रायगढ़

कलेक्टोरेट में महकी लैलूंगा के जवाफूल चावल की खुशबू
14-Jan-2021 2:29 PM
कलेक्टोरेट में महकी लैलूंगा के जवाफूल चावल की खुशबू

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायगढ़, 14 जनवरी। जिले के लैलूंगा विकासखण्ड में उगाए जाने वाले खुशबूदार जवाफूल चावल की महक प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी मशहूर है। जैविक विधि से उत्पादित यह चावल केमिकल फ्री रहता है लिहाजा सेहत के लिए भी फायदेमंद है। जिला प्रशासन द्वारा इस चावल की खेती को बढ़ावा देने समिति का गठन किया  गया है। साथ ही विभिन्न जगहों पर प्रशासन के माध्यम से समिति द्वारा प्रदर्शनी व विक्रय काउंटर लगाए जाते है। इसी क्रम में मंगलवार को जिला मुख्यालय के कलेक्टोरेट में स्टॉल लगाया गया। जहां अधिकारी, कर्मचारियों के अलावा शहरवासी भी चावल खरीदने पहुंचे।

लैलूंगा क्षेत्र में उगाए जाने वाले खुशबुदार जवाफूल चावल की महक पूरे देश में मशहूर है। जैविक विधि से उत्पादित आर्गेनिक और एरोमेटिक जवाफूल चावल स्वाद के साथ सेहत के लिए भी फायदेमंद है। जिला प्रशासन द्वारा कृषि विभाग के माध्यम से इस चावल की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने विभिन्न समितियां बनाई गई है तथा खेती के लिए ऋण भी उपलब्ध कराया जाता है। दिल्ली स्थित छत्तीसगढ़ भवन सहित देश के अन्य शहरों में भी प्रदर्शनी लगा कर बिक्री की गई है। जिसमें जवाफूल की काफी डिमांड रही है। वहीं मंगलवार को कलेक्टर कार्यालय के परिसर में प्रदर्शनी लगाई गई।

किसानों के द्वारा बनाई गई समितियों के संबंध में कृषक उत्पादन संगठन (एफपीओ) के प्रभारी लोभन साय ने बताया कि करीब चार महीने पहले कलेक्टर भीम सिंह, सीईओ ऋचा प्रकाश चौधरी और उप संचालक कृषि के मार्गदर्शन में पांच समितियों का गठन किया गया था। एक माह पूर्व सोसायटी का रजिस्टे्रशन होनें के बाद केलो ब्रांड नेम से इसकी बिक्री शुरू की गई है। इस प्रदर्शनी में 40 क्विंटल धान लाया गया है। उन्हें उम्मीद है कि यह पूरा चावल तत्काल बिक जाएगा। प्रदर्शनी में पांचो समूह के अध्यक्ष, सचिव सहित लगभग 12 किसान उपस्थित थे। प्रशासन द्वारा प्रत्येक समिति को खेती के लिए 15 लाख की राशि दी जाती है। जिसमें से 14 लाख ऋण के रूप में होता है और एक लाख का अनुदान दिया जाता है। इस वर्ष 215 हेक्टेयर में जवाफूल की खेती की गई है, लेकिन डिमांड को देखते हुए अगले वर्ष तक बढ़ा कर 15 सौ से 2 हजार हेक्टेयर तक करने का लक्ष्य रखा गया है। 

पहले बिचौलिए कमा लेते थे लाभ- किसान

लैलूंगा क्षेत्र में जैविक जवाफूल चावल का उत्पादन करने वाले सुरेश कुमार गुप्ता, लैलूंगा केशला, जतिराम भगत लैलूंगा, जगसाय गहनाझरिया लैलूंगा, संतोष कुमार पैंकरा व अनिल पैंकरा पहाड़ लुडेग लैलूंगा ने हमारे संवाददाता से चर्चा करते हुए बताया कि पहले उनके द्वारा पैदा किए गए धान को बिचौलिए कम रेट में खरीद लेते थे और अलग-अलग बाजारों में ऊंचे मूल्यों पर बेचते थे। जिसके कारण किसानों को काफी नुकसान होता था। अब सोसायटी बन जाने के कारण उनके उत्पाद का उचित मूल्य सीधे उन्हें मिलेगा। इन किसानों ने कांट्रेक्ट फार्मिंग के नियम से किसानों को नुकसान होनें और इस तरह की सोसायटी के माध्यम से किसानों को अपनी उपज का सही दाम मिलने की बात कही।

राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने  की कोशिश- भगत

इस संबंध में उप संचालक कृषि एलएम भगत से चर्चा करने पर उनका कहना था कि लैलूंगा का सुगंधित जवाफूल चावल रायगढ़ ही नही बल्कि आसपास के जिलों और पड़ोसी प्रांत तक में सुप्रसिद्ध है। पहले किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नही मिल पाता था। ऐसे किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य मिले और पारंपरिक जैविक खेती को बढ़ावा मिल सके, इस उद्देश्य से इन किसानों को सरकारी स्तर पर ऋण उपलब्ध कराकर तथा कृषक संगठन के माध्यम से इनकी खेती को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही आर्गेनिक चावल की खेती को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास कृषि विभाग के माध्यम से किया जा रहा है।

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