राजनांदगांव

रमन की चुनावी लीड कम कर करूणा को मिली थी राष्ट्रीय राजनीति में सुर्खियां
27-Apr-2021 1:15 PM
रमन की चुनावी लीड कम कर करूणा को मिली थी राष्ट्रीय राजनीति में सुर्खियां

  कोरोना से दिवंगत कांग्रेस नेत्री ने पूर्व सीएम रमन को दी थी कड़ी टक्कर  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 27 अप्रैल।
वैश्विक महामारी कोरोना ने कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री करूणा शुक्ला की भी जान ले ली। वह कोरोना से संक्रमित थी। गुजरी रात को उन्होंने अंतिम सांस लेते दुनिया को अलविदा कह दिया। करूणा शुक्ला की प्रदेश के प्रमुख महिला नेत्रियों में गिनती होती थी। वह देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी थी। वह लंबे समय तक भाजपा सदस्य के तौर पर सक्रिय राजनीति में थी। भाजपा में जुड़े रहने के दौरान वह महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रही। साथ ही वह बलौदाबाजार से विधायक भी रही। जांजगीर-चांपा लोकसभा से उन्होंने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 

पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में स्व. श्रीमती शुक्ला के रिश्ते में कडुवाहट बढ़ती गई। डॉ. सिंह से राजनीतिक अनबन के चलते उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का रूख करते हुए नई राजनीतिक पारी की शुरूआत की। श्रीमती शुक्ला वैसे तो देश की राजनीति में अपनी पहचान बना चुकी थी। 2018 विधानसभा के चुनाव में उस वक्त और सुर्खियां मिली, जब वह राजनांदगांव विधानसभा से डॉ. रमन सिंह के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरी। इस चुनाव में उन्होंने डॉ. सिंह पर व्यक्तिगत हमले भी किए। यह भी सच है कि स्व. शुक्ला को चुनावी तैयारी करने के लिए काफी कम वक्त मिला। इससे परे उन्होंने डॉ. सिंह को चुनावी मोर्चे पर घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
 
राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें काफी सुर्खियां मिली।  चुनाव प्रचार में उन्होंने डॉ. सिंह की रणनीति को भेदने में पूरा जोर लगाया। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों में डॉ. सिंह बमुश्किल मात्र 16 हजार वोटों से ही जीतने में कामयाब हुए। जबकि डॉ. सिंह 2013 के विस चुनाव में करीब 36 हजार वोटों से विजयी हुए थे। विधानसभा चुनाव गणना के दौरान पूरे देश की निगाहें राजनांदगांव विधानसभा पर टिकी थी। 

ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर श्रीमती शुक्ला को पसंद किया गया। यही कारण है कि डॉ. सिंह को ग्रामीण मतदाताओं ने अस्वीकार कर दिया। शहरी मतदाताओं की मदद मिलने से डॉ. सिंह की हार टल गई। बताया जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार रहते स्व. शुक्ला ने डॉ. सिंह के कार्यकाल में हुए घोटालों और व्यक्तिगत नुकसान को चुनावी मुद्दा बनाया।  सत्ता में रहते हुए भी डॉ. सिंह को विधानसभा चुनाव में अपने आक्रमक तेवर से स्व. शुक्ला ने छकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इधर विधानसभा चुनाव में पराजय मिलने के बाद राज्य सरकार ने उन्हें ‘शैडो विधायक’ का दर्जा दिया था। यानी कांग्रेस सरकार में उनकी पसंद को काफी महत्व मिला। उनके सिफारिशों के आधार पर ही राजनीतिक और अन्य नियुक्तियां हुई। 

इधर उनके निधन से कांग्रेस जगत में शोक की लहर है। न सिर्फ कांग्रेसी बल्कि गैर कांग्रेसी दल के नेताओं ने भी गहरा दुख व्यक्त किया है। जिसमें महापौर हेमा देशमुख, शहर कांग्रेस अध्यक्ष कुलबीर छाबड़ा, पूर्व महापौर सुदेश देशमुख, डॉ. आफताब आलम, कांग्रेस प्रदेश महासचिव शाहिद भाई, अल्पसंख्यक आयोग सदस्य हफीज खान, श्रीकिशन खंडेलवाल, विवेक वासनिक, रमेश खंडेलवाल, अंजुम अल्वी, रईस अहमद शकील, जितेन्द्र मुदलियार, रूपेश दुबे समेत अन्य कांग्रेसी शामिल हैं।

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