राजपथ - जनपथ
कलेक्टरों की वजहें
सरकार ने 19 जिलों के कलेक्टर को बदल दिए। सरगुजा, बिलासपुर, बस्तर, और दुर्ग कलेक्टर के तबादले अपेक्षित थे। इन सभी को करीब-करीब दो साल हो रहा था, या हो गया था। आम तौर पर बेहतर काम करने वाले अफसर को कम से कम तीन साल जिले में रहने का मौका मिलता था। अविभाजित मध्यप्रदेश में तो अजीत जोगी पांच साल इंदौर कलेक्टर रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी कई को तीन साल कलेक्टरी का मौका मिला।
रमन सिंह के कार्यकाल में एक मौका ऐसा भी आया जब जांजगीर-चांपा कलेक्टर रहते आलोक अवस्थी बीमार पड़ गए थे। उनका बायपास ऑपरेशन हुआ था, लेकिन उन्हें हटाया नहीं गया। करीब 6 महीने प्रभारी कलेक्टर के भरोसे जिले में कामकाज चलते रहा। अवस्थी जब पूरी तरह स्वस्थ हो गए, तब कहीं जाकर उनका तबादला किया गया।
भूपेश सरकार में अधिकतम कलेक्टरों का कार्यकाल अधिकतम दो साल ही रहा। कई तो दो-तीन माह महीने में ही बदल गए। गौरव कुमार सिंह दो माह पहले ही सूरजपुर से मुंगेली आए थे, और अब उन्हें बालोद भेज दिया गया। अच्छे काम पर कई को जल्द ही बड़ा जिला मिल गया। जांजगीर-चांपा जिला कलेक्टर जितेन्द्र शुक्ला को ही लीजिए, चर्चा है कि शुक्ला का कामकाज बेहतर नहीं होने का फीडबैक आया था। उन्हें बदला जाना तकरीबन तय माना जा रहा था। इसी बीच राहुल साहू प्रकरण सामने आया।
जितेन्द्र शुक्ला, और उनकी टीम ने राहुल को बोरवेल से बाहर निकलवाने के लिए खूब मेहनत की। सौ घंटे से अधिक ऑपरेशन चला। राहुल के सकुशल बाहर निकलने के बाद अभियान से जुड़े लोगों को सीएम ने सम्मानित किया। कुल मिलाकर जितेन्द्र शुक्ला आखिरी गेंद में छक्का मारकर बेमेतरा जिला पा गए।
दो महीनों में ही फिर
सूरजपुर में भेंट-मुलाकात के कार्यक्रम के दौरान जिला पंचायत में कमीशनखोरी की शिकायत के बाद सीएम ने सीईओ राहुल देव को हटा दिया था। उन्हें जांजगीर-चांपा अपर कलेक्टर बनाया गया। अब दो महीने के भीतर राहुल देव को मुंगेली कलेक्टर बनाया गया।
चर्चा है कि राहुल देव स्थानीय राजनीति के शिकार हो गए थे। वो अंबिकापुर के ही रहने वाले हैं। उनकी पत्नी भावना गुप्ता अंबिकापुर एसपी हैं ।
नाखुशी की वजह से
आरडीए सीईओ चंद्रकांत वर्मा को दो महीने के भीतर हटाकर अपर कलेक्टर कांकेर बनाया गया है। चर्चा है कि आरडीए के पदाधिकारी उनके कामकाज, और व्यवहार से नाखुश थे। इसकी शिकायत सीएम तक पहुंची थी। इसके बाद चंद्रकांत को बदल दिया गया। उनकी भी सालभर के भीतर तीन बार बदली हो चुकी है।
काबिलियत के बाद !
सरकार के पिछले साढ़े तीन साल कार्यकाल में प्रदेश के किसी जिले में बेहतर परफार्मेंस किसी कलेक्टर का रहा है, तो वो राजनांदगांव कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा हैं। यह आंकलन नीति आयोग का है जिसने राजनांदगांव जिले में कृषि सुधार, और बेहतर जल प्रबंधन की दिशा में उत्कृष्ट कार्य के लिए चैम्पियन ऑफ चेंज कहा है। बात यहीं खत्म नहीं होती है। आयोग ने जिले को तीन करोड़ का न सिर्फ अतिरिक्त आबंटन दिया है, बल्कि कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा के कार्यों की तारीफों के पुल बांधते हुए उनके सीआर में भी अंकित करने के लिए चीफ सेक्रेटरी को चि_ी भेजी है।
राज्य बनने के बाद संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है जब केन्द्र सरकार के किसी संस्थान ने चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर किसी कलेक्टर के सीआर में उत्कृष्ट कार्य को अंकित करने कहा है। यह न सिर्फ राज्य बल्कि आईएएस कैडर के लिए भी गौरवान्वित करने क्षण था। तारण ने न सिर्फ कृषि सुधार बल्कि शिक्षा और खेल के क्षेत्र में भी जिले में बेहतर कार्य किए। प्रशासन के प्रयासों से राजनांदगांव अब हॉकी नर्सरी के रूप में चर्चित हो रहा है। मगर पोस्टिंग के मामले में तारण उतने भाग्यशाली नहीं रहे। उन्हें राजनांदगांव से अपेक्षाकृत छोटे जि़ले जांजगीर-चांपा का कलेक्टर बनाया गया है। हालांकि सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि जांजगीर-चांपा जिले में काफी समस्याएं हैं। जिन्हें ठीक करने की जरूरत है। इस लिहाज से तारण जैसा काबिल अफसर भेजा गया है।
कोरबा कलेक्टर एक साल टिकीं..
किसी भी जिले में कलेक्टर को रिजल्ट दिखाने के लिए कम से कम दो साल तो दिए ही जाते हैं। दो साल बीतने के बाद उनके तबादले को लेकर चर्चा शुरू होती है। पर कोरबा कलेक्टर को भी एक साल में ही यहां से हटाकर रायगढ़ भेज दिया गया है। उन्होंने 8 जून 2021 को यहां पदभार संभाला था। जब वे शुरू-शुरू पहुंचीं तो अधिवक्ताओं से विवाद हुआ। वे दिनभर उनके दफ्तर के सामने धरने पर बैठे रहे। रात 8 बजे समझौता हुआ। दरअसल एक साथी अधिवक्ता कलेक्टर कोर्ट रूम में उनके व्यवहार से नाराज हो गए थे। इसके कुछ दिनों बाद ही कोरबा विधायक व प्रदेश के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के साथ तनातनी शुरू हो गई, जो आखिर तक जारी रही। अग्रवाल ने सार्वजनिक रूप से सर्वाधिक भ्रष्ट अधिकारी का विशेषण दे दिया था। डीएमएफ पर उन्होंने खनिज सचिव को लंबी चि_ी लिखी और फंड के दुरुपयोग का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया। हालांकि जिले के कांग्रेस के दो और विधायक पुरुषोत्तम कंवर और मोहित केरकेट्टा ने सार्वजनिक बयान जारी कर कलेक्टर का समर्थन कर दिया। इस बीच पूर्व आईएएस और भाजपा नेता ओपी चौधरी के एक ट्वीट से हडक़ंप मच गया, जिसमें उन्होंने गेवरा के खदानों में संगठित चोरी का आरोप लगाया। बाद में जरूर यह पता चला कि यह वीडियो छत्तीसगढ़ का नहीं है। चौधरी के खिलाफ एफआईआर भी हो गई, पर खदानों में कोयला चोरी के खिलाफ दबाव बन ही गया और ताबड़तोड़ कार्रवाई करनी पड़ी। इस तबादला आदेश से संदेश गया है कि देर से ही सही मंत्री जी की बात रख ली गई है। उम्मीद कर सकते हैं कि अब सरगुजा से आ रहे संजीव झा से उनकी ट्यूनिंग ठीक रहेगी।
वैसे कोरबा के जानकार लोग बताते हैं कि कलेक्टर और एसपी के बीच टकराव में कलेक्टर ने एसपी का गनमैन तक छिनवा दिया था। आखऱि में एसपी की छत्तीसगढ़ महतारी की थानों में पूजा काम आयी, आशीर्वाद मिला।
दो माह में ही तबादला..
मुंगेली कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह का केवल दो माह बाद तबादला हो गया। हालांकि उन्होंने 28 अप्रैल को जब प्रभार संभाला था तो रात के 9 बजे का समय तय किया। इसकी वजह बताई गई कि ऐसा शुभ मुहूर्त होने के कारण किया गया। बीते दो माह में कलेक्टर ने जिम, स्टेडियम, सदरबाजार को व्यवस्थित करने के लिए उल्लेखनीय काम किया। वे नगर के सौंदर्यीकरण के लिए भी योजना बना रहे थे। मदकू द्वीप और सेतगंगा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का खाका तैयार कर चुके थे और कहीं-कहीं काम शुरू भी हो गया था। इन सबसे अलग हटकर जो काम उन्होंने किया वह था हेल्पलाइन नंबर का। उन्होंने चौबिसों घंटे, सातों दिन चालू रहने वाले इस नंबर पर लोगों को अपनी शिकायत दर्ज करने की सुविधा दी। किसी छोटे से जिले में ऐसी सुविधा मिलना लोगों के लिए बड़ी बात थी। जिले के लोगों को उम्मीद थी कि वे एक डेढ़ साल रहते तो मुंगेली की तस्वीर बदलने में मदद मिलती। जब तबादला हुआ तो लोग नाराज और मायूस दिखे। उन्होंने एडीएम को सीएम के नाम ज्ञापन सौंपा और तबादला रोकने की मांग की। सोशल मीडिया पर भी पोस्ट डाले जा रहे हैं। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हो गया। हां, लगे हाथ बता दें कि दूसरे नये बने जिलों की तरह मुंगेली में भी अवैध प्लाटिंग का धंधा जोरों पर है और कलेक्टर ने उन पर भी नकेल कसना शुरू कर दिया था।
दो मुंह वाला सांप..
दो मुंह वाले इस सांप का नाम है सैंड बोआ, जो बेहद दुर्लभ प्रजाति के होते हैं। विदेशों में इसकी मांग करोड़ों रुपये में है। कैंसर और यौन शक्ति बढ़ाने की दवा में काम आता है। यह सांप विलुप्त होने के कगार पर है। इनका जीवनकाल भी बहुत छोटा होता है। आम तौर पर ये सांप चूहे, छिपकली, मेंढक, खरगोश आदि का शिकार करते हैं। जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा वन परिक्षेत्र के ग्राम शनिचरीडीह में इसे बीते गुरुवार को दोपहर में देखा गया। दो मुंह का होने के कारण लोग बड़ी संख्या में इसे कौतूहल के साथ देखने पहुंचे। कुछ लोग तो पूजा-पाठ भी करने लगे। हालांकि काफी कीमती होते हुए भी ग्रामीणों ने इस सांप को पकडऩे की कोशिश नहीं की। कुछ देर बाद यह जंगल में झाडिय़ों के बीच जाकर छिप गया।