बलौदा बाजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भाटापारा, 16 अप्रैल। राजस्व मंडल बिलासपुर द्वारा स्व.दाऊ कल्याण सिंह के मृत्यु उपरांत उनकी पत्नियां स्व. जनक नंदनी व स्व. सरजावती के नाम से धारित भूमि को नि:संतान मौत होने के कारण उनके नाम पर दर्ज समस्त भूमि को राजसात कर शासकीय मद में दर्ज करने के आदेश को उच्च न्यायालय ने खारिज करते हुए दाऊ राममूर्ति एवं उसके परिवार को वारिस मानते हुए किए गए हस्तांतरण को सही माना है।
प्राप्त जानकारी अनुसार 13 अप्रैल को उच्च न्यायालय द्वारा अनूप वगैरह के द्वारा उच्च न्यायालय में राजस्व मंडल के खिलाफ दायर किए याचिका में फैसला देते हुए राजस्व मंडल के फैसले को उचित न ठहराते हुए उसके राजसात करने के आदेश को खारिज करते हुए अनूप कुमार वगैरह को दाउ कल्याण सिंह का वारिस मानते हुए हस्तांतरण को सही ठहराया है।
विदित हो कि भाटापारा क्षेत्र के ग्राम हथनी, औरेठी व पटपर तथा भाटापारा में स्व. दाऊ कल्याण सिंह की काफी जमीने स्थित थी उनके मृत्यु उपरांत ग्राम औरेठी, हथनी, भाटापारा एवं पटपर की जमीनें जनक नंदनी व सरजावती दोनों के नाम पर दर्ज हुआ। स्व.जनक नंदनी बाई व स्व. सरजावती के निधन के बाद दोनो की मौत नि: संतान होने के कारण दर्ज समस्त भूमि कोई वारिस न होने के कारण वर्ष 1983 में राजसात की कार्यवाही करते हुए माल जमादार द्वारा मौके पर जाकर कब्जा ले लिया गया था। राजसात की कार्यवाही के विरूद्ध आपत्ति दर्ज कराते हुए अशोक कुमार अग्रवाल द्वारा अपने पिता स्व. राममूर्ति अग्रवाल के पक्ष में एक वसीयतनामा पेश कर स्व. सरजावती का वारिसान बताते हुए समस्त जमीन को राममूर्ति अग्रवाल के नाम दर्ज करने का दावा पेश किया जिसे तत्कालीन तहसीलदार ने खारिज करते हुए वसीयतनामा को मान्यता न देते हुए राजसात की कार्यवाही को उचित बताया। इस दरम्यिान में उक्त प्रकरण एसडीएम से लेकर विभिन्न न्यायालयों में चलाया गया जहां वसीयतनामा को किसी भी न्यायालय ने वैध न मानते हुए टिप्प्णी दी। 1985 में तत्कालीन राजस्व निरीक्षक द्वारा वसीयतनामा के आधार पर नामांतरण पंजी में 1 जनवरी 1985 को सभी राजसात की गई जमीनों को सरजावती के स्थान पर राममूर्ति अग्रवाल के नाम पर नामांतरण किया गया। नामांतरण पंजी में राममूर्ति के आम मुख्तियार के रूप में अनूप कुमार अग्रवाल का नाम दर्ज है जिसको जनहित याचिका के तहत उच्च न्यायालय में वर्ष 2017 में नितिन आहपजा वगैरह ने चुनौती दी। जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा निराकरण हेतु राजस्व मंडल को निर्देशित किया। राजस्व मंडल ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया है कि व्यवहार न्यायालय के उक्त निर्णयों के परिपेक्ष्य में राममूर्ति अग्रवाल एवं उनके वारिसानों को वर्णित भूमियों पर कोई स्वत्व प्राप्त नहीं हुआ है। वर्ष 1969 में प्रकरण के द्वारा सरजावती के नाम की भूमियां भारत सरकार में निहीत कर दी गई थी। जनक नंदनी एवं सरजावती के द्वारा एक ट्रस्ट का निर्माण वर्ष 1959 में किया जाना एवं ट्रस्टी के रूप में राममूर्ति को दर्शाया गया है और राममूर्ति के मृत्यु के बाद महज एक शपथ पत्र के बाद ट्रस्ट की समस्त भूमियां अनूप कुमार वगैरह के नाम पर हस्तांतरित कर दी गई जो विधि विपरीत है। प्रकरण में ऐसा कोई अभिलेख नहीं है जो यह प्रमाणित हो सके कि जनक नंदनी ट्रस्ट का निर्माण विधि अनुसार हुआ हो।
अत: तहसीलदार भाटापारा को आदेशित किया जाता है कि दाऊ कल्याण सिंह की पत्नी सरजावती एवं जनक नंदनी के नि: संतान मौत होने के कारण उनके नाम पर दर्ज समस्त भूमि को राजसात कर शासकीय मद में दर्ज करने का आदेश दिया जिसके विरूद्ध अनूप कुमार वगैरह ने उच्च न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया था जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा अपना फैसला सुनाते हुए राजस्व मंडल के फैसले को खारिज करते हुए अनूप कुमार वगैरह को वारिस मानते हुए हस्तांतरण को सही ठहराया है।