धमतरी
गंभीर कोरोना मरीजों के इलाज में प्लाज्मा बना संजीवनी
10-Apr-2021 3:46 PM
कुछ प्लाज्मा डोनरों से ‘छत्तीसगढ़’ ने की बात
जमाल रिजवी
कुरुद, 10 अपै्रल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों की बढ़ती संख्या के आगे शासकीय एवं निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाएं भी कम पड़ रही है। मांग बढऩे से इस बीमारी में काम आने वाली जरुरी जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में कुछ भले मानुष जोखिम उठा अस्पतालों में अपनी सांसों के लिए मौत से जंग लड़ रहे कोरोना मरीजों को अपना प्लाज्मा दान कर जीवन और मृत्यु की इस लड़ई में रसद पहुंचाने का काम कर रहे हैं ।
कोरोना के समय जरुरतमंदों को मास्क, सेनेटाइजर, खाद्य सामग्री वितरित कर प्रशासन का सहयोग करने वाले वारियर्स योगेश चंद्राकर खुद कोरोना पाजेटिव हो गए थे, कोविड की दूसरी लहर में कोरोना के चपेट में आए एक गंभीर मरीज को रायपुर जाकर अपना प्लाज्मा दान करने वाले इस युवा समाज सेवी का कहना है कि कोरोना का संक्रमण आज इतना हावी हो चुका है कि देश प्रदेश में चिकित्सा संसाधन कम पड़ रहे हैं। गंभीर मरीजों के लिए सिर्फ दो विकल्प कारगर है पहला वेंटिलेटर और दूसरा प्लाज़्मा थैरेपी से इलाज। वेंटिलेटर की व्यवस्था प्रशासन के जिम्मे है, पर प्लाज्मा की व्यवस्था समाज से हो सकती है। एक गंभीर कोरोना पीडि़त व्यक्ति के लिए आपके द्वारा दिया गया प्लाज्मा संजीवनी बन सकता है।
किसी अंजान व्यक्ति को अपना प्लाज्मा दान करने वाले रायपुर के नवन जैन ने बताया कि मैंने अपने स्व. दादा फूलचंद लोढ़ा से सिखा है कि हमे सदैव हर तरह से लोगो की सेवा करने का प्रयास करना चाहिये। मैंने प्लाज्मा देकर किसी की जान बचाने का प्रयास किया इसमें मुझे अद्भभुत सुख मिला है,मेरा सभी सक्षम लोगो से निवेदन है कि आप भी इस जनसेवा की मुहिम में अपना योगदान देवे।
राजधानी की महिला डोनर सावित्री चक्रमूर्ति ने कहा कि सभी के जीवन का उद्देश्य किसी के काम आ जाये यहीं होना चाहिए। मुझे किसी के जीवन बचाने का सौभाग्य मिला । मैं इससे अत्यंत हर्षित हूं। साथ ही इस विषम परिस्थितियों में सभी से कोरोना नियमों का पालन एवं सभी की सहायता हेतु प्रतिबद्ध रहने की आशा करती हूं।
आईसीयू में भर्ती कुरुद के व्यवसाई सिराज भाई ने स्वास्थ्य में सुधार आने पर अपनी प्लाज्मा डोनर पूजा सचदेवा का हाथ उठाकर आभार जताया है।
कुरुद राइस मिल एसोसिएशन के संरक्षक अनिल चन्द्राकार भी शुक्रवार को अपने बड़े भाई को प्लाज्मा दान करने गए थे, जहां डाक्टरों ने उन्हें बताया कि वैक्सीन लगवाने के बाद प्लाज्मा कारगर साबित नहीं होता ।
कुरुद के ही खिरीराज साहू ,नीरज चन्द्राकर भी प्लाज्मा दान के लिए आगे आए। उनका कहना है कि जो लोग कोरोना संक्रमण से स्वस्थ हो चुके हैं उनके शरीर में एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है उनका प्लाज्मा किसी गंभीर कोरोना मरीज के लिए जीवनदायी हो सकता है। ऐसे लोग इंसानियत की रक्षा के लिए एक प्रबल माध्यम हो सकते हैं ।
सालों से ब्लड डोनेशन कैंप चला अब तक हजारों जरुरतमंदों तक ब्लड पहुंच चुके वन्दे मातरम् समिति प्रमुख भानु चन्द्राकार ने प्लाज्मा डोनर के नाम से एक व्हाटशाप ग्रुप बनाकर उसमें प्रदेश के सैकड़ों लोगों को जोड़ा है। जिसके माध्यम से प्लाज्मा दान दाताओं को तैयार कर गंभीर मरीजों तक मदद पहुंचाने में लगे हैं। उनका कहना है कि जिस तरह हम रक्तदान करके लोगों का जीवन बचाते आये हैं ठीक उसी तरह आसानी से प्लाज्मा डोनेट कर किसी की जिंदगी बचा पीडि़त परिवार की खुशियां वापस ला सकते हैं।
उन्होंने माना कि कोरोना महामारी के इस मुश्किल घड़ी में डोनर की तलाश काफी मुश्किल काम सिद्ध हो रहा है। ग्रुप्प मेम्बर्स के सहयोग से यह सेवा कार्य निरंतर जारी हैै। मैं उन सभी डोनरों का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने पीडि़त मानवता की रक्षा में योगदान दिया।
प्रायवेट सेक्टर में वैैैैक्सिन लगाने अधिकृृत प्रदीप हास्पिटल कुरुद के संचालक डॉ. प्रदीप साहू ने बताया कि मनुष्य के रक्त को विशेष मशीनों में छानकर उसमें से प्राप्त पीले गाड़़े द्रव्य को प्लाज्मा कहते हैं, इसमें मौजूद कुछ प्रोटीन मनुष्य के शरीर में कीटाणुओं से लडऩे के लिए बनाया गया प्रतिरक्षक प्रोटीन होता है, जिसे एंटीबॉडी कहा जाता है । जो मरीज कोरोना से ठीक हो चुका होता है उसके शरीर में यह एंटीबॉडी भरपूर मात्रा में होती है । जिसे प्लाज्मा के रूप में निकाल ऐसे मरीजों को रक्त की तरह चढ़ाया जाता है जो कोरोना बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हैं।
इसके परिणाम को लेकर पूछे जाने पर काबिल डॉ.श्री साहू का कहना है कि इस अवधारणा को कई अस्पतालों में अच्छे परिणाम के साथ इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं हैंं, इस विधा को शुरुआती और कम सीरियस मरीजों में ही इस्तेमाल किया जा सकता है। प्लाज्मा दान करने वाले के शरीर में एंटीबॉडी प्रचुर मात्रा में नहीं हुए तो इसका असर देखने को नहीं मिलता। वर्तमान में उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से यही कहा जा सकता है कि यह एक अच्छा साधन साबित हो सकता है अगर इसे सही समय पर इस्तेमाल किया जाए।