गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 1 मार्च। सोंढ़ूर, पैरी एवं महानदी त्रिवेणी संगम में स्थापित विश्व प्रसिद्ध पंचमुखी कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में रविवार को सुबह से ही श्रद्धालुओं का भीड़ उमड़ी। दर्शन करने लिए बांस के बैरीकेट्स से होकर दर्शनार्थी अपने बारी का इंतजार कर रहे थे। नीचे नदी पर लाइन लगानी पड़ रही थी। ऊपर चबूतरा में क्रमश: शिवलिंग के दर्शन कर रहे थे।
बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदीं में किया गया, लेकिन चबुतरा का निर्माण बाद में किया गया। जिसकी ऊंचाई 17 फीट हैं। पहले दो बार चबूतरा बना तो दिया गया लेकिन दोनों बार ही नदी के विकराल बाढ़ से बह गई। इससे यहां के जमींदार व्यथित हुए और रूदन भरे स्वर में महादेव को याद किया।
दूसरे दिन नदी में घूम रहे थे कि एक विकरागी बाबा उन्हें दिखाई दिया वह उनके दु:खी होने का कारण पूछा तो बताया कि चबूतरा बनाने का कई बार प्रयास किया लेकिन हर बार असफल रहा हूं। तब बाबा ने कहा कि यह चिमटा निर्माण स्थल पर ले जाकर गड़ा दो और कार्य प्रारंभ करों। उन्होंने ऐसा ही किया और देखते ही देखते 17 फीट ऊंची चबूतरा बना गया। इसमें बड़े व चौड़े पत्थरों का उपयोग किया गया है। मंदिर में जाने के लिए पूर्व, उत्तर एवं दक्षिण दिशा में तीन सीढ़ी हैं। मंदिर में ही विशाल पीपल का वृक्ष हैं जिसे 551 वर्ष पुराना बताते हैं। वैसे भी पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना जाता हैं। गर्भगृह में कुलेश्वरनाथ महादेव का शिवलिंग हैं।
किवदंती है कि वनवास काल के दौरान माता सीता, भगवान रामचंद्र और लक्ष्मण के साथ चतुर्मास राजिम में व्यतीत किया। इस बात की पुष्टि भाषाविद् डॉं. मन्नुलाल यदु ने अपने शोध गं्रथ में किया था। सीता संगम में स्नान करने के बाद महादेव के पूजा करने की इच्छा मन में जागृत हुई। तब हाथ से रेत का शिवलिंग बनाकर जलाभिषेक किया। जल की धारा पाचों ओर से बहने लगी और पंचमुखी कुलेश्वरनाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
लोक मान्यता है कि भगवान श्री कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की मनोकामनाएॅं शीघ्र पूरी हो जाती है। इस संबंध कथानक है कि एक राजा जिसके एक भी संतान नहीं हुए थे। वे तीर्थ यात्रा करके थक चुके थे। अंत में संगम स्थित कुलेश्वरनाथ महादेव के शरण में पहुंचा। उन्होंने एक सौ विल्व पत्र चढ़ाए। जिससे उन्हें सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई।