बिलासपुर

विकास के लिए पर्यावरण का दुरुपयोग ही विकराल समस्या का कारण- प्रो. पाठक
24-Apr-2021 7:45 PM
विकास के लिए पर्यावरण का दुरुपयोग ही विकराल समस्या का कारण- प्रो. पाठक

   पृथ्वी दिवस पर डॉ. सीवी रमन विश्वविद्यालय में वेबिनार  

बिलासपुर, 24 अप्रैल। पृथ्वी दिवस के अवसर पर डॉ सी.वी. रामन् विश्वविद्यालय  के सामाजिक विज्ञान भूगोल विभाग एवं  बिलासा शासकीय गर्ल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय  बिलासपुर के भूगोल विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन वेबीनार " भारतीय चिंतन में सतत विकास की अवधारणा और कोविड - 19 " विषय पर रखा गया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता बलिया उत्तर प्रदेश के  शासकीय महाविद्यालय से रिटायर प्राचार्य गणेश  कुमार पाठक ने कहा  कि मानव अपने विकास  के लिये पर्यावरण का दुरुपयोग कर रहा है, और वर्तमान में इस विकट समस्या में यह क्रियाकलाप भागीदार है। भावी पीढ़ी को  पर्यावरण  संरक्षित और संबंधित करने के लिए  तैयार करना होगा। प्रो. पाठक ने भारतीय मान्यताओं और सांस्कृतिक विशेषताओं के वैज्ञानिक महत्व को भी समझाया।

बिलासा शासकीय गर्ल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय बिलासपुर के प्राचार्य प्रो. एस. एल. निराला ने मानवीय गतिविधियां और पर्यावरणीय प्रभाव के बीच अंतर्संबंधों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि मानव के वर्तमान क्रियाकलाप से ही उसके भविष्य का निर्धारण होता है। कार्यक्रम में डॉ. सी. वी. रामन् विश्वविद्यालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संकाय के प्राचार्य प्रो. मनीष उपाध्याय द्वारा पर्यावरणीय प्रदूषण और मानवीय स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत व्याख्या की गई। प्रो. उपाध्याय ने बताया कि मनुष्य को किस प्रकार प्रकृति के साथ समायोजन बनाकर जीवन जीना चाहिए। कार्यक्रम के आरंभ में सेमिनार की संयोजक डॉ. सी. वी  रामन् विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष  प्रो. काजल मोइत्रा ने  सेमिनार की रूपरेखा पर प्रकाश डाला।
 
कार्यक्रम का संचालन प्रो. डॉ कावेरी दाभड़कर ने किया। वेबीनार में छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य प्रदेशों के प्राध्यापक एवं विधार्थी  सम्मिलित हुए। कार्यक्रम के संयोजक बिलासा शासकीय गर्ल्स महाविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डी.डी. कश्यप  ने आभार व्यक्त किया ।
 
कार्यक्रम में उपस्थित सीवीआरयू के कुलसचिव गौरव शुक्ला ने कहा कि कोविड-19 के कारण मनुष्य की जीवन शैली में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। एक अच्छे जीवन का निर्वाह पर्यावरण संतुलन के द्वारा ही संभव है। हमें प्रकृति के अनुसार ही अपने जीवन शैली को ढालना होगा नहीं तो ऐसे घातक बीमारियां मनुष्य प्रजाति के सामने काल के रूप में सामने होगी। 

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