राजनांदगांव

आत्मसमर्पित नक्सली के पिता के शव को नसीब न हुआ समाज का कंधा
16-Feb-2021 3:10 PM
आत्मसमर्पित नक्सली के पिता के शव को नसीब न हुआ समाज का कंधा

पुलिस निगरानी में अंतिम संस्कार

प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 16 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। मानपुर इलाके में दशकभर पहले नक्सली रहे एक युवक के पिता को समाज का कंधा नसीब नहीं हुआ। मानपुर के सहपाल-बसेली के बाशिंदे कारूराम जाड़े की दो दिन पहले बीमार हालत में मृत्यु हो गई। जाड़े की एक वक्त आदिवासी समाज में तूती बोलती थी। अंदरूनी इलाकों के आदिवासी समुदाय में उनका एक दबदबा भी था।  उनके पुत्र भगत जाड़े करीब 10 साल पहले हथियार छोडक़र नक्सल विचारधारा से बाहर निकलकर मुख्यधारा में लौटे थे। 

राज्य सरकार की नक्सल पुनर्वास नीति के चलते उन्हें पुलिस महकमे में सहायक आरक्षक के बाद बेहतर कार्य करने के चलते आरक्षक बनाया गया। बताया जाता है कि भगत जाड़े ने डीवीसी रहते हुए नक्सलियों से मुंह मोड़ लियाा था। इसी बात को लेकर नक्सल संगठन की ओर से दबाव बनाने के लिए जाड़े परिवार के साथ मानपुर इलाके के आदिवासी नेताओं को हिदायत मिली थी। लंबे समय से जाड़े परिवार के साथ आदिवासी समाज ने नाता तोड़ लिया था। 

दो दिन पहले आत्मसमर्पित नक्सली भगत जाड़े के पिता की मृत्यु होने के बाद दाह संस्कार में शामिल होने से समाज ने दूरी बना ली। वहीं आसपास के गांवों के लोगों को किसी भी तरह का सहयोग नहीं करने की दबे स्वर चेतावनी दी गई थी। बताया जाता है कि पुलिस की निगरानी में आखिरकार आत्मसमर्पित नक्सली के पिता को मुखाग्नि दी गई। 

बताया जाता है कि मानपुर थाना प्रभारी लक्ष्मण केंवट और मदनवाड़ा थाना प्रभारी शशांक पौराणिक समेत अन्य पुलिस अफसरों ने अपनी मौजूदगी में मृत शरीर की अंत्येष्टि की। बताया जाता है कि जाड़े परिवार के लोगों पर नक्सलियों की लंबे समय से नजर है। पुलिस ने सुरक्षागत कारणों से अपनी मौजूदगी में दाह संस्कार कराया। भगत जाड़े ने 2012 में तत्कालिन एसपी डॉ. संजीव शुक्ला के समक्ष आत्मसर्पण किया था। जाड़े वर्तमान में आरक्षक हैं। जल्द ही उनके कंधे में एक स्टॉर भी लगेगा। नक्सल मुहिम में पुलिस का भरपूर साथ देने के चलते महकमे ने उन्हें एक मामले में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दे दिया है। माना जाता है कि जाड़े के मुख्यधारा में लौटने से मानपुर इलाके में नक्सलियों की जड़े हिल गई। इसी से बौखलाए नक्सलियों ने जाड़े परिवार को सामाजिक स्तर पर घेरते हुए समाज को दूर रहने की हिदायत दी। आखिरकार समाज ने भी नक्सलियों के भय से कंधा देने से किनारा कर लिया।
 

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