राजपथ - जनपथ
मतलब सत्ता के खिलाफ नहीं थे 2018 के वोट?
पार्टी प्रदेश कार्यसमिति के समापन मौके पर डॉ. रमन सिंह ने अपने भाषण में बताया कि अगला चुनाव जीतना पार्टी के लिए आसान क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि सन् 2003 से लेकर 2013 तक के चुनावों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने जो वोट काटे थे, उसका फायदा भाजपा को मिला। अब 2023 के चुनाव में ऐसा नहीं है। छोटे दलों की स्थिति खराब है और कांग्रेस भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होना है।
डॉ. रमन सिंह की बातों को हमेशा गंभीरता से लिया जाता है। जब उन्होंने रायगढ़ में कार्यकर्ताओं से कहा था कि एक साल तक कमीशनखोरी बंद कर दें तो सत्ता से भाजपा को 30 साल तक कोई नहीं हिला सकता। उसे भी लोगों ने गंभीरता से लिया। पर पार्टी के लोगों ने इस पर अमल कितना किया, इसका पता नहीं।
तीसरी पार्टियों की मौजूदगी से भाजपा को फायदा मिलने की उनकी बात से पार्टी के कुछ कार्यकर्ता नाराज जरूर लग रहे हैं। उनका कहना है कि यदि कांग्रेस के वोट काटने वाले दलों के कारण भाजपा जीत रही थी तो फिर हम जो गांव-गांव, बूथ-बूथ जाकर पसीना बहाया करते हैं, उसका कोई असर था भी कि नहीं?
वैसे डॉ. सिंह का बयान भ्रम पैदा करने वाला है। सन् 2018 में कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत मिली। 2018 चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मौजूद थी, एक सीट भी मिली और कुछ सीटों पर दूसरे तीसरे स्थान पर रही। स्व. अजीत जोगी की बहू ऋचा को तो बहुत कम वोटों से अकलतरा से पराजय मिली। इसी चुनाव में जोगी की टीम पूरी ताकत से उतरी थी। उसने 72 सीट पार करने का नारा दिया था, उनके पांच विधायक भी चुनकर पहुंचे। इसके पहले छत्तीसगढ़ में किसी एक क्षेत्रीय दल को इतनी सीटें नहीं मिलीं। फिर ऐसा कहना ठीक नहीं है कि कांग्रेस के वोटों के बंटवारे के कारण भाजपा को जीत मिलती रही।
सन् 2018 में भाजपा की बुरी तरह हार का बड़ा कारण लोग सत्ता विरोधी माहौल को मानते हैं। नेतृत्व डॉक्टर साहब ही संभाल रहे थे। इस संदर्भ में भी उनके कथन को तौला जाना चाहिए।
ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि सन् 2023 के चुनाव में तीसरे दलों का असर बिल्कुल नहीं रहेगा। अभी साल भर से ज्यादा का वक्त बचा है। लोग अंगड़ाई ले रहे हैं। आम आदमी पार्टी सन् 2028 में सत्ता हासिल करने की तैयारी करते तो दिख ही रही है। 2023 में इसके लिए मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना उसका लक्ष्य है। गोंडवाना, बसपा और जोगी की पार्टी का भी प्रभाव पूरी तरह खत्म हो चुका और वे वोटों का गणित नहीं बदल सकते, यह मानना कठिन है।
मोहब्बत जिंदाबाद..
गावों में वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए बहुत से कानून बने हैं। शिक्षा के प्रसार ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। मगर, बहुत से गांव ऐसे हैं जहां पर अभी भी ताकतवर लोगों ने अपने बनाये कानूनों से समाज को जकड़ रखा है। इसके खिलाफ आवाज कहीं-कहीं युवा उठा रहे हैं जिसका नतीजा भी सकारात्मक निकल आता है।
दुर्ग जिले के अकोली गांव में ऐसा ही अजीबोगरीब कानून चल रहा था। दूसरी जाति की लडक़ी से प्रेम विवाह करने पर कड़ी सजा थी। एक सियान समिति बनाई गई थी, जो अपनी जाति से बाहर शादी करने वालों पर 50 हजार रुपए तक का जुर्माना कर सकता था। ऐसी शादी में शामिल होने वाले लोगों पर भी दंड लगाया जाता था और विवाह करने वाले युवक को गांव में भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता था। बीते हफ्ते इस कठोर नियम कानून के बारे में दुर्ग कलेक्टर को पता चला। कुछ युवाओं ने इसकी शिकायत उनसे की थी। धमधा के एसडीएम ने समिति के लोगों को बुलाया और समझाया। कानूनी प्रावधान और उसके परिणामों के प्रति आगाह किया। नतीजा यह निकला कि सियान समिति अब भंग हो गई है। गांव में अच्छे माहौल में एक बैठक रखी गई और तय किया गया कि अंतरजातीय विवाह करने पर अब कोई दंड वसूल नहीं किया जाएगा, बल्कि ऐसा कोई करना चाहता है तो उसे प्रोत्साहित भी किया जाएगा।
महिला अफसर की आलोचना और प्रशंसा
मैनपाट में शिक्षकों के साथ बैठक के दौरान अपर कलेक्टर तनूजा सलाम तमतमा गई थी। एक वायरल वीडियो क्लिपिंग को सच माना जाए तो उन्होंने प्रिसिंपल को गालियां भी दीं। शिक्षक बिरादरी उनके अशिष्ट बर्ताव से नाराज है। संगठन ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रखी है। इसी मैडम का एक दूसरा चेहरा अंबिकापुर में दिखा। जो तमतमाया नहीं था, भावुक था।
सीतापुर से आई एक दिव्यांग युवती सडक़ किनारे बैठी हुई थी। नजर पड़ी तो उन्होंने गाड़ी रुकवाई। युवती ने बताया कि वह रोजगार कार्यालय में पंजीयन कराने आई है, पर कार्यालय मिल नहीं रहा, काफी देर से भटक रही है। कैसे जाऊं यह भी समझ नहीं आ रहा। अपर कलेक्टर ने अपनी कार छोड़ दी और मातहतों से कहा कि इसे रोजगार कार्यालय ले जाओ, पंजीयन में मदद करो और उसके बाद बस स्टैंड पहुंचा दो ताकि सीतापुर वाली बस में बैठकर घर जा सके। उसे ट्राइसाइकिल भी दिलाई जा रही है। दोनों घटनाओं में एक बात समान है, अपने ओहदे का इस्तेमाल करने का तरीका कैसा है। एक ओर उनकी आलोचना हो रही हो तो दूसरी तरफ तारीफ भी मिल रही है।