हाईकोर्ट में अधिवक्ता संदीप दुबे ने पैरवी की कोई फीस नहीं ली। उन्होंने कहा कि पूर्व में राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों को आश्वासन दिया जाता रहा और अलग-अलग जवाब दाखिल किया जाता रहा, जिसके चलते मामला 48 साल तक खिंचा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा 2004 से 2010 तक यही कहा जाता रहा कि मुआवजा वितरण व व्यवस्थापन्न की जांच रिपोर्ट बनाई जा रही है, लेकिन जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया। विस्थापित परिवारों के लिये कई समितियों और प्रशासनिक अधिकारियों की अनुशंसा के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।

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