राजनांदगांव
देवरचा घाट में बने नए रास्ते से बकरकट्टा-छुईखदान का सफर हुआ आसान
प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 2 मार्च (‘छत्तीसगढ़’)। राजनांदगांव जिले के घोर नक्सलग्रस्त बकरकट्टा के लिए छुईखदान ब्लॉक का देवरचा घाट वरदान साबित हुआ है। ऊंचेदार और दुर्गम के पहाड़ में बने नए रास्ते से जनजातियों की उबाउ और थकान भरे सफर को लगभग खत्म सा कर दिया है।
देवरचा घाट के जरिये बकरकट्टा की पहुंच घंटेभर से कम हो गई है। करीब 4 किमी के इस घाट को काटने के लिए प्रशासन की भरसक कोशिश अब समाप्त हो गई है। 4 किमी के मार्ग के तैयार होने के बाद बकरकट्टा के करीब 30-35 गांवों के बाशिंदों को छुईखदान के 55 किमी के सफर से छुटकारा मिल गया है। पूर्व में छुईखदान से साल्हेवारा होकर ग्रामीणों को बकरकट्टा तक करीब 85 किमी का लंबा फासला तय करना पड़ रहा था। जबकि जिला मुख्यालय से बकरकट्टा की दूरी तकरीबन 140 किमी है।
यानी देवरचा घाट के तैयार होने से जिला मुख्यालय की दूरी भी घट गई। देवरचा घाट को पार कर वन बाशिंदे सिर्फ 30 किमी की दूरी तयकर छुईखदान पहुंच सकते हैं। मोटर साइकिल और बस के माध्यम से साल्हेवारा से छुईखदान तक पहुंचने के लिए दो से ढ़ाई घंटे का वक्त अब एक घंटे का रह गया है। राजनांदगांव कलेक्टर टीके वर्मा चुनौती से भरे देवरचा घाट के तैयार होने से अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।
‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कलेक्टर टीके वर्मा ने कहा कि वाकई में पहले असीमित चुनौतियों को पाट कर नए मार्ग का निर्माण सुखद अनुभव का अहसास कराता है। घाट को लांघकर अब जनजाति समुदाय सीधे कस्बों का रूख कर सकता है। इस बीच देवरचा घाट की सडक़ को बकरकट्टा-छुईखदान से जोडऩे के लिए करीब 300 मीटर की तीन पुल भी बनकर तैयार है। इन पुलों से होकर ही लोगों की आवाजाही संभव होगी। वैसे बकरकट्टा पहुंचना हमेशा से प्रशासन के लिए तकलीफदेह रहा है। तत्कालीन कलेक्टरों ने सिर्फ कागजों से ही विकास की ईबारत लिखी। बताया जाता है कि लोक निर्माण विभाग को घाट तैयार करने के लिए प्रशासन ने तमाम साधन-संसाधन मुहैया कराया, ताकि प्रशासन की बहुप्रतिक्षित इस कार्ययोजना को तय समय पर अस्तित्व में आने में कोई अड़चन पैदा न हो। बकरकट्टा-छुईखदान का यह रास्ता भविष्य में पर्यटन के मानचित्र पर भी नजर आएगा। रास्ते के किनारे रानी रश्मिदेवी जलाशय के सैलानियों को घाट का दीदार करने में रोमांच का अहसास होगा। राजनांदगांव के उत्तरी इलाके की जनजाति समुदाय के लिए यह घाट विकास के सारे रास्ते भी खोलेगा।