दुर्ग

94 से कम आया ऑक्सीजन सैचुरेशन तो तुरंत अस्पताल में भर्ती होइये, रिकवरी की संभावना होगी अधिकतम
23-Apr-2021 6:30 PM
94 से कम आया ऑक्सीजन सैचुरेशन तो तुरंत अस्पताल में भर्ती होइये, रिकवरी की संभावना होगी अधिकतम

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 23 अप्रैल।
पुरानी कहावत है कि नीम हकीम खतरे जान। फिर कोरोना जैसी बीमारी, ऐसे में यदि किसी मरीज के परिजन डॉक्टर की सलाह की उपेक्षा कर मरीज के ट्रीटमेंट पर अपना निर्णय लें तो मरीज की रिकवरी के लिए गंभीर खतरा हो सकता है। कोविड पर शासन की गाइडलाइन है कि 94 से कम आक्सीजन  सैचुरेशन आने पर मरीज को हॉस्पिटल की देखरेख में रखा जाना ही उसके स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। 

इस संबंध में होम आइसोलेशन कंट्रोल सेंटर की प्रभारी मेडिकल आफिसर डॉ. रश्मि भुरे ने विस्तार से जानकारी दी कि किस तरह होम आइसोलेशन की गाइडलाइन का पालन कर कोविड से रिकवरी का रास्ता सुनिश्चित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों को लगातार आक्सीजन सैचुरेशन की जाँच करनी है और 94 से कम आते ही काउंसलर को जानकारी देनी है तथा हास्पिटल में एडमिट होना है। 

ऐसा करने से रिकवरी की संभावना काफी बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि देखा गया है कि कुछ मामलों में मरीज के परिजन आक्सीजन लेवल डाउन होने पर घर में ही आक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था में लग जाते हैं जबकि हास्पिटल में आक्सीजन बेड्स के साथ ही मेडिकल सुपरविजन भी होता है और मरीज की मेडिकल हेल्थ के मुताबिक दवा भी दी जाती है। 

मरीज का ऑक्सीजन लेवल डाउन होने के साथ ही उनके इलाज के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक और स्टेराइड प्लान करते हैं घर में इस तरह का प्लान संभव ही नहीं है जिसके कारण से पेशेंट की स्थिति बिगड़ जाती है। ज्यादा खराब स्थिति में अस्पताल आने में रिकवरी की संभावना घट जाती है। 

डॉ. भुरे ने बताया कि कई बार मरीज के परिजन आक्सीजन लेवल ड्राप होने की जानकारी नहीं देते और कई बार फोन भी बंद कर देते हैं। ऐसी स्थिति उनके मरीजों के लिए घातक हो सकती है। डॉ. भुरे ने कहा कि जिले में पर्याप्त संख्या में आक्सीजन बेड्स उपलब्ध हैं। अतएव मरीजों के परिजनों को चाहिए कि 94 से नीचे आक्सीजन लेवल आते ही किसी तरह का जोखिम नहीं ले।

जानिये अस्पताल आने से पेशेंट के ट्रीटमेंट में क्या बेहतर डॉ. भुरे ने कहा कि कोविड मरीजों के लिए एकमात्र ऑक्सीजन ही इलाज नहीं है। ऑक्सीजन की उपलब्धता हो जाने के बाद मेडिसीन भी स्थिति के मुताबिक दिया जाना जरूरी है। आक्सीजन लेवल के अनुसार और कोमार्बिडिटी (बीपी, शुगर, थायराइड जैसी बीमारियां) देखते हुए डॉक्टर मेडिसीन प्लान करते हैं। मरीज की स्थिति के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाएं तय की जाती हैं। स्टेराइड्स तय किये जाते हैं। सही मौके पर सही दवा के प्रयोग से रिकवरी की संभावना काफी बढ़ जाती है।

घर में रह गए तो किस तरह के नुकसान की आशंका- पहली बात तो यह कि मरीज के घर में रहने से उपयुक्त दवा का प्लान नहीं किया जा सकता और मरीज केवल आक्सीजन के भरोसे रहेगा। डॉ. रश्मि ने दूसरी महत्वपूर्ण बात यह बताई कि मरीज के आक्सीजन लेवल के मुताबिक उसे आक्सीजन दिये जाने का प्लान हास्पिटल में होता है। पहले चरण में आक्सीजन सिलेंडर के माध्यम से, फिर इसके बाद थोड़ी गंभीर जरूरत होने पर हाई कंसट्रेटर मास्कर के माध्यम से आक्सीजन दिया जाता है। 

तीसरा और चौथा चरण एनआईवी और वेंटिलेटर का होता है। कई बार मरीज के परिजन पेशेंट को घर में ही रखते हैं मरीज को पहले चरण की जरूरत तो सामान्य आक्सीजन सिलेंडर से पूरी हो सकती है लेकिन दूसरे, तीसरे और चौथे चरण के लिए घर में कोई व्यवस्था नहीं होती। यदि मरीज आक्सीजन लेवल के डाउन होने के शुरूआती स्टेज में ही अस्पताल आ जाए तो इस बात की न्यूनतम आशंका होगी कि मरीज तीसरे या चौथे चरण तक पहुंचे। 

उन्होंने कहा कि सैचुरेशन कम होने के बावजूद घर में मरीजों को रखे रहने के निर्णय का असर मरीज के सेहत पर पड़ता है और तेजी से आक्सीजन लेवल कम होने से फेफड़ों की जो क्षति होने लगती है उसे ठीक नहीं किया जा सकता।

रेमडेसिविर लाइफ सेविंग ड्रग नहीं- डॉ. भुरे ने बताया कि लोगों में भ्रम है कि रेमडेसिविर दवा दे देने से ही मरीजों की जान बच जाएगी जबकि रेमडेसिविर लाइफ सेविंग ड्रग नहीं है। अभी यह अंडर ट्रायल दवा है। अलग-अलग मरीजों में इसका अलग-अलग असर होता है। रेमडेसिविर के साथ ही अनेक स्टेराइड और एंटीबायोटिक दवाएं हैं, जो मरीजों को दी जाती हैं और इनसे मरीज की रिकवरी तेज होती है।
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news