रायगढ़

90 दिन, 1216 जगह आग, जंगल जल कर खाक
17-Apr-2021 6:07 PM
90 दिन, 1216 जगह आग, जंगल जल कर खाक

नरेश शर्मा
रायगढ़, 17 अप्रैल ('छत्तीसगढ़' संवाददाता)।
वर्ष 2021 की गर्मी रायगढ़ वन मंडल के लिए काफी खतरनाक साबित हो गई। यहां तीन माह मतलब 90 दिनों में 1216 जगह के जंगलों में आग लग चुकी है और इस आकड़े में महज सौ जगह ही ऐसा है, जो जंगल के बाहर का क्षेत्र है, शेष 1116 जगह वनभूमि है।

अगर जनवरी से मार्च माह में दावानल (जंगल की आग) को लेकर रायगढ़ वन मंडल के रेंज स्तर के आकड़ों पर नजर डाली जाए, तो सबसे खराब स्थिति रायगढ़ वन परिक्षेत्र की रही है, जबकि इससे पूर्व ऐसी स्थिति रायगढ़ की देखने को नहीं मिली थी। इसके बाद सारंगढ़, घरघोड़ा, बरमकेला गोमर्डा, तमनार व सारंगढ़ गोमर्डा और अंतिम में खरसिया वन परिक्षेत्र की है। अब स्थिति यह है कि जंगल में आग लगने के लिए कोई खास जगह ही नहीं बची है। जब जंगल धू-धू कर जल रहा था, तो रेंज अफसर से लेकर हर अधिकारी आग पर काबू पा लेने की बात कह रहे थे, पर उन अधिकारियों के सभी दावे आज खोखले साबित हो चुके हैं। अधिकारी उन लोगों पर आरोप लगाने में लगे हैं, जो महुआ बिनने के लिए जंगल जाते हैं और किसी पेड़ के नीचे महुआ के लिए आग लगाते हैं, पर अपने उन कर्मचारियों को दोषी नहीं मानते, जो जंगल जाने से ही परहेज करते हैं। जबकि ईमानदारी से अगर बीटगार्ड जंगल का भ्रमण करे, तो दावानल के साथ ही वन अपराध में काफी कमी आएगी।

एक नहीं बार-बार लगी आग
वन मंडल के हर रेंज में एक से दो बार एक ही जगह पर आग लगी। अगर बात सिर्फ रायगढ़ वन परिक्षेत्र की हो, तो रायगढ़ के गजमार पहाड़ी में चार से पांच बार आगजनी की घटना घटित हुई।रायगढ़ वन परिक्षेत्र के गजमार पहाड़ी, लोईंग, खैरपुर, बोइरदादर, रेगड़ा सहित सभी बीट के जंगल में आग लगने की घटना घटित हुई। यही नहीं रेल कॉरीडोर का कूप जलने व लाम्हीदरहा प्लांटेशन जलने का भी मामला पिछले दिनों सुर्खियों में था।

विभाग की नजर में सूखे खास पत्ते ही जले
विभाग के शासकीय दस्तावेजों में आग से सिर्फ सूखे घास पत्ते ही जलने का उल्लेख किया गया है, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल विपरित है। जानकारों की माने तो आग से सबसे ज्यादा नुकसान वन व वन्यप्राणियों दोनों को होता है। वन्यप्राणी विचलित होकर इधर-उधर भागते हैं और कुत्तों व ग्रामीणों का शिकार बन जाते हैं। वहीं बांस व अन्य इमारती पेड़ भी जल जाते हैं। साथ ही पक्षियों के अंडे सहित कई प्रकार के छोटे कीड़े मकोड़ों की भी इससे जानें चली जाती है।

फायर वाचर के बाद भी जल रहे जंगल
सभी वन मंडल को शासन द्वारा अग्नि सुरक्षा के नाम पर राशि आबंटित की जाती है। साथ ही हर बीट में फायर वाचर रखने की भी अनुमति मिलती है। जंगल को आग से बचाने के लिए फायर लाईन कटाई की बात कही जाती है तो हर बीट में फायर वाचर रखने के बाद भी दो से चार बार उस बीट में आग लग जाना कई प्रकार के सवालों को जन्म दे रहे हैं।

वर्सन
नाविद सुजाउद्दीन, सीसीएफ बिलासपुर का कहना है कि चार महीने के लिए कैंपा मद से फायर वाचर मिलते हैं। जंगल को आग से बचाने के लिए फायर लाईन कटाई करते हैं। सेटेलाईट से आग की सूचना मिल जाती है। उसके बाद हम भी मानिटरिंग करते हैं। महुआ सीजन में ज्यादा आग की समस्या आती है। स्टाफ जंगल में रहते हैं और अगर कहीं स्टाफ बिल्कुल जंगल नहीं जाता है, तो उस पर विभागीय नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

प्रणय मिश्रा, वन मंडलाधिकारी, रायगढ़ का कहना है कि दावानल को रोकने के लिए प्रारंभ में फायर लाईन कटाई करते हैं। सेटेलाईट से या फिर आग की सूचना मिलने के बाद वन प्रबंधन समति के माध्यम से आग पर काबू पाया जाता है।

वन मंडल,  3 माह -1216 दावानल
रायगढ़ उपडिविजन -556 दावानल
घरघोड़ा उपडिविजन -400 दावानल
गोमर्डा अभ्यारण्य -260 दावानल

जनवरी से मार्च वन परिक्षेत्र दावानल संख्या
रायगढ़ 298
सारंगढ़ 258
घरघोड़ा 176
बरमकेला गोमर्डा 142
तमनार 143
सारंगढ़ गोमर्डा 118
खरसिया 81

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