राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मेधा पाटकर पर एफआईआर सियासत?
11-Jul-2022 6:08 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मेधा पाटकर पर एफआईआर सियासत?

मेधा पाटकर पर एफआईआर सियासत?

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर के खिलाफ मध्यप्रदेश पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। शिकायत एक ग्रामीण की है जिसने शिक्षा के प्रबंध के लिए मिली रकम का राष्ट्र विरोधी एजेंडे में दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। मेधा पाटकर ने हाल ही में छत्तीसगढ़ दौरा किया था। हसदेव बचाओ आंदोलन में शामिल हुई। रायपुर, बिलासपुर और आंदोलन स्थल हरिहरपुर की सभाओं में उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार की पर्यावरण और खदानों की मंजूरी की नीतियों की जबरदस्त आलोचना की। अडानी-अंबानी के साथ केंद्र सरकार के रिश्तों पर तीखे सवाल उठाए।

वैसे हमें कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। बस मेधा पाटकर की प्रतिक्रिया पर ध्यान देना चाहिए जो एफआईआर दर्ज होने के बाद कह रही हैं कि आरोप के पीछे राजनीतिक कारण हो सकते हैं। उनके पास पूरे खर्च का हिसाब है, जिसका ऑडिट भी हुआ है। पुलिस का ही कहना है कि शिकायत में सालों पहले हुए मामलों का जिक्र है। यह भी बात करते चलें कि पाटकर के साथ छत्तीसगढ़ आए पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम् ने कहा कि राहुल गांधी को ईडी शायद इसलिये बार-बार बुलाकर परेशान कर रही हैं क्योंकि उन्होंने हसदेव में कोयला खदान के आवंटन का विरोध किया है।

पौधा रोपने वालों को नसीहत

बारिश के मौसम में केवल तस्वीरें खिंचवाने और छपवाने वालों के लिए एक नसीहत। पौधों का पालन-पोषण न कर पाएं तो कम से कम नर्सरी से उखाडक़र उसकी जान न लें।

स्थानीय बोली में पढ़ाई की चिंता..

छत्तीसगढ़ सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग ने एक सर्वे कराया था जिसमें यह पाया गया कि प्राथमिक शाला के बच्चों को उनकी स्थानीय बोली में शिक्षा दी जाए तो वे किसी भी विषय को जल्दी समझ सकेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री और स्कूल मंत्री के निर्देश पर अधिकारियों ने जिले के शिक्षा अधिकारियों को और फिर इन अधिकारियों ने प्राचार्यों को स्थानीय बोली में शिक्षा देने का निर्देश जारी कर दिया। मैदानी इलाकों में ज्यादातर छत्तीसगढ़ी बोली जाती है। सरगुजा और जशपुर की बोली भी हिंदी और छत्तीसगढ़ी के करीब है। थोड़ी कोशिश कर समझी जा सकती है। इन जगहों पर तो ठीक है पर बस्तर संभाग के शिक्षक इस आदेश से चिंता मे पड़ गए। यहां प्रमुख रूप से तीन तरह की स्थानीय बोलियां हैं। हल्बी, भतरी और गोंडी। ज्यादातर शिक्षकों की इन बोलियों में पकड़ नहीं है। ये छत्तीसगढ़ी और हिंदी से अलग भी हैं। हल्बी और भतरी तो कुछ समझ में आ सकता है पर जिन्होंने इस वातावरण में नहीं रहा हो उन्हें गोंडी बिल्कुल समझ नहीं आएगी। स्थिति यह अब है पहले शिक्षकों को इन बोलियों को सीखना होगा, तब जाकर वे बच्चों को सिखा पाएंगे। क्या पता, बच्चे ही यह महती जिम्मेदारी उठा लें और शिक्षकों को अपडेट करें।

अब खूबसूरत वादियों का दर्शन किरंदुल से..

विशाखापट्टनम से अरकू वैली तक पहले से ही विस्टाडोम कोच के साथ ट्रेन चलती थी। अब 15 जुलाई से किरंदुल से विशाखापट्टनम तक की पूरी दूरी विस्टाडोम कोच से तय की जा सकेगी। अब इस मार्ग की पूरी खूबसूरती को सफर की शुरुआत से निहारा जा सकेगा। हां, यह जरूर है कि किरंदुल-विशाखापट्टनम एक्सप्रेस को अब स्पेशल ट्रेन बना दिया गया है। स्पेशल यानी किराया ज्यादा होगा, जिसकी घोषणा एक-दो दिन में होने की संभावना है।

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