राजपथ - जनपथ
इस साग का नाम तो जानते ही होंगे आप...
छत्तीसगढ़ में अनूठे फलों की भरमार है। इनमें से एक है बड़हल या बड़हर। इसका अंग्रेजी नाम है-आर्टोकार्पस लैकूचा। इसे मंकी फ्रूट भी कहते हैं। इन दिनों बाजार में यह फल बहुत आ रहा है। फल से कटहल की तरह सब्जी बनती है, इसके फूलों से भी कोफ्ता आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाया जा सकता है। इसकी लकडिय़ां भी कीमती हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्र बनाने में इसकी डालियों और तने का इस्तेमाल किया जाता है।
बस्तर की जागरूकता!
जिन लोगों को यह लगता है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में लोग कम पढ़े-लिखे हैं, उन्हें यह देखकर हैरानी हो सकती है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गांव-गांव के दौरों में लोगों की जागरूकता किस तरह सामने आती है। अभी उन्होंने खाद की कमी सामने आने पर एक गांव की सभा में लोगों को बताया कि यह खाद केन्द्र सरकार देती है, और उसके पास भी यह दूसरे देशों से आती है। ऐसे में आज जब जंग चल रही है, तो खाद की कमी हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने सभा में मौजूद लोगों की भारी भीड़ से सवाल किया कि क्या उन्हें मालूम है कि रूस ने किस देश पर हमला किया है, तो इसके जवाब में एक साथ दर्जनों लोगों ने यूक्रेन का नाम लिया! बस्तर के जंगलों के बीच बसे हुए लोगों की यह जानकारी बताती है कि वे न केवल देश-प्रदेश, बल्कि दुनिया की भी खबर रखते हैं, और मुख्यमंत्री के सवाल के जवाब में तुरंत तैयार भी रहते हैं।
मनरेगा सहायकों की हड़ताल
बीते 2 महीने से ज्यादा हड़ताल पर चल रहे मनरेगा कर्मचारियों का विवाद कसैला सा हो गया है। सीएम ने इनका वेतन लगभग दोगुना करने की घोषणा कर दी है। 5 या 6 हजार रुपये की जगह अब उनको 9000 से अधिक मिलेंगे। चुनावी घोषणा इन्हें नियमित करने की थी, अभी संविदा पर हैं। शायद वित्तीय असंतुलन की वजह से मांग पूरी नहीं की जा रही है। अब आवेश में आकर जिन 12000 कर्मचारियों को उनके नेताओं ने इस्तीफा दिलवाया है क्या वे नया रोजगार पा सकेंगे जिसमें उन्हें 9, 10 हजार रुपये मिले। सरकार ने नई भर्ती की चेतावनी भी दे दी है। पूरी परिस्थिति संवाद हीनता की वजह से बिगड़ी ऐसा लगता है। रोजगार सहायकों की नौकरी का छिन जाना उनके और उनके परिवार के लिए फायदेमंद बिल्कुल नहीं है। शायद सरकार भी एक साथ इतने लोगों को बाहर करने के बारे में न सोचे। कायदे से सुलह का कोई रास्ता निकाला जाए जिससे उनकी नौकरी बची रहे।
प्लास्टिक बैन सफल होगा?
प्रदेश में 1 जून से सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैग पर रोक लगाने की घोषणा की गई थी। अब इसकी तारीख 1 जुलाई कर दी गई है। इस नियम के मुताबिक प्लास्टिक स्टिक, थर्माकोल, डिस्पोजल, चम्मच, थैली आदि यदि 100 माइक्रोन से कम मोटाई है तो बाजार में नहीं दिखेंगे। बैन पहले भी लगे पर, इस बार केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार लागू किया जा रहा है। दूसरे कुछ राज्यों में जैसे राजस्थान, झारखंड, दिल्ली में पर्यावरण फ्रेंडली बैग बाजार में आ चुके हैं पर छत्तीसगढ़ में यह अभी दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक प्लास्टिक बैग का विकल्प नहीं मिलेगा यह नियम कैसे लागू होगा, कितना हो सकेगा, सवाल बना हुआ है।
गैस का विध्वंस करने वाली तेलीबांधा रायपुर की एक दुकान। बोलचाल में कहें तो यहां हवाबाण हरडे मिलता है।