महासमुन्द
एक गुडिय़ा बेच रही थी, एक खरीद रही थी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 8 मई। यह तस्वीर नेहरू चौक गार्डन के बाहर महासमुंद की है। यहां एक छोटी सी बच्ची कुछ दिनों से इसी तरह नीचे बैठकर मिट्टी की गुड्डे-गुडिय़ां रोजाना बेच रही हैं। यह बच्ची सुभाष नगर कुम्हारपारा निवासी है। इनकेे माता-पिता गुड्डे-गुडिय़ां बनाते हैं, कुम्हार हैं। इसे छत्तीसढ़ी में पुतरा-पुतरी कहते हैं। बच्ची गुड्डे-गुडिय़ों के पसरे से थोड़ी दूर छांव में बैठी थीं, लेकिन पसरे पर संजीदगी से नजर रख रही थी।
‘छत्तीसगढ़’ ने बच्ची से पूछ ही लिया कि उनका नाम क्या है? बच्ची ने कहा-गुडिय़ा। पापा कहां हैं? उसने कहा-अभी खाना खाने गए हैं। घर में मां भी गुड्डे-गुडिय़ों में रंग भर रही है। उसने बताया, गुड्डे-गुडिय़े की जोड़ी लेने पर पचास रुपए देना पड़ेगा।
तभी लाल रंग की कार से एक प्यारी सी बच्ची अपने पिता के साथ उतरी, उसने गुड्डे-गुडिय़े को देखा, पसंद किया। पैसे देने की बारी आई, तब उसने अपने उम्र की गुडिय़ा बेचने वाली बच्ची को देेखा। कार से उतरकर गुडिय़ा खरीदने वाली बच्ची ने उसे देखा और सौ रुपए का नोट गुडिय़ा बेचने वाली बच्ची के हाथ में थमाया। गुडिय़ा बेचने वाली बच्ची ने सौ रुपए में से पचास रुपए काटकर पचास रुपए का नोट वापस किया तो पापा ने उंगली के इशारे में न कहा। गुडिय़ा बेचने वाली बच्ची मुस्कुराने लगी। कार वाले सज्जन का नाम नुरेन चंद्राकर है। उसने इस रास्ते से गुजरने वाले लोगों से इस दुुकान से गुडिय़ा खरीदने की अपील की और कहा कि लॉकडाउन के बीच खिलौने बेचती यह बच्ची बिना बोले ही बता रही है कि जीवन क्या है?