राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ को लेकर रेलवे की बेरूखी
बिहार के लखीसराय में एक्सप्रेस ट्रेनों को नहीं रोकने के चलते कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा था। यहां सैकड़ों लोग रसगुल्ले के व्यवसाय से जुड़े हैं। बहुत सी ट्रेनों के बंद कर देने और चल रही ट्रेनों को स्टापेज नहीं देने से उनका धंधा चौपट हो रहा है। नाराज व्यापारियों ने रेल मार्ग जाम कर दिया। आखिरकार कुछ एक्सप्रेस ट्रेनों को स्टापेज देने का आश्वासन मिलने के बाद कल 24 घंटे बाद लोग पटरी से हटे। इसके पहले ओडिशा के दो शहरों बामड़ा और ब्रजराजनगर में भी इसी तरह के आंदोलन के बाद लोकल व एक्सप्रेस ट्रेनों के स्टापेज को लेकर ढील दी गई।
छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद 9 हैं, पर वे केंद्र के सामने असरदार ढंग से मांग को नहीं रख रहे हैं। वे जनता की तकलीफ को उठाने में भी अनुशासन भंग हो जाने का खतरा महसूस कर रहे होंगे। कांग्रेस के नेताओं की बात सुनी नहीं जा रही है। करगीरोड कोटा में ट्रेनों के स्टापेज की मांग पर कुछ घंटों के लिए लोग पटरी पर बैठे थे, पर उनकी मांग तो पूरी हुई नहीं ऊपर से केस दर्ज हो गया। कांग्रेस नेताओं के यहां तक कि मुख्यमंत्री सचिवालय के पत्रों को भी रेलवे के अधिकारी महत्व नहीं दे रहे हैं। शायद रेलवे को यह अंदाजा है कि राज्य के लोग सहनशील होते हैं। पर, शायद उन्हें यह भी मालूम होगा कि इसी छत्तीसगढ़ में बड़ी लड़ाई लडक़र रेलवे का जोनल मुख्यालय भी लाया गया था।
वर्मी कंपोस्ट जबरन थमाने का मतलब?
सहकारी समितियों में इन दिनों रासायनिक खाद के लिए किसान चक्कर लगा रहे हैं। उन्हें नगद ऋण देने के लिए जरूरी कर दिया गया है कि प्रति एकड़ के हिसाब से एक किलो वर्मी कंपोस्ट भी खरीदें। मगर इससे किसान नाराज हो रहे हैं। यह तो अच्छी बात है कि जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए। रासायनिक खाद से होने वाला नुकसान भी उनको समझ आता है, फिर विरोध क्यों? दरअसल, वर्मी कंपोस्ट के नाम पर उनको जो खाद दिया जा रहा है, वह सुखाया गया गोबर है। कई बार तो उसमें से कंकड़ मिट्टी भी निकल रही है। सवाल यह भी है कि क्वालिटी का कोई प्रोडक्ट हो तो उसे बेचने के लिए जबरदस्ती क्यों की जाए? लोग खुद ही आगे आकर खरीदना पसंद करेंगे। वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की भी एक प्रक्रिया होती है। गोबर के ढेर को केंचुये के ढेर में बंद कर जूट आदि की बोरी या टब में रखने के कई दिन बाद वर्मी कंपोस्ट तैयार होता है।
इस तरह से जबरदस्ती क्वालिटी परखे बिना वर्मी कंपोस्ट थमाने से तो अधिकारी अपना टारगेट पूरा कर लेंगे पर किसानों में वर्मी कंपोस्ट और जैविक खेती को लेकर अरुचि पैदा होने का खतरा भी है।
कौन नहीं चाहते ?
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की अटकलों को पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने यह कहकर हवा दे दी कि कौन प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनना चाहता? कई ने तो सूट भी सिलवा लिए हैं।
रमन सिंह गलत नहीं कह रहे थे। पिछले दिनों एक शादी समारोह में शामिल होने दिल्ली गए पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय, शिवरतन शर्मा, नारायण चंदेल और बृजमोहन अग्रवाल एक फेमस टेलर्स के यहां पहुंचे, और सूट का नाप दिया। इसकी तस्वीर वायरल हुई है। खास बात यह है कि इन चारों का प्रदेश अध्यक्ष का दावेदार माना जाता है। अब नया सूट सिलवा रहे हैं तो कोई बात तो होगी ही।