सरगुजा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 24 फरवरी। दिका प्रसाद के भोजन और जिंदगी, दोनों का स्वाद अब बदल गया है। जीवन साथी लक्ष्मनिया के हाथों की बनी तरकारी में अब उन्हें पहले से कहीं अधिक स्वाद और आनंद आने लगा है। आखिरकार ये तरकारियां उनकी अपनी बाड़ी की जो हैं, जिन्हें पहली बार दिका प्रसाद ने लक्ष्मनिया के साथ मिलकर उगाया है और मनरेगा से बने अपने कुएं के पानी से सींचा व संवारा है। मनरेगा से घर की बाड़ी में कुआं खुदाई के बाद से इस परिवार की जिंदगी बदल गई है। अब दिका प्रसाद सब्जी उत्पादक किसान कहलाने लगे हैं।
लखनपुर विकासखण्ड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर पोतका ग्राम पंचायत के किसान दिका प्रसाद और लक्ष्मनिया अपने दो बच्चों के साथ रहते हैं। उनके जीवन में आए इस बदलाव की शुरुआत करीब दो साल पहले हुई थी। कुआं खुदाई के पहले वे अपने घर से लगे दो एकड़ खेत में खरीफ सीजन में केवल परिवार के खाने लायक धान उगा पाते थे। सिंचाई का कोई साधन नहीं होने के कारण बाकी समय यह जमीन खाली पड़ी रहती थी। पूरे परिवार के लिए रोजमर्रा के पानी की जरूरतों के लिए लक्ष्मनिया को काफी मशक्कत भी करनी पड़ती थी। उसे सुबह-शाम घर से 300 मीटर दूर सार्वजनिक हैंडपंप से पानी भरना पड़ता था।
ग्राम पंचायत की पहल पर दिका प्रसाद की बाड़ी में कुआं निर्माण ने उनकी खेती और परिवार की दिक्कत सुलझाने का रास्ता खोला। दो साल पहले मनरेगा से दो लाख दस हजार रूपए की लागत से निर्मित कुएं से उनकी जिंदगी में बदलाव की शुरुआत हुई। जैसे-जैसे कुएं की गहराई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे इनकी उम्मीदों की रोशनी भी बढ़ती जा रही थी। कुआं खुदाई के दौरान उनके परिवार को मनरेगा के अंतर्गत 90 दिनों का सीधा रोजगार भी मिला। इससे उन्हें 15 हजार 840 रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई। दिसम्बर-2019 में दिका प्रसाद, लक्ष्मनिया और गांव के आठ अन्य मनरेगा श्रमिकों की मेहनत से कुएं का निर्माण पूर्ण हुआ। जैसे-जैसे कूप निर्माण का काम पूर्णता की ओर बढ़ता गया, दिका प्रसाद और लक्ष्मनिया अपनी बाड़ी भी तैयार करते गए।
कुआं बन जाने के बाद दिका प्रसाद ने अपनी बाड़ी में आलू, टमाटर, बैंगन, कुंदरु, करेला, बरबट्टी, फूलगोभी, पत्तागोभी, बैंगन, टमाटर और मटर उगाया। बाजार में इन्हें बेचकर परिवार ने 15 हजार रूपए की कमाई की। कुएं के पानी से धान की खेती में भी मदद मिली और सात क्विंटल धान का उत्पादन हुआ। अपनी बाड़ी में उगी सब्जियों की ओर इशारा करते हुए लक्ष्मनिया कहती हैं कि वह पहले बाजार से सब्जियां खरीदती थी। अब जब से कुआं बना है, तब से अपनी ही बाड़ी से सब्जियां तोडक़र तरकारी बनाती हैं। अपनी मेहनत से उपजाई सब्जी-भाजी को परिवार का हर सदस्य बड़े चाव से खाता है। वहीं दिका प्रसाद बताते हैं कि बाड़ी में पहली बार सब्जियों की पैदावार से जो कमाई हुई, उससे बिजली से चलने वाला एक मोटर पम्प खरीदा। हमारी मेहनत और मनरेगा से बने कुएं से हम बच्चों के बेहतर भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। आजीविका सुदृढ़ होने से हम दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकते हैं।