रायपुर
रायपुर, 5 मई। कोरोना के इलाज के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के दो अलग-अलग अधिकारियों के दो अलग-अलग किस्म के आदेश में विरोधाभास गिनाते हुए प्रदेश के एक प्रमुख आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. संजय शुक्ला ने इनमें से एक आदेश की वैधानिकता पर सवाल उठाए हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र और राज्य सरकार के आदेशों में लोगों को कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए आयुर्वेदिक दवाइयों की सलाह दी गई है। इसी के अनुरूप छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य सचिव की ओर से पिछले बरस 11 मई को एक आदेश निकाल कर आयुर्वेदिक दवा और योग, प्राणायाम और कुछ आयुर्वेदिक उपायों के बारे में निर्देश जारी किए गए थे। डॉ. संजय शुक्ला ने इस आदेश का हवाला देते हुए, अभी सूरजपुर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के निकाले गए एक आदेश पर आपत्ति की है जिसमें उन्होंने अपने मातहत चिकित्सकों को आदेश दिया है कि अधिक खतरे वाले 60 वर्षों से अधिक के कोरोना मरीजों को कोई भी आयुर्वेदिक या पारंपरिक दवाइयां ना दी जाएं ।
इस बारे में डॉ. संजय शुक्ला का कहना है- 'सबसे पहले तो हाई रिस्क कोविड मरीज या 55 वर्ष से ज्यादा आयु के कोविड मरीज को होम आइशोलेशन में नहीं बल्कि कोविड सेंटर में एडमिट करने का प्रोटोकॉल है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आयुष मंत्रालय ने पिछले साल के नवम्बर माह में बकायदा नोटिफिकेशन के द्वारा कोविड महामारी के बचाव और उपचार में आयुर्वेद प्रोटोकॉल को शामिल किया है। कोरोना मरीजों के लिए आयुर्वेद दवाओं का उपयोग नहीं करना है, इस संबंध में कोई भी दिशानिर्देश भारत सरकार या छत्तीसगढ़ सरकार ने जारी नहीं किया है, तब एक जिले का मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी क्या अपने स्तर पर ऐसा आदेश जारी कर सकता है? जब कोई प्रोटोकॉल कोरोना से बचाव में प्रभावी है तब यह उपचार में किस तरह दुष्प्रभाव डाल सकता है अथवा नुकसानदायक हो सकता है? क्या उक्त सीएमओ के पास इस संबंध में क्लीनिकल रिसर्च डाक्यूमेंट अथवा अधिकृत गाइडलाइंस हैं। अभी भी अनेक होम आइसोलेशन कोरोना मरीजों के द्वारा एलोपैथी के साथ आयुर्वेद प्रोटोकॉल में शामिल दवाओं का उपयोग किया जा रहा है जिसके काफी सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं। देश के अनेक राष्ट्रीय संस्थानों में कोविड के एसिम्पटोमैटिक और माइल्ड रोगियों का उपचार भारत सरकार के द्वारा स्वीकृत आयुर्वेद प्रोटोकॉल के तहत किया जा रहा है।''
दूसरी तरफ इन 2 आदेशों को देखें तो इनमें एक बात साफ दिखाई पड़ती है कि पिछले वर्ष का आदेश प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए सामान्य लोगों को दिया गया एक सुझाव है जो कि कोरोना के इलाज के लिए नहीं है। और अभी 5 मई का यह नया आदेश अधिक जोखिम वाले उम्र दराज मरीजों को लेकर है कि उन्हें कोई आयुर्वेदिक दवा ना दी जाए। डॉ. संजय शुक्ला का कहना कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार का कोई भी आदेश आयुर्वेदिक दवाओं को ना देने के बारे में नहीं है। ऐसे में एक जिले के चिकित्सा अधिकारी अपने स्तर पर किसी आदेश में यह किस आधार पर लिख सकते हैं कि मरीज को आयुर्वेदिक दवा ना दी जाए? उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का एक आदेश वे ढूंढ कर देंगे जिसमें आयुर्वेदिक दवाओं को कोरोना के उपचार के लिए भी मंजूरी दी गई है, ना कि सिर्फ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए।