बालोद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दल्लीराजहरा, 23 मार्च। सोमवार 22 मार्च को जल दिवस के अवसर पर जनप्रतिनिधियोंं एवं नागरिकों ने जल संरक्षण के लिए अपने विचार व्यक्त किए हैं।
नगरपालिका अध्यक्ष शीबू नायर ने कहा कि बिना पानी किसी भी जीव का गुजारा नहीं हो सकता इसलिए हम सभी को इस धरती से मिलने वाले पानी का सदुपयोग करना जरूरी है। आज समय की मांग है कि हर हाल मेें जल का संरक्षण किया जाए। प्रकृति उदार है मानव जीवन के लिए उसने सब कुछ दिया है पर आज स्वयं मानव ही अपना दुश्मन बन गया है। नदियों व तालाबों मेंं जल प्रदूषण, जंगलों से वृक्षोंं की कटाई, पर्यावरण प्रदूषण आदि मानवीय भूल है जिसके कारण वर्षा की अनिश्चितता बढ़ चली है। जल संरक्षण करना मानवीय जीवन के लिए अति आवश्यक हो गया है। जिसके लिए जनता में जागरूकता पर्याप्त नहीं है बल्कि संदेश एवं नारोंं से हटकर शासन को अतिशीघ्र जल संरक्षण पर कार्य करना चाहिए। जंगलों की सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि क्षेत्र में अधिकाधिक वर्षा कराई जा सके और भू-जल स्तर को बढ़ाया जा सके।
ग्रीन कमाण्डो विरेन्द्र सिंह ने कहा कि दिन प्रतिदिन गिरते भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए वर्षा से प्राप्त जल की एक एक बूंद को भूमि के तल तक प्रतिरोपित करना होगा। इसके लिए घर की छत एवं आसपास गिरने वाले वर्षा जल को सोखता, डबरा अथवा कुंओं के माध्यम से भूमि तल पर पहुंचाया जा सकता है। नए तालाबों एवं कुंओं का निर्माण, पुराने तालाबों का गहरीकरण, नदी व नालोंं पर चेक डेम बनाकर वर्षा जल का संरक्षण कर उपयोगी बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त समय समय पर प्राकृतिक जल स्त्रोतोंं की सफाई एवं अधिकारिक पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
लौह अयस्क खदान समूह के मुख्य महाप्रबंधक तपन सूत्रधार ने जल दिवस के अवसर पर अपना विचार रखते हुए कहा कि शहरों मेें जल स्तर बढ़ाने एवं वर्षा जल का सदुपयोग करने के लिए सभी मकानों और निजी अथवा शासकीय कार्यालयों मेेें अनिवार्य रूप से रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा गांवों में तालाब निर्माण, पुराने तालाबों का गहरीकरण व रखरखाव के अलावा जंगल क्षेत्रों मेंं प्राकृतिक जल स्त्रोंतोंं की सुरक्षा की जानी चाहिए। साथ ही जंगलोंं के क्षेत्रों एवं रहवासी क्षेत्रोंं मेेंं अधिक से अधिक पौधारोपण किया जाना चाहिए।
महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्री प्रतिनिधि पीयूष सोनी ने विश्व जल दिवस पर अपना विचार रखते हुए कहा कि वर्तमान में विश्व के सभी देशों में पानी का संकट गहराता जा रहा है इसलिए पानी का दुरूपयोग रोकने के लिए लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत महसूस की जा रही है। चौक चौराहों में नुक्कड़ सभा व नाटक मंचन के जरिये आमजनता को जल का महत्व समझाने, शासन प्रशासन सामाजिक, राजनीतिक कला जत्था सभी मिलकर प्रयास करेंं। नलों से व्यर्थ पानी बहने पर रोक लगाना होगा। वर्षा के जल का संग्रहण युद्ध स्तर पर करने की जरूरत है। घर घर से पानी बचाओ अभियान की शुरूआत होनी चाहिए।
नगरपंचायत चिखलाकसा के सांसद प्रतिनिधि विक्रम धु्रवे ने कहा कि आम आदमी को पानी का मोल समझना होगा। वर्तमान में लगातार भूमि का घटता जल स्तर खतरे की घंटी है। हम अगर अभी भी जागरूक नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ी के लिए पानी एक गंभीर समस्या के रूप मेंं सामने आ जाएगी। अत: समाज को हरसंभव उपया करने होंगे। वर्तमान में शासन एवं बीएसपी प्रबंधन के अलावा आम नागरिक जितने भी मकान अथवा अपना कार्यालया बनाएं उसमें अनिवार्य रूप से रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है। भू-जल स्तर में लगातार आ रही गिरावट को देखते हुए जल संरक्षण करना मानवीय जीवन के लिए अति आवश्यक हो गया है जिसके लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार को भी मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
विश्व जल दिवस पर गृहिणी प्रमिला पटेल ने कहा कि जल का संरक्षण कैसे हो इस पर चिंतन करना चाहिए। रोजमर्रा की जिंदगी में घर से लेकर बाहर तक पानी सभी लोगोंं के साथ होता है। वर्तमान में साल दर साल हमारे धरती में उपलब्ध जल का स्तर कम होता जा रहा है जो आने वाले पीढ़ी के लिए जल के मामले में गंभीर चिंतन का विषय बन गया है इसलिए हम सभी का उद्देश्य जल संरक्षण होना चाहिए। हर घर परिवार के सभी सदस्यों को पानी के सरंक्षण के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है। खासतौर पर घर की महिलाएं अपने परिवार सदस्यों को पानी बचाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। बच्चों को पानी के सदुपयोग के बारे में समझा सकती हैं। आने वाले समय में पानी के संकट से बचने का प्रयास हम सभी को आज और अभी से करने की जरूरत है।
जल संरक्षण के प्रति चिंता जताते हुए शिक्षिका अंजू कुमारी ने कहा कि आम आदमी को पानी का मोल समझना होगा। वर्तमान मेेंं भूमि का जल स्तर लगातार घटता जा रहा है क्योंकि हर गांव शहर के अनेक स्थानोंं पर पक्के मकान निर्माण हो रहे हैं। हर गांव शहर के गलियोंं में सीमेंटीकरण का कार्य हो रहा है। ऐसे में इस धरती पर वर्षा जल जितनी मात्रों में संचित होनी चाहिए वह संचित न होकर अन्यत्र बह जाता है। खेतोंं में पूर्व वर्षों में वर्षा जल का भराव होता था जो भू-जल स्तर को बढ़ाने में सहायक था लेकिन अनेक शहरों मेेें खेतोंं की जमीन में बड़े बड़े बिल्डिंग निर्माण की प्रथा बढ़ चली है जिससे भी भू-जल स्तर में गिरावट आ रही है। अक्सर देखा जाता है कि नलों में टोटियां टूटे होने के कारण पानी व्यर्थ बहते रहता है लेकिन उन टोटियों को नया लगाने के लिए न तो आम नागरिक ध्यान देते हैं और न ही नगरपालिका समय पर ध्यान देती है। ऐसे स्थिति मेेें सुधार लाकर पानी केे व्यर्थ बहाव को रोके जाने की जरूरत भी है।