राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : काहे के विधायक
25-May-2022 4:09 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : काहे के विधायक

काहे के विधायक
आत्मानंद स्कूलों में एडमिशन के लिए मारामारी है। यहां एडमिशन लॉटरी सिस्टम से हो रहा है। बावजूद इसके एडमिशन के लिए सिफारिश करवाने लोग मंत्री-विधायकों के पास पहुंच रहे हैं। रायपुर के एक विधायक तो सिफारिश के लिए आए लोगों से काफी परेशान हैं।

विधायक लोगों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में सिफारिश से एडमिशन नहीं मिलता है। एडमिशन के लिए नियम तय है, लेकिन लोग मानने के लिए तैयार नहीं है। कुछ लोग तो यह कहते हुए विधायक पर गुस्सा निकाल रहे हैं कि एक एडमिशन नहीं करा सकते, तो काहे के विधायक हैं...। एक-दो लोग तो चुनाव के वक्त देख लेने की धमकी देते निकल गए।

एक-दो विधायक चाहते हैं  कि केंद्रीय विद्यालयों में एडमिशन के लिए सांसदों का कोटा तय है, उसी तरह आत्मानंद स्कूलों में भी एडमिशन के लिए विधायकों का कोटा तय होना चाहिए। दूसरी तरफ, इस शैक्षणिक सत्र से सांसदों ने भी खुद होकर अपना कोटा वापस कर दिया है। क्योंकि वो 10 विद्यार्थियों का ही एडमिशन करा सकते थे, लेकिन आवेदन सैकड़ों की संख्या में आता था। लोगों की नाराजगी झेलने के बजाए सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष से मिलकर अपना कोटा खत्म करा लिया।

हटाने का राज कुछ और
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. गिरीशचंद पाण्डेय की प्रतिनियुक्ति खत्म कर वापस रायपुर साइंस कॉलेज में भेज दिया गया। कहा जा रहा है कि मुआवजा प्रकरण में रविवि की संपत्तियों की कुर्की संबंधी विवाद को ठीक से हैंडल नहीं करने की वजह से गिरीशकांत को हटाया गया। मगर असल वजह कुछ और है।

संपत्ति कुर्क होने के लिए रविवि प्रशासन नहीं बल्कि जिला और राज्य सरकार की जिम्मेदारी ज्यादा थी। क्योंकि मुआवजा विवाद निपटाने की जिम्मेदारी इन दोनों पर रही है। चर्चा है कि हाईकोर्ट में शासन अपना पक्ष सही ढंग से रख नहीं पाया। इससे परे गिरीशकांत को हटाने के लिए कांग्रेस के एक सीनियर विधायक लगे थे। पहले विधायक महोदय की सिफारिश पर ही गिरीशकांत की रविवि में पोस्टिंग हुई थी। और बाद में रविवि प्रशासन के खिलाफ अलग-अलग तरह की शिकायतें आई, तो विधायक ही उन्हें हटाने के लिए दबाव बनाया। फिर क्या था विधायक की सिफारिश मान ली गई।

राशन कार्ड का चुनावी कनेक्शन
उत्तरप्रदेश में इन दिनों फर्जी राशन कार्डों का पता लगाने और उनको निरस्त करने का अभियान चल रहा है। 8 लाख से ज्यादा कार्ड मई माह में निरस्त कर दिए गए। अब लोगों से कहा गया है कि यदि आपने गलती से जान-बूझकर अपात्र होते हुए भी कार्ड बनवा लिया है, तो उसे सरेंडर कर दें। वहां संबंधित दफ्तरों में कार्ड वापस करने के लिए लाइन लगी है। यूपी में कहा जा रहा है कि मोहल्ले के नेताओं की सिफारिश पर अफसरों ने पहले बिना जांच मनमाने तरीके से कार्ड बना दिए, अब चुनाव खत्म हो चुका तो फर्जीवाड़े की बात उठ रही है।

छत्तीसगढ़ में भी ऐसा कुछ हो चुका है। सन 2013 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बड़ी संख्या में राशन कार्ड बनाए गए। तब कुल राशन कार्डों की संख्या 72 लाख पहुंच गई थी। तकरीबन आधी आबादी राशन कार्ड से लाभ पाने के दायरे में आ गई थी। चुनाव खत्म होने के बाद इनमें से 9 लाख कार्ड निरस्त कर दिए गए। सामान्य वर्ग को भी राशन देना बंद कर दिया गया। फर्जी राशनकार्डों के तार फिर नान घोटाले से भी जुड़े। एक प्रमुख आरोपी शिवशंकर भट्ट ने करीब तीन साल पहले कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा कि सन् 2013 में तत्कालीन सीएम और खाद्य मंत्री के दबाव में करीब 21 लाख फर्जी कार्ड बनाए गए। इससे सरकार को हर साल करीब 3 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचा। सरकार कांग्रेस की आई, तब ईओडब्ल्यू ने फर्जी राशन कार्ड मामले में एक एफआईआर दर्ज की। उसकी जांच में कहा गया कि सन् 2013 से 16 के बीच 11 लाख निरस्त राशन कार्डों के नाम पर अनाज का उठाव हुआ। इससे सरकार को 2700 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। कुल बोगस राशनकार्ड ईओडब्ल्यू के अनुमान में 14 लाख से अधिक थे।

कांग्रेस सरकार बनने के बाद नए सिरे से कार्ड बनाए गए। इसमें सामान्य परिवारों को भी राशन लेने की पात्रता मिल गई। ऐसी चुनावी घोषणा भी थी। नई सूची भी छोटी नहीं बनी। करीब 65 लाख कार्ड बनाए गए हैं। इनमें 6.50 लाख सामान्य श्रेणी के परिवार हैं। जब 2015 में फर्जी राशन कार्ड निरस्त किए गए थे तब सामान्य श्रेणी के कार्ड करीब 3 लाख थे। अब दोगुने से अधिक हैं।

कांग्रेस सरकार के दौर में बने सभी राशन कार्ड सही ही हों, यह भी जरूरी नहीं है। बीते साल मार्च माह में वन नेशन वन कार्ड स्कीम से जोडऩे के लिए जब इन कार्डों की छानबीन की जा रही थी। उसमें पता चला के 25 लाख से ज्यादा राशन कार्डों में आधार नंबर गलत लिखा गया है। हो सकता है इनमें से कुछ ने गलती कर दी हो, पर ऐसे भी थे जिन्होंने दो-दो कार्ड बनवा लिए। ऐसे कार्ड कुछ निरस्त भी किए गए, पर ज्यादातर लोगों को त्रुटि सुधारने का मौका दिया गया। दरअसल, सरपंच, पंच, पार्षद  हर कोई चाहता है कि उसके इलाके में ज्यादा से ज्यादा कार्ड बनें। समर्थक बनाकर रखने का यह एक आसान सा मौका होता है। शायद ही कोई एक बार कार्ड बनवा लेने के बाद उसे सरेंडर करता होगा। फर्जी राशन कार्ड में जेल तक की सजा है। यूपी में इस प्रावधान का इस्तेमाल करने की चेतावनी भी दे दी गई है। अपने यहां कह तो रहे हैं कि लोगों के पास पैसा पहले से अधिक आ रहा है, पर कार्ड की संख्या नहीं घट रही है।

और यहां 5 रुपये किलो गोबर
कुछ दिन पहले बीजापुर जिले के एक किसान मंटू राम कश्यप की खबर आई थी जिसमें उसने बताया था कि वह और उसकी पत्नी रात में बारी-बारी गोबर की चौकीदारी करते हैं। वजह क्योंकि यह गौठानों में बिक रहा है। गोबर से छत्तीसगढ़ में तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। वर्मी कंपोस्ट, दीए, गो कास्ट, गैस, बिजली आदि। जलवायु परिवर्तन के संकट से गुजर रहे लोगों को गोबर से पोते हुए दीवार जरूर याद आते होंगे जो अभी भी गांवों में देखने को मिल जाता है। बाजार में केमिकल युक्त पेंट और कंक्रीट की दीवार घरों का तापमान बढ़ाती है। ऐसे में ओडिशा में किया जा रहा एक प्रयोग छत्तीसगढ़ के लिए भी काम का है। यहां 33 वर्षीय महिला उद्यमी दुर्गा प्रियदर्शनी ने गोबर का पेंट बनाने का बिजनेस शुरू किया है। लोग इस इको फ्रेंडली पेंट को खूब पसंद कर रहे हैं। बिहार, राजस्थान और 1-2 अन्य राज्यों में गोबर से बना पेंट लोकप्रिय हो रहा है। छत्तीसगढ़ जहां सबसे पहले गोबर की खरीदी शुरू हुई है और तरह-तरह से गोबर के इस्तेमाल के बारे में विचार किया जा रहा है, पेंट बनाने का आईडिया भी काम आ सकता है। ऐसा हुआ तो सरकारी खरीद पर निर्भरता भी घट सकती है, क्योंकि उद्यमी प्रियदर्शिनी 5 रुपये किलो में गोबर खरीदती हैं।

किस बात को लेकर जश्न?
जब पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे थे तब बीजेपी नेताओं की तरफ से बयान आता था यह तो वैश्विक मार है। 2 दिन पहले वित्त मंत्री ने एक्साइज ड्यूटी घटाने की घोषणा की और पेट्रोल-डीजल के दाम कुछ गिर गए। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इसे हाथों हाथ लिया। रायपुर-बिलासपुर और दूसरे जिलों में युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने पेट्रोल पंप में मिठाइयां बांटी और इसे बड़ी राहत बताया। अब लोगों से कोई पूछे इस कटौती से वे कितनी राहत महसूस कर रहे हैं क्योंकि दाम अब भी सौ रुपए से ऊपर ही चल रहा है।

जनहित के नाम पर..
इसे अवैध वसूली कहें या सडक़ सुरक्षा के लिए जनहित में लिया गया चंदा? रायगढ़ के एक नागरिक ने इसे सोशल मीडिया पर डालकर सवाल पूछा है कि इस तरह से राशि वसूल करने के लिए क्या परिवहन मंत्रालय ने किसी को अधिकृत किया है? ट्रकों से फिक्स 250 रुपये लिए जा रहे हैं और यातायात सुरक्षा पर खर्च करने का नाम दिया जा रहा है। रसीद की वैधता दो माह बताई गई है। स्वच्छ भारत का स्लोगन भी है, यातायात नियमों का पालन करने की नसीहत भी। पावती पर रोड सेफ्टी रिफ्लेक्टिव इंटरप्राइजेज लिखा है। रोड सेफ्टी रिफ्लेक्टिव तो अमूमन सभी जानते हैं जो रात के अंधेरे में चमकने वाला उपकरण होता है। पर यह इंटरप्राइजेज क्या है, लोग पता करने की कोशिश कर रहे हैं। ([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news