राजपथ - जनपथ
ताकि लंबी न खिंचे हड़ताल
पांच दिनी हड़ताल पर सरकार के सख्त रवैये ने कर्मचारी संगठनों को हैरान कर दिया है। कर्मचारियों को कोई सरकार नाराज नहीं करना चाहती है। पर, हर, 4.5 लाख कर्मचारियों का वेतन काटने का आदेश जीएडी ने निकाला है। क्या सचमुच कटेगा? कर्मचारी संगठनों से बात करने पर मालूम हुआ कि फेडरेशन ने तो फिलहाल कलम बंद आंदोलन आगे बढ़ाने के लिए मना कर दिया है। आंदोलन का तीसरा चरण पूरा हो गया, चौथे चरण की हड़ताल बाद में की जाएगी। फेडरेशन और शिक्षक संगठनों के बीच मतभेद भी उभरा है। शिक्षक संगठन तालाबंदी आगे जारी रखने की घोषणा कर चुके हैं। यानि बाकी अधिकारी-कर्मचारी सोमवार से काम पर लौटेंगे, पर शिक्षक संगठन से जुड़े लोग नहीं। फेडरेशन के साथ समस्या यह है कि हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों का वेतन यदि काट दिया जाता है तो चौथे चरण के लिए लोगों को साथ लेने में दिक्कत जाएगी। कुछ कर्मचारी नेताओं को भरोसा है कि वेतन काटने की बात केवल धमकी है। अभी अगर काट भी दिया गया तो आगे समझौते के दौरान इसे वापस ले लिया जाएगा। ऐसी सुगबुगाहट थी कि आंदोलन जारी रखा जाएगा, इसलिए आदेश निकाला गया है।
पत्थलगढ़ी और राष्ट्रपति
चार साल पहले जब झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों ही जगह भाजपा की सरकार थी, पत्थलगढ़ी आंदोलन ने जोर पकड़ा था। इसकी शुरुआत तो झारखंड के खूंटी इलाके से हुआ था पर धीरे-धीरे जशपुर जिले के छोटे-छोटे गांवों तक फैल गया। भारत के संविधान का हवाला देते हुए गांवों में सरकारी अधिकारी, कर्मचारी ही नहीं, किसी भी बाहरी व्यक्ति के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। यह चेतावनी गांव की सीमा पर पत्थरों के जरिये लगाई गई। मामला विचित्र हो गया था। सामने चुनाव था। न तो छत्तीसगढ़ और न ही झारखंड की सरकार इसे संभाल पा रही थी। छत्तीसगढ़ में पूर्व आईएएस एचपी किंडो और ओएनजीसी के पूर्व अधिकारी जोसेफ मिंज सहित बारी-बारी डेढ़ दो सौ लोग गिरफ्तार कर लिए गए। आंदोलनकारी संविधान का हवाला दे रहे थे। सरकार कह रही थी कि संविधान की गलत व्याख्या कर धर्मांतरण को बढ़ाने के लिए यह सब किया जा रहा है। तनाव के इस दौर में झारखंड की राज्यपाल थीं, अब की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू। ऐतिहासिक मौका था जब एक साथ 500 लोगों ने राजभवन में उनके बुलावे पर प्रवेश किया। इनमें छत्तीसगढ़ और झारखंड दोनों स्थानों से प्रतिनिधि थे। मुर्मू ने उनसे खुला संवाद किया और समझाया कि इस आंदोलन के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, अंतहीन संघर्ष की स्थिति बन सकती है। उन्होंने सबको संविधान की शपथ दिलाई। इसके बाद आंदोलन खत्म हुआ। इस समय बहुत से सवाल उठ रहे हैं कि अतीत में बड़े-बड़े पदों पर रहने के दौरान मुर्मू का योगदान रहा?, पर पत्थलगढ़ी आंदोलन खत्म करने में उनकी भूमिका को तो स्मरण में रखना ही चाहिए।
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