गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गरियाबंद, 10 मार्च । महा शिवरात्रि पर भूतेश्वरनाथ धाम में बड़ी संख्या में भक्त पहुंच कर मनोवांछित फल की कामना कर जलाभिषेक करेंगे।
ज्ञात हो कि गरियाबंद मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी ग्राम मरोदा के घने जंगलों ंंके बीच प्राकृतिक शिवलिंग है जो की भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है। लोगों का कहना है कि यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है। भूतेश्वर नाथ हर साल बढ़ती है। इस शिवलिंग की लम्बाई जमीन से लगभग 18 फीट उंचा एवं 20 फीट गोलाकार है। राजस्व विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इसकी ऊंचाई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ़ रही है।
मान्यता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती- बाडी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत में घूमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडऩे की आवाज आती थी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई। ग्राम वासियों ने भी शाम को उक्त आवाजें अनेक बार सुनी तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की। परतु दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की आस्था बढऩे लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे।
इस बारे में पारागांव के लोग बताते हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे धीरे इसकी ऊंचाई एवं गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे- धीरे जमीन के उपर आती जा रही है। यहीं स्थान भुतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है।
यह भी किवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी। दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। घने जंगलों के बीच स्थित होने के बावजूद यहां पर सावन महीने में कावडिय़ों का बढ़ा जत्था का मेला लगता है। इसके अलावा महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां विशाल मेला लगता है।