राजपथ - जनपथ
हिंदी में अंग्रेजी का सुख...
आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को शुरू करने के लिए प्राय: हर एक जगह सबसे पुराने और बेहतरीन स्कूल भवनों को चुना गया है। प्रदेश के अलग-अलग स्थानों में इसके विरोध में प्रदर्शन हुए। उनका कहना था कि कि अपने पुराने स्कूल के साथ उनके शहर की विरासत जुड़ी है, इनका नाम न बदला जाए। नामकरण को लेकर के लोक शिक्षण संचालनालय ने पहले ही एक परिपत्र निकाल दिया था। इसमें यह था कि स्कूल का नाम किसी दानदाता या प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम पर है, तो वह बदला नहीं जाएगा। साथ में यह जोड़ दिया जाएगा कि यह स्वामी आत्मानंद योजना से संचालित हो रही है। यह पहली समस्या लगभग सभी जगह सुलझ चुकी है। दूसरी चिंता हिंदी माध्यम में पढ़ रहे उस स्कूल के छात्रों को अपने भविष्य की थी। शिक्षा विभाग ने कुछ भी साफ नहीं किया तो लगा कि छात्रों को अपना पुराना स्कूल छोडक़र दूर कहीं दाखिला लेना होगा। इसे लेकर रोष इतना था कि कई लोग हाईकोर्ट तक चले गए। वहां केस चल रहा है। अब साफ किया गया है कि पुराने हिंदी स्कूल भी उसी जगह चलेंगे। अलग पाली में कक्षाएं लगेंगी। यदि ऐसा हो रहा हो तो एक फायदा यह है कि पुराने हिंदी माध्यम के छात्र नए तरीके से सजाए संवारे गए भवन में नई फर्नीचर पर बैठकर पढ़ेंगे। छात्रों और शिक्षकों दोनों को इस सुविधा का लाभ मिलेगा। पर लैब और खेलकूद के सामान, मैदान का भी क्या हिंदी माध्यम के छात्र इस्तेमाल कर सकेंगे? स्थिति साफ होना बाकी है।
एनएचआरसी को अब पता चला..
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुकमा जिले के कलेक्टर और स्वास्थ्य सचिव को एक मामले में नोटिस जारी किया है। सुकमा के कांकेरलंका पीएचसी में एक डिलिवरी केस आया था। तबीयत बिगड़ते देख कर उसे सुकमा जिला अस्पताल रेफर किया गया। मगर दंपति को आधी रात तक एंबुलेंस नहीं मिल पाई और नवजात को बचाया नहीं जा सका। एनएचआरसी के ध्यान में यह बात इसलिए आ पाई क्योंकि कुछ राष्ट्रीय अखबारों में यह खबर छप गई।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर और सरगुजा संभाग में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी बदतर है इसके बारे में अगर आयोग समय-समय पर नजर डाले तो सुकमा की यह घटना उसे छोटी लग सकती है। हाल ही में लखनपुर में एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण एक व्यक्ति अपनी बच्ची को 10 किलोमीटर तक साइकिल पर ढोकर ले गया था। अंबिकापुर करीब छह-सात महीने पहले सप्ताह भर के भीतर दो दर्जन बच्चों की जिला अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। यह सभी आदिवासी बच्चे थे। बलरामपुर जिले में पंडो आदिवासियों की लगातार खून की कमी के कारण मौत हो रही है। यही कोई चार छह महीने पहले 1 सप्ताह के भीतर 15 लोगों की जान चली गई तब वहां पर कैंप लगाया गया। बस्तर से आए दिन तस्वीरें आती हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि कभी खाट पर तो कभी गाड़ी पर लादकर मरीजों को अस्पताल लाया जा रहा है या शव को वापस ले जाया जा रहा है। यहां बाइक एंबुलेंस का प्रयोग भी किया गया था पर कई जगह ये कबाड़ में पड़े हैं।
सरगुजा और बस्तर दोनों ही कद्दावर मंत्रियों के प्रभाव वाले इलाके हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि उनका ध्यान इतनी गंभीर समस्या की तरफ गया नहीं हो। पर कभी जवाबदार स्वास्थ्य अफसरों पर कार्रवाई की नहीं गई। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की नोटिस को भी जाहिर है, गोलमोल जवाब देकर निपटा दिया जाएगा।
सस्पेंड मत करो साहब, काम करा दो...
भेंट-मुलाकात में जिस तरह से सीएम भूपेश बघेल ने राजस्व विभाग की शिकायतों पर निलंबन की कार्रवाई की है, मौका मिलने पर लोग चूक नहीं रहे हैं। कुनकुरी में लगी जन-चौपाल में एक ग्रामीण ने शिकायत की कि पट्टा बनाने के लिए पटवारी 50 हजार रुपये रिश्वत मांग रहा है। सीएम ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि तहसीलदार को सस्पेंड कर दिया है, क्या चाहते हो-पटवारी को भी कर दूं? ग्रामीण भी तैयारी से आया था, साहब- वो दूसरा तहसीलदार है- हमारे इलाके का नहीं है। सीएम हतप्रभ! उन्होंने पूछ लिया- सस्पेंड करा के ही मानोगे? ग्रामीण बोला- नहीं साहब, जरूरी नहीं है, बस मेरा काम करा दीजिए। सीएम बिना मुस्कुराए नहीं रह सके- उन्होंने कलेक्टर को निर्देश दिया कि इनका पट्टा जल्दी बनवा दें।
दहशत की दुकान...
ग्राहकों को खींचने के लिए दुकानदार अनोखे तरीके अपनाते हैं। इनमें से कुछ तरीके ऐसे भी होते हैं, जिसे देखकर आने-जाने वालों को दहशत हो सकती है। (सोशल मीडिया पर मिली एक तस्वीर)