राजपथ - जनपथ
क्या शिक्षक निकम्मे हैं?
प्रदेश में स्कूली शिक्षा की दशा दयनीय है। यह समय-समय पर देश की सरकारी, गैर-सरकारी एजेंसियों के सर्वे से पता चलता रहता है। सुधार कैसे हो, इस पर चर्चा के लिए एक वेबिनार बीते 30 जून को रखा गया था। इस मंथन के बाद चर्चा में जो शब्द आया, वह है- निकम्मा।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि प्रमुख सचिव ने उनको यही कहा। शिक्षा की बदहाली का पूरा दोष शिक्षकों पर मढ़ दिया। नीतियां, कार्यक्रम अधिकारी बनाकर देते हैं और तरह-तरह के प्रयोग लागू करने की जिम्मेदारी शिक्षकों से सुझाव लिए बिना लाद दी जाती है। शिक्षकों का कहना है कि कोरोना काल में जब स्कूल बंद हो गए थे उन्होंने कठिन परिस्थितियों में बच्चों को शिक्षा से जोडक़र रखने का काम किया। इतने शिक्षकों को कोविड ड्यूटी के दौरान जान गई, जितनी किसी और विभाग में नहीं। उनको अच्छे कामों पर कभी प्रोत्साहन, पदोन्नति, शाबाशी नहीं दी जाती। पुरस्कार मिलने का मौका आता है तो अधिकारी खुद लेने चले जाते हैं। हमें अब रिजल्ट ठीक नहीं आने पर दंड देने की चेतावनी दी जा रही है।
जो बात बाहर निकलकर आई है उसके अनुसार जिन कक्षाओं में 80 प्रतिशत बच्चे फेल हो जाएंगे, उनके शिक्षक आने वाले 10 साल तक प्रमोशन नहीं पा सकेंगे। उनके सर्विस रिकॉर्ड में भी इसे अयोग्यता के रूप में दर्ज किया जाएगा। अधिकारी कहते हैं कि- और कोई उपाय नहीं है। लाख कोशिशों के बाद भी नतीजे ठीक नहीं आ रहे तो क्या करें?
कुल मिलाकर इस टकराव के माहौल में नए शिक्षा सत्र में बच्चों को कोई बदलाव देखने को मिलेगा, इसके आसार कम ही हैं।
असम की चाय और बाढ़...
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वालों को आम भारतीयों की अपने प्रति उदासीनता का कितना रंज है, इस पोस्टर से पता चल रहा है। हाल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की फौज वहां डटी हुई थी, पर बाढ़ से बेघर हुए लाखों लोगों की तकलीफ को कवर करने वह वहां नहीं थी। पूरी भीड़ उस पांच सितारा होटल के बाहर थी, जहां महाराष्ट्र की सरकार गिराने के लिए शिवसेना के बागी विधायक टूर पर थे।
भाजपा नेतृत्व में फेरबदल जल्द?
भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की दो दिन की बैठक हैदराबाद में शनिवार को शुरू हुई थी। इस बात की चर्चा है कि इसके तुरंत बाद छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन पर फैसला लिया जाएगा। पार्टी के कई नेता मानकर चल रहे हैं कि जो आक्रामक तेवर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा को अपनाना चाहिए, वह गायब है। इस बात को समय-समय पर पार्टी के कई नेता पार्टी के मंचों पर और खुले में भी कह चुके हैं। कांग्रेस ने खासकर मैदानी इलाकों में ओबीसी वोटरों पर जैसी पकड़ बीते तीन चार सालों में बनाई है, यह कहा जा रहा है कि भाजपा भी किसी तेज-तर्रार ओबीसी नेता को सामने ला सकती है। इसके बावजूद कि अभी नेता प्रतिपक्ष पद पर भी ओबीसी नेता धरमलाल कौशिक ही हैं। छत्तीसगढ़ की कमान इस बार दूसरे प्रमुख ओबीसी वोटर समूह साहू समाज को दी जा सकती है। फिर आदिवासी सीटों पर पकड़ मजबूत करने के लिए क्या किया जाएगा? इसके लिए एक विशेष समिति बनाई जाएगी, जिसमें नेता प्रतिपक्ष, प्रदेशाध्यक्ष, सांसद और पूर्व सांसद शामिल किए जाएंगे। कार्यसमिति की बैठक खत्म होने के दो चार दिन के भीतर ही इस पर फैसला हो सकता है।