सुकमा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
छिंदगढ़, 3 जनवरी। आज कुकानार परगना के ग्राम कातलमिरी में गादी दियारी (गादी लांदा भीमूल लांदा) त्यौहार मनाया जा रहा है। दो दिनों तक गांव-गांव में धूमधाम से त्यौहार मनाया जाता है।
ज्ञात हो कि यह आदिवासियों का पारंपरिक त्यौहार जो आदिकाल व पुरखों के रीति नियम को बरकरार रखते तथा हर वर्ष जनवरी में पूरे खेत खलिहान का काम समाप्त कर धन लक्ष्मी धान, खोदो, कोसरा, मूँग दाल, राहर दाल, जैसे अन्य अनाज जो साल भर मेहनत कर पैदा किया जाता है, उनको इकट्ठा कर घरों के अन्दर रखते हैं उसके बाद गांव के जिम्मेदारिन यायो जागा प्राकृतिक देवी देवता सात बहनी देवताओं को गांव जागा पेरमा पुजारी के द्वारा सेवा अर्जी कर देवताओं को भोग देकर प्राकृतिक देवताओं से धन लक्ष्मी, माल लक्ष्मी से नर नारी पशु पक्षी माल माता, धन दौलत को अनन्त काल देते रहने के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है और इसे मनाया जाता है।
बताया जाता है कि यह आदिवासियों का पारम्परिक त्योहार रीति रिवाज संस्कृति नियम प्रकृति से जुड़ा हुआ है। जैसे-जैसे प्रकृति संतुलन बनाती है, वैसे ही आदिवासियों की पारम्परिक रीति है। यह एक अदभुत परम्परा है, जो प्रकृति से जुड़ा नियम है। पूजा-अर्चना के बाद साल भर में मेहनत कर अनाज को सभी गांव वाले अपने-अपने घर से लाकर सभी मिल बांटकर खाते हैं तथा नया धान का लांदा बनाकर परोसा जाता है।
इस अवसर पर गांव के पटेल (पेदा) देवा मरकाम ने बताया कि ये त्यौहार हमारे आदिवासियों के पुरखों का त्यौहार है, जो हमारे पूर्वजों के द्वारा प्रकृति से जुड़े देवताओं को अनन्त काल से मनाया जाता रहा है। पुरखों के नियम को हमें जिम्मेदारी के साथ मानना है और ये हमारी जिम्मेदारी भी है।
गांव के जागा भूमि के पेरमा मंगड़ू मरकाम कहते हंै कि ये हमारा जागा प्रकृति ये ही हमारे माता पिता भगवान है, हम इसी पर फले फुले हैं, जीवन यापन इसी से है इसलिए प्रकृति ही हमारा देवता है, इन्हें भगवान मानना हमारा परम कर्तव्य है। इसलिए हर वर्ष प्रकृति देवी देवता से सुख शांति के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
इस अवसर पर हिड़मा राम कुंजाम, (जागा माता का कामदार जिम्मेदार पुजारी) ने बताया कि साल भर का मेहनत के बाद सारा धान घरों में जमा कर एक साथ गांव के सभी ग्रामीण अपनी थकान व पीड़ा को भुलाकर खुशियां लाने के लिए प्राकृतिक देवता से सेवा अर्जी कर नर नारी, धन माल, पशु पक्षी को खुशहाल रखने के लिए आशीर्वाद मांगते हैं और खेत खलिहानों में मरम्मत, खरपतवारों की सफाई, जड़ी-बूटी को काटने के लिए गांववासियों को अनुमति के रूप में जागा देवता के द्वार पर छोटे-छोटे पौधे को काट कर अनुमति दी जाती है। दूसरे दिन चावल का लांदा कुटुम परिवार से एक जगह जमा कर मिलकर साथ में नाच गान किया जाता है, जिसे भीमूल लांदा कहा जाता है।