गरियाबंद

लिखने से बढ़ती है कलम की ताकत - संतोष
15-Feb-2021 9:06 PM
लिखने से बढ़ती है कलम की ताकत - संतोष

राजिम, 15 फरवरी।  लेखन की दुनिया में उभरते युवा कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल इन दिनों मोबाइल के व्हाट्सएप ग्रुप पर अनेक नवोदित लेखकों को समसामयिक विषयों के अलावा धर्म अध्यात्म, पर्यटन आदि विषयों पर लेख की बारीकी पर फोकस रहे हैं।

इन्होंने कोरोना काल के शुरुआती दौर में जिला रत्नांचल साहित्य परिषद के पटल प्रभारी के रूप में आलेख लेखन, शब्द विन्यास के साथ ही कला कौशल पर विशेष जानकारी दी और अभी तक दर्जनों नवोदित लेखक उभरकर सामने आए हैं। जिनकी आलेख लगातार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही है। इससे जिला में लेखकों की संख्या बढ़ी है।

उल्लेखनीय है कि वे नगर से लगे हुए गांव चौबेबांधा के शासकीय प्राथमिक स्कूल में पढक़र निकले और पूरे कॉलेज तक की पढ़ाई राजिम में किया। बीए द्वितीय वर्ष में खूब मेहनत की और एक कविता को मूर्त रूप दिया। जिसे छपवाने के लिए कॉलेज के वार्षिक पत्रिका में प्रभारी प्रोफेसर को दे दिया, लेकिन कविता को स्थान नहीं मिला। इन्होंने अगले वर्ष फिर नई कविता प्रस्तुत की। वह भी नहीं छपा। टाइपिंग सीखते हुए एक अखबार ने दिपावाली पर रचना आमंत्रित किया। उसे देखते ही दीपोत्सव वार्षिकांक में कविता लिखी। जिसे प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया गया। इससे इनका हौसला बढ़ गया। इस बार भी उन्होंने कॉलेज के पत्रिका में कविताएं दी जिसे प्रकाशित किया गया। जिनकी खूब चर्चा भी हुई। इससे मनोबल और बढ़ा तथा लिखने का क्रम शुरू हो गया।

 श्री सोनकर बताते हैं कि  सन् 2000 के दशक में लिखने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि प्रतिदिन रात 2 बजे तक कविता, आलेख, कहानी लिखता था। उस समय सद्भाव साहित्य समिति से जुड़ा हुआ था जहां इनकी हर कविताओं को बारीकी से सुना जाता था। कोई गलती होने पर तुरंत टोका जाता तथा अच्छे शब्दों पर शबासी भी मिलती।

उन्होंने बताया कि एक बार तो कविता लिखकर टाइप कराने के लिए टाइपराइटर के पास गया तो उन्होंने यह कविता नहीं है कहकर भगा दिया। फिर भी  हार नहीं मानी और लिखने का क्रम निरंतर जारी रहा। कॉलेज जाने के लिए घर से 5 या 10 रूपए खर्च के लिए मिलता था उसे बचाकर रचना टाइप कराकर पोस्ट करने में खर्च कर देता। मेरा मानना था कि यदि रचना पत्रिका में छपी तब सही अर्थ में इनका मूल्य है और यदि नहीं छपी तो इसमें कमियां है। कई बार रचनाएं पत्रिकाओं में छपने के लिए देने के बावजूद वापस आ जाते तथा गोल घेरा के साथ सुधारने की नसीहत जरूर देते थे। मेरा व्याकरण कमजोर था इस कारण भी कई पत्रिकाएं रचनाओं को स्थान नहीं देते थे किन्तु धीरे-धीरे लिखते लिखते व्याकरण भी प्रगाढ़ होता गया और लिखने का क्रम चल पड़ा। देश भर के अनेक राज्यों के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लगातार छप रहा हूं। आकाशवाणी, टीवी चौनल में कविता पाठ करना सुखद अनुभव है।

काव्य गोष्ठी के अलावा कवि सम्मेलन मंच में कविता पढऩे से ना सिर्फ तालियां मिलती है बल्कि आत्मविश्वास भी प्रगाढ़ होता है पहले कविताओं पर ज्यादा ध्यान देते थे पश्चात छत्तीसगढ़ी व हिंदी भाषा में कहानी लिखी। जिसे पाठकों ने खूब पसंद किया। धीरे से कविता और कहानी की गाडिय़ां पीछे छूट गई और आलेख पर ज्यादा ध्यान देने लगा। धर्म, लोक संस्कृति एवं पर्यटन पर खूब लिखा और अब न सिर्फ आलेख लिखते हैं बल्कि नवोदित लेखकों को आलेख लिखना भी सिखा रहे हैं जिला रत्नांचल साहित्य परिषद के सदस्यों को मोबाइल के व्हाट्सएप ग्रुप पर पटल प्रभारी के रूप में आलेख लिखना तथा भाषा की कसावट पर जानकारी देते है।

श्री सोनकर को साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनेक सम्मान मिल चुके हैं। उन्होंने बताया कि साहित्य का क्षेत्र समृद्ध है इनकी साधना के लिए समय देना बहुत जरूरी है। अनेक लेखकों की पुस्तकें पढ़ता हूं। इससे लिखने की प्रेरणा मिलती है। कलम की ताकत लिखने से बढ़ती है शब्द सही व प्रेरणादायक होनी चाहिए।

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