राजपथ - जनपथ
रेवेन्यू बोर्ड में अब कौन?
रेवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन उमेश अग्रवाल, और लोक आयोग सचिव ईमिल लकड़ा 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। लकड़ा की जगह लोक आयोग सचिव के पद पर सुधाकर खल्को की पोस्टिंग हो गई है। लेकिन अग्रवाल के विकल्प की तलाश चल रही है। चर्चा है कि उमेश की जगह स्पेशल सेक्रेटरी रैंक के किसी अफसर को चेयरमैन बनाया जा सकता है। रेणु पिल्ले जैसी सीनियर अफसर को रेवेन्यू बोर्ड में भेजे जाने पर भी विचार हो रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि जमीन के प्रकरणों में कमिश्नरी में कई जगहों पर उटपटांग आदेश भी हो रहे हैं, जिसे रेवेन्यू बोर्ड में चुनौती दी जा रही है। ऐसे में बोर्ड में रेणु पिल्ले जैसी अच्छी साख वाले अफसर को बिठाया जा सकता है। ताकि प्रकरणों का निपटारा बेहतर ढंग से हो सके।
अब मंत्रालय आ रहे हैं...
भूपेश सरकार के कार्यकाल डेढ़ साल से कुछ कम बाकी रह गए हैं। अब जाकर मंत्रियों ने मंत्रालय स्थित अपने दफ्तरों में बैठना शुरू किया है। एक-दो को छोड़ दें, तो ज्यादातर मंत्री अपने घर से सरकारी कामकाज निपटा रहे थे। वैसे मंत्रालय न आने की एक वजह कोरोना भी थी, लेकिन संक्रमण कम होने के बाद भी मंत्रियों ने एक तरह से मंत्रालय आना-जाना छोड़ दिया था। मंत्रियों की देखा-देखी कई प्रमुख सचिव-सचिव स्तर के अफसरों ने भी मंत्रालय जाना छोड़ दिया था। वे भी यहां विभागाध्यक्ष दफ्तर में बैठकर काम निपटा रहे थे।
नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव डहरिया सबसे ज्यादा मंत्रालय जाने वाले मंत्री हैं। मंत्रालय (महानदी भवन) डॉ. डहरिया के विधानसभा क्षेत्र में आता है। इसी बहाने डॉ. डहरिया का विधानसभा क्षेत्र का एक चक्कर भी हो जाता है। अफसरों में सामान्य प्रशासन सचिव डीडी सिंह, और तकनीकी शिक्षा सचिव रीता शांडिल्य ही ऐसे हैं, जो नियमित रूप से मंत्रालय जाते हैं, और सबसे ज्यादा समय मंत्रालय में देते हैं। कोरोना आदि की वजह से पिछले दो साल से कैबिनेट की बैठक मंत्रालय में नहीं हुई है। ज्यादातर बैठकें सीएम हाउस में हुई है। इन सब वजहों से भी मंत्री-अफसरों का आना जाना कम हुआ है, लेकिन अब ज्यादातर मंत्री रायपुर में रहने पर मंत्रालय आ रहे हैं, और कामकाज निपटा रहे हैं।
कर्ज पर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड ये तीन राज्य एक साथ 1 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए थे। आरबीआई इस बात पर नजर रखता है फिर किस राज्य की आमदनी कितनी है, उस पर कर्ज कितना और उसे चुकाने की क्षमता कितनी है। एक रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चिंता उत्तराखंड पर की गई है। उस पर 76 हजार 351 करोड का कुल कर्ज है जो आबादी के हिसाब से प्रति व्यक्ति 65 हजार 522 रुपये बैठता है। छत्तीसगढ़ की स्थिति बीच में है। हम पर एक लाख 150 करोड रुपए का ऋण है, जो प्रति व्यक्ति 33 हजार 607 रुपये बनता है। सबसे बेहतर स्थिति झारखंड की है जिसने हमसे ज्यादा कर्ज लिया है। करीब एक लाख 5570 करोड रुपए। पर प्रति व्यक्ति कर्ज 27 हजार 96 रुपये ही है। उत्तराखंड की आबादी 1.5 करोड़, छत्तीसगढ़ की 2.98 करोड़ और झारखंड की 3.98 करोड़ है। इस आंकड़े से जो बात निकल कर आ रही है, वह यह है कि इन तीनों में जिस राज्य की आबादी जितनी कम है वह उतने ही ज्यादा कर्ज के बोझ से लदा है, यानी आय के साधन कम है।