बिलासपुर
डीपी विप्र महाविद्यालय में किताब गांधी-अम्बेडकर, कितने दूर कितने पास पर व्याख्यान
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 23 फरवरी। गांधीवादी, लोहियावादी विचारक रघु ठाकुर मानना है कि पूंजीवादी और उपनिवेशवादी ताकतें महान पुरुषों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करती हैं। पहले क्रम के बाद दूसरे क्रम के लोगों की छवि नष्ट करती है विचारों और संवाद की प्रक्रिया को रोकती है। गांधी और अम्बेडकर में दूरी की बात क्यों कही जाती है? दोनों का लक्ष्य अलग-अलग था। देखना यह चाहिये कि समाज में सुधार लाने के लिये उन दोनों के विचारों में कितनी समानता थी।
रघु ठाकुर ने अपनी किताब गांधी-अम्बेडकर, कितने दूर-कितने पास पर डीपी विप्र महाविद्यालय में रखे गये व्याख्यान के अवसर पर यह बात कही। उन्होंने बताया कि यह किताब उन्होंने अरुंधति राय की किताब ‘एक था डॉक्टर, एक था महात्मा’ के जवाब में लिखी है ताकि देश के सामाजिक उत्थान में योगदान देने वाले दो महान पुरुषों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़े करने की प्रवृति को प्रतिरोध करें।
ठाकुर ने कहा कि महान पुरुषों को साहित्य के जरिये एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करना खतरनाक है। यह एक हिंसक प्रवृत्ति है। हमें यह देखना होगा कि गांधी और अंबेडकर की जो मुलाकातें हुई हैं उनमें वे कितना बदले। दलितों को समान अवसर और अधिकार दिलाने की मंशा दोनों की साफ थी। गांधी को अंबेडकर भोला-भाला समझते थे लेकिन उनकी नीयत पर कोई संदेह नहीं था।
अम्बेडकर दलितों को अधिकार कानून के जरिये अधिकार दिलाना चाहते थे जबकि गांधी कहते थे कि केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, समाज का मन बदलना होगा। अंबेडकर का लक्ष्य दलितों को उनका हक दिलाना था, गांधी का इससे बड़ा देश को गुलामी से आजाद कराना था। कोई भी व्यक्ति आलोचना से परे नहीं होता है, चाहे वह कितना भी महान क्यों न हो। बस हमें उनके अच्छे विचारों को आत्मसात करना चाहिये और जो जरूरी नहीं उसे छोड़ देना चाहिये। गांधी या अम्बेडकर ने खुद कभी नहीं कहा कि वे गांधीवाद या अंबेडकरवाद लेकर आये हैं। वे दोनों समय-समय के साथ अपने विचारों को बदलते, परिष्कृत करते गये हैं।
रघु ठाकुर ने कहा कि आज यदि अम्बेडकर का तन (दलित) और गांधी का मन (विचार) साथ हो जाये तो दुनिया ही बदल जाये। हमें उनके समतामूलक समाज की संरचना पर जोर देने की जरूरत है।
विषय प्रवर्तन करते हुए महाविद्यालय शासी निकाय के सदस्य राजकुमार अग्रवाल ने कहा कि यह कार्यक्रम भारत विचार संस्थान के सहयोग से रखा गया है। देश के नायकों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने की प्रवृति खतरनाक है। यह संवाद की प्रक्रिया बंद कर हमें आपस में लड़ाती है। विचार का मुक्त प्रवाह हो, जो किसी राजनीतिक दल, विचारधारा, वाद से परे भारत का विचार हो। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय के संस्थापक पं। रामनारायण शुक्ल की स्मृति में राष्ट्रीय व्याख्यान मालाओं की कड़ी में यह पहला आयोजन है।
प्रमुख वक्ता आनंद मिश्रा ने कहा कि गांधी और अम्बेडकर दोनों ही सामाजिक समानता के चिंतक थे और वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना चाहते थे।
अम्बेडकरवादी विचारक कपूर वासनिक ने बताया कि गांधी और अम्बेडकर के विचारों में फर्क जरूर था लेकिन वे दोनों एक दूसरे को सम्मान देते थे।
अम्बेडकर को पूना पैक्ट से भी विरोध नहीं था, उन्हें उस वक्त के कांग्रेस के नेताओं के रवैये से नाराजगी थी। साहित्यकार रामकुमार तिवारी ने कहा कि देश में संवाद और विचार-विमर्श का अभाव पैदा होता जा रहा है। हमें पाश्चात्य दृष्टिकोण से लिखी गई किताबों में उप निवेशवाद को समर्थन दिखाई देता है। रघु ठाकुर की किताब भारतीयों को हीन भावना से बाहर निकालती है और हमें विचार विमर्श का अवसर देत है।