राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दूसरे विभागों में वीरों के नाम क्या हों?
24-Jun-2022 6:28 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दूसरे विभागों में वीरों के नाम क्या हों?

दूसरे विभागों में वीरों के नाम क्या हों?

सोशल मीडिया पर अग्निवीर योजना की सफलता-विफलता की संभावनाओं पर विमर्श चल रहा है। यदि यह सफल हुई तो देश के विभिन्न विभागों में भर्ती होने वालों के नाम इस तरह से हो सकते हैं- सिंचाई विभाग के लिए- जलवीर, शिक्षा विभाग के लिए विद्यावीर, रेलवे के लिए रेल बहादुर, पुलिस के लिए सुरक्षा सम्राट, कलेक्टर के लिए जिला शिरोमणि, यातायात विभाग के लिए रोड राजा, कृषि विभाग के लिए-एग्रोवीर, एसबीआई आदि बैंकों के लिए बैंकवीर...आदि, आदि। यह कहा जा रहा है कि बहुत से विभागों में अभी भी हजारों दैनिक वेतनभोगी और एडहॉक पर काम करने वाले हैं, जिनकी नौकरी अग्निवीरों से भी कम पक्की है। इनके पदनाम के साथ वीर जोड़ दिया जाए तो उनमें वीरता का भाव पैदा होगा और जिस तरह से अनेक निजी कंपनियों ने अग्निवीरों को भर्ती में प्राथमिकता देने की घोषणा की है, इनके लिए भी कुछ सोचेंगे। 

वाट्सएप कॉल में छिपी सहूलियत..

केंद्र सरकार पर फोन टेपिंग के मुख्यमंत्री के आरोपों के जवाब में नेता प्रतिपक्ष की ओर से जवाब आया है कि टेपिंग का डर तो राज्य की एजेंसियों से राज्य के अधिकारियों को है। वे मोबाइल फोन या लैंड लाइन पर बहुत संतुलित बात करते हैं। कोई खुलकर बात करना चाहे तो उन्हें ऐप (वाट्सएप) से बात करना ठीक लगता है। जानकार कह रहे हैं कि इस बात में सच्चाई तो है। पर यह पूर्ववर्ती भाजपा शासन के समय से चल रहा है। जब से वाट्सएप में कॉल की सुविधा आई है तब से। मंत्रालय, सचिवालय और जिलों में कमान संभाल रहे अनेक अफसरों से वाट्सएप कॉल के जरिये बात करना सिम से बात करने के मुकाबले आसान है। जरूरी नहीं कि हर बार लेन-देन की ही बात होती हो। दरअसल, वे सरकार, मंत्री, अपने ही साथी अफसरों के कामकाज पर निजी राय रखना चाहते हैं। कहां, क्या चल रहा है जानना चाहते हैं, अपनी पीड़ा बताते हैं। और ऐसी बातें खुल जाए, रिकॉर्ड हो जाए तो मुश्किल हो जाएगी। चाहे कोई कितना भी करीबी हो, ऐसे मामलों में भरोसा कैसे किया जा सकता है। वाट्सएप कॉल में माना जाता है कि कॉल रिकॉर्ड नहीं होती है। जबकि सामान्य मोबाइल फोन पर तो यह फीचर आजकल इनबिल्ट आ चुका है, अलग से कोई ऐप डाउनलोड भी नहीं करना पड़ता। 

सेब की सरकारी खेती फ्लाप, आश्रम में सफल

जशपुर जिले के प्रसिद्ध सोगड़ा आश्रम में पहली बार सेब की खेती हो गई है। कश्मीर से 50 पेड़ लाकर यहां लगाए गए थे, जिनमें से करीब 40 में फल आ चुके हैं। सोगड़ा आश्रम में पहले से ही बड़े पैमाने पर चाय की खेती होती है, जिससे जशपुर को एकमात्र चाय उत्पादक जिले का दर्जा मिला हुआ है। इसके पहले उद्यान और कृषि विभाग ने सन्ना के पंडरापाठ इलाके में भी सेब की खेती की थी, अब वह 100 एकड़ का क्षेत्र उजाड़ हो चुका है। यहां 1600 पेड़ लगाए गए थे। विभागों ने सुध नहीं ली। किसानों का मोहभंग हो गया। सोगड़ा आश्रम में संसाधन स्वयं जुटा लिए गए पर पंडरापाठ के कृषकों को सरकारी मदद की जरूरत थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।

जशपुर ऐसा जिला है जहां उद्योग, खदान लाने का बड़ा विरोध होता है। यहां रेल लाइन भी नहीं बिछाई जा सकी है। इस विरोध के पीछे आदिवासियों को अपने जमीन और जंगल से विस्थापित होने और शांत इलाके में प्रदूषण बढऩे का खतरा दिखाई देना है। टाऊ, आलू, टमाटर, काजू जैसे विविध फसलों के लिए जशपुर पहले से ही प्रसिद्ध है। फिर भी आम जशपुरिया लोगों के बीच इनकी खेती बड़े पैमाने पर हो इसके लिए प्रशासन को अलग से मिशन चलाने की जरूरत है। जशपुर जिला जहां रोजगार के अभाव में ह्यूमन ट्रैफिकिंग भी एक बड़ी समस्या है, इन फसलों के उत्पादन में आम लोगों को लगाकर आमदनी बढ़ाई जा सकती है। 

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