रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 15 जनवरी। कला का जीवन के विविध रंगों से हमेशा से जुड़ाव रहा है। अंतहीन इसके दायरे में रंगों के माध्यम से केनवास पर जहां कभी प्रकृति का वैभव घुल जाता है वहीं कभी इंतजार के पल और संस्कृति समाहित हो जाती है। छत्तीसगढ़ के सुविख्यात कलाकार डॉ.धु्रव तिवारी ऐसे कलाकार हैं जिनके सृजन संसार में रेतीली पृष्ठभूमि में रचे बसे सुर्ख रंग के साथ साथ आदिवासी संस्कृति की मौलिकता का समावेश दृष्टिगोचर होता है।
केंद्रीय विद्यालय में कला शिक्षक के रुप में कार्यरत डॉ. धु्रव तिवारी की एकल कला प्रदर्शनी इन दिनों मैग्नैटो मॉल में लगी हुई है। 11 जनवरी से 18 जनवरी तक आयोजित इस प्रदर्शनी में 22 पेंटिग्स शामिल की गई हैं। आदिवासी कला में पीएचडी धु्रव तिवारी की पेटिंग में आदिवासी संस्कृति की मौलिक संस्कृति मृतक स्तंभ की कला को बारीकी से उजागर किया गया है। ध्रुव तिवारी ने बताया कि रिर्सच के दौरान बस्तर की आदिवासी संस्कृति को उन्हें करीब से जानने का मौका मिला।
यहां रहकर उन्होंने आदिवासियों के अछूते मृतक स्तंभ पर तराशे शिल्प को देखा। खेतों में पत्थर,लकड़ी पर तराशी गई कलाकृति से विमुग्ध होकर इसके सौंदर्य को केनवास पर उकेरा। इसी तरह उन्होंने पेंटिंग के जरिए उन्होंने सुनहरी रेत में दमकते स्त्री सौंदर्य को अभिव्य1त किया। इसके पूर्व डॉ.धु्रव की पेंटिंग प्रर्दशनी दिल्ली,भोपाल,उज्जैन और अहमदाबाद में लग चुकी है।