राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : इसने बच्चों को क्या पढ़ाया होगा?
27-Jul-2022 6:23 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : इसने बच्चों को क्या पढ़ाया होगा?

इसने बच्चों को क्या पढ़ाया होगा?

जशपुर जिले में एक वृद्ध महिला की सुपारी किलिंग हुई है। शूटर तो वारदात के बाद झारखंड वापस भाग गए, पर स्थानीय तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। महिला की हत्या जिस व्यक्ति ने कराई वह रिटायर्ड शिक्षक है। उसे महिला पर टोनही होने का शक था और अपने परिवार में हो रही बीमारियों के लिए उसे जिम्मेदार मानता था। ग्रामीण क्षेत्र, खासकर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति खराब है, साक्षरता दर भी अच्छी नहीं है, वहां बीमार होने पर जादू-टोना, झाड़-फूंक पर भरोसा कर लेना स्वाभाविक है। पर एक शिक्षक को तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए, खासकर तब जब बच्चे लंबे समय से बीमार चल रहे हैं और जान पर तत्काल कोई खतरा नहीं है। इस शिक्षक ने अपनी नौकरी के 30-35 सालों में सैकड़ों बच्चों को पढ़ाया होगा। यह सहज सवाल है कि क्या उसने बच्चों के बीच वैज्ञानिक चेतना को प्रोत्साहित करने का कोई काम किया होगा? क्या बच्चों को यह बताया होगा कि टोनही जैसी कोई प्रजाति नहीं होती, बीमारी अस्पताल में ही ठीक हो पाती है। दूसरी ओर, कई बार सरल सी दिखाई देने वाली चीजें वैसी होती नहीं है। ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जब महिला की संपत्ति हड़पने के लिए दुष्प्रचार कर दिया जाता है कि वह टोनही है। खासकर ऐसी महिलाएं जिनके आगे पीछे कोई देखभाल करने वाला नहीं होता। यह महिला भी विधवा ही थीं। पुलिस गहराई से जांच करे तो कुछ नए तथ्य जरूर सामने आ जाएंगे।

सारे के सारे पुरुष!

सोशल मीडिया की मेहरबानी से इन दिनों बहुत से मुद्दे उठाए जाना मुमकिन हो गया है। अब बिना किसी खर्च के किसी आयोजन का प्रचार भी आसानी से हो सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार, रविशंकर विश्वविद्यालय, और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, साहित्य अकादमी, इन सबने मिलकर प्रेमचंद पर एक दिन की विचार गोष्ठी का आयोजन किया है.  इस आयोजन से जुड़े हुए लोगों ने अपने सोशल मीडिया पेज पर जब यह निमंत्रण डाला तो रायपुर की एक सामाजिक कार्यकर्ता मनजीत कौर बल ने इस पर आपत्ति उठाई कि न तो वक्ताओं में, और न ही आयोजकों में एक भी महिला का नाम पढऩे मिल रहा है। जिन दस लोगों के नाम कार्ड पर अलग-अलग जिक्र के साथ पढऩे मिल रहे हैं, वे सारे के सारे पुरुष नाम हैं। अब यह सोशल मीडिया ही है जिस पर इस बात को उठाया जा सकता है, और उठाया जाना चाहिए। कुछ और लोग अगर होंगे तो वे इस बात को भी तलाश सकते हैं कि इन नामों में से कोई भी नाम अल्पसंख्यक, या आदिवासी, या दलित है या नहीं है!

सत्र, सोनिया और सिंहदेव

विधानसभा सत्र के दौरान लगभग यह तय है कि मंत्री टीएस सिंहदेव आगे के दिनों में भी भाग नहीं ले रहे हैं। वे अहमदाबाद से दिल्ली और फिर भोपाल आ गए थे। पर सत्र के लिए लौटे नहीं, अब फिर दिल्ली में है। वे एक बार फिर हाईकमान के सामने अपनी बात रखना चाहते हैं। पर, इस समय दिल्ली में सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ हो रही है। राहुल गांधी सहित तमाम कार्यकर्ता इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन ही नहीं कर रहे बल्कि गिरफ्तारियां भी दे रहे हैं। ऐसे में हाईकमान से छत्तीसगढ़ और उनकी अपनी स्थिति पर बात हो ही नहीं पा रही है। इधर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के विधायक सत्र में व्यस्त हैं। उनके करने के लिए कुछ बाकी नहीं है। बहुत से विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त बयान वैसे भी हाईकमान के पास चला गया है, जिसमें सिंहदेव पर कार्रवाई की मांग की गई है। इस एपिसोड की अगली कड़ी सिंहदेव के साथ दिल्ली में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद ही दिखाई देगी।

मशरूम की यह नई वेरायटी..

बरसात में तरह-तरह के खाद्य पदार्थ अपने आप धरती पर उग आते हैं। जो पौष्टिक और औषधीय गुणों वाले भी होते हैं। इन दिनों प्राकृतिक मशरूम यानि पुटु भी जगह-जगह उगे दिखाई देती है। पर यहां जिसकी बात हो रही है वह एक नई वेरायटी है। इसे मोहनभाठा (कोटा) के सागौन प्लांट पर कुछ खेतिहर महिलाएं चुन रही थीं। छोटे-छोटे इन सफेद पौधों को कनकी पुटु कहा जाता है। कनकी यानि चावल के छोटे दाने। इन्होंने बताया कि इसकी सब्जी बहुत अच्छी बनती है। जैसे झींगा मछली को बनाते हैं। कनकी पुटु भिंगोकर रख दें। प्याज, नमक, मिर्च और हल्दी को तलकर हल्का लाल कर लें और कनकी पुटु को उसमें डाल दें। बस थोड़ी ही देर में स्वादिष्ट सब्जी तैयार।

छत्तीसगढ़ में धान की अलग-अलग वेरायटी पर काफी शोध हुए हैं। सैकड़ो नये किस्म वैज्ञानिकों ने ईजाद भी किए हैं, पर जंगल, खेत, बाड़ी में अपने-आप उग आने वाली सब्जियों, पौधों पर शोध बाकी है। बारिश की दिनों में जो सैकड़ों तरह की ऐसी प्रजातियां दिखाई पड़ती हैं, उनका सेवन करने के लिए ग्रामीण अपने पूर्वजों से मिले ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं। विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को इसे सूचीबद्ध करना चाहिए। साथ ही शोध करके बताना चाहिए कि कौन सा पौधा गुणकारी है और कौन सा जहरीला। पौष्टिक और विटामिन से भरे पौधे ग्रामीण बिना खर्च एकत्र कर सकेंगे और कुपोषण से भी लड़ सकेंगे। 

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