राजपथ - जनपथ
जमीन से जुड़ा एक मुद्दा...
बीजेपी कैडर वाली पार्टी है। केंद्र से नेता आते हैं, बैठकें लेते हैं, मंत्र फूंकते और पाठ पढ़ाकर निकल जाते हैं। पर विपक्ष में होने की वजह से जिस तरह जनता से जुड़े मुद्दों को सडक़ पर निकलकर धारदार तरीके उठाना चाहिए, उसमें कुछ कमी दिखाई देती है।
केंद्र सरकार ने उचित मूल्य की दुकानों को कोविड काल से 5 किलो चावल मुहैया कराने की योजना चालू रखी है। यह राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले 35 किलो राशन के अतिरिक्त है। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा आदि जिलों से लगातार यह खबर आ रही है कि अनेक राशन दुकान संचालक इस चावल का गबन कर रहे हैं। राशन दुकानों में छापा भी मारा जा रहा है और छापे की खबरों को अफसरों की तरफ से दबाया भी जा रहा है। इसका मतलब यही है कि लेनदेन करके खाद्य विभाग के निरीक्षक और दूसरे अधिकारी इन दुकान संचालकों को संरक्षण दे रहे हैं। किसी की दुकान में आप पहुंचे वहां आपको राशन की उपलब्ध मात्रा की नोटिस लगी नहीं मिलेगी। मूल्य सूची नहीं दिखाई देगी, कॉल सेंटर का नंबर भी प्रदर्शित किया गया नहीं पाएंगे और शिकायत निवारण अधिकारी का फोन नंबर भी गायब होगा। खाद्य अधिकारी ऐसी सभी दुकानों पर सख्ती के साथ कार्रवाई कर सकते हैं। दुकानों को निलंबित किया जा सकता है लेकिन सिर्फ नोटिस-नोटिस का खेल चल रहा है। जनता से जुड़ा यह एक बड़ा मुद्दा है। मोदी जी का राशन है, पर पता नहीं बीजेपी नेता इस घोटाले को लेकर क्यों खामोश हैं?
फ्लॉप शो !
मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने के मौके पर इंडोर स्टेडियम में भाजपा का जलसा फीका रहा। पहले तो स्टेडियम को लबालब करने की रणनीति बनाई गई थी, लेकिन बामुश्किल 4-5 सौ कार्यकर्ता ही जुट पाए। मुख्य वक्ता के रूप में पहले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आने वाले थे, लेकिन दिल्ली में व्यस्तता के कारण उनका आना टल गया। बाद में केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह के मुख्य आतिथ्य में कार्यक्रम शुरू हुआ। रेणुका अपने भाषण में ज्यादातर समय मनमोहन सिंह सरकार को उलाहना देती रही। उनका भाषण इतना बोझिल था कि एक-एक कर कार्यकर्ता बाहर जाने लगे। कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं को चार्ज करने में पार्टी के कर्ता-धर्ता नाकाम रहे।
पेट्रोल-डीजल कमी जारी रहेगी
प्रदेश में पेट्रोल-डीजल की किल्लत हो रही है। पेट्रोलियम कंपनी पर्याप्त पेट्रोल डीजल की आपूर्ति नहीं कर पा रही है। पिछले दिनों सरगुजा के पेट्रोल पंप के संचालक खाद्य मंत्री अमरजीत भगत से इस पर चर्चा की। भगत ने खाद्य अफसरों को सरगुजा के पेट्रोल पंपों को पर्याप्त मात्रा में पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कह दिया। मंत्रीजी के निर्देश के बाद भी न सिर्फ प्रदेश बल्कि सरगुजा में भी पेट्रोल पंपों के आगे लंबी लाइन देखने को मिल रही है।
यही नहीं, एक भाजपा सांसद के भाई, जो कि पेट्रोल पंप डीलर एसोसिएशन के पदाधिकारी भी है। उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के आला अफसरों से चर्चा की। कंपनी के अफसरों ने उन्हें आपूर्ति बढ़ाने का कोई आश्वासन नहीं दिया, बल्कि उल्टे पंप खोलने के समय में कटौती करने का सुझाव दे दिया। उन्होंने कह दिया कि पेट्रोल-डीजल की कमी बरकरार रहेगी।
जितना बड़ा बंगला, उतना बड़ा रैम्प
शहरों के संपन्न इलाकों में बड़े-बड़े मकानों के गेट पर गाडिय़ों को भीतर रखने के लिए लंबे-लंबे रैम्प बनाए जाते हैं जिनसे आधी सडक़ घिर जाती है। लोग अपने घर को ऊंचा कर लेते हैं, और रैम्प की लंबाई के लिए सडक़ का इस्तेमाल करते हैं। सडक़ की उतनी जगह आवाजाही के लिए बंद, पार्किंग के लिए बंद, और इसके बाद भी लोग अपनी गाडिय़ां अपने अहाते के बाहर सडक़ पर ही खड़ी करते हैं। इस बात पर केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कल ही अफसोस जाहिर किया है कि लोग गाडिय़ां खरीद लेते हैं, और उन्हें खड़ी करने की जगह का उनका कोई इंतजाम नहीं होता। उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि नागपुर में उनका रसोईया भी दो सेकेंडहैंड गाडिय़ां रखता है, और इस तरह चार लोगों के परिवार में छह वाहन हो गए हैं। ऐसे में लोग सडक़ों पर ही गाडिय़ां खड़ी करते हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जितनी बड़ी कॉलोनी, जितना बड़ा बंगला, उतना ही लंबा रैम्प। अब अगर बुलडोजर कहीं चलना चाहिए, तो ऐसी जगहों पर ही चलना चाहिए, और जिन्हें रैम्प बनाना है, वे अपने घर के भीतर बनाएं। ऐसा न होने पर म्युनिसिपल को चाहिए कि उस इलाके के रजिस्ट्री रेट के अनुपात में जुर्माना ऐसे घर मालिकों पर लगाया जाए।
बिल्डिंग की गरिमा बनाए रखें..
यह खूबसूरत भवन कोई राजमहल नहीं है। जशपुर के स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूल की तस्वीर है। जिस तरह इस भवन को संवारने में मेहनत की गई है, उसी तरह यदि यहां पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों को भी तराश दें तो फिर क्या बात है...।
तेंदूपत्ता से सॉलिड कमाई...
बस्तर से जो खबर निकल कर आई है वह इस धारणा को बदलने के लिए काफी है केवल जंगल को उजाड़ करके, खदान शुरू करके रोजगार पैदा किया जा सकता है। बस्तर के आदिवासियों ने इस बार 86 करोड़ रुपए का तेंदूपत्ता बेचा है, जो पिछले साल से 16 करोड़ रुपये अधिक है। दिलचस्प है कि तेंदूपत्ता की खपत अपने छत्तीसगढ़ में कम होती है। इसका निर्यात पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान में होता है। यहां बीड़ी पीने वाले जरूर घट गए हैं लेकिन दूसरे देशों में इसकी मांग न सिर्फ बनी हुई है बल्कि बढ़ती जा रही है। सरकार ने इस बार मानक बोरा के पीछे कीमत भी बढ़ाकर 4 हजार रुपये दी है, जिसकी वजह से भी बड़े उत्साह के साथ लोगों ने तेंदूपत्ता संग्रहण में अधिक रुचि दिखाई है। यह साधारण सा जवाब है कि जंगलों में रहने वाले लोग अपने यहां कार्पोरेट को आने से रोकने के लिए जान की बाजी क्यों लगा देते हैं।