राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : 17 साल में डॉन के रसूख में कमी नहीं
07-Aug-2022 7:32 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : 17 साल में डॉन के रसूख में कमी नहीं

17 साल में डॉन के रसूख में कमी नहीं

सूबे के ताकतवर अपराधी में गिने जाने वाले कुख्यात डॉन तपन सरकार के रसूख में 17 साल बाद भी कमी नहीं आई है। महादेव महार हत्याकांड में सजायाफ्ता तपन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जैसे ही जेल की चारदीवारी से बाहर आया, उसका स्वागत चुनावी फतह करने वाले नेताओं की तरह किया गया। बताते हैं कि जेल से बाहर निकलते ही तपन ने मां बम्लेश्वरी का दर्शन करने की इच्छा जाहिर की। जैसे ही तपन गैंग के बड़े-छोटे बदमाशों को पता चला कि डॉन मां के दर के लिए रवाना हो रहे हैं, उसका काफिले लंबा होता चला गया। बम्लेश्वरी दर्शन के बाद डोंगरगढ़ के नामचीन बदमाशों ने तपन की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। सुनते हैं कि तपन ने राजधानी रायपुर के बाहर एक ढाबे पर राज्यभर के अपराधियों के साथ डिनर भी किया। तपन से मिलने के लिए बस्तर से लेकर सरगुजा और भिलाई तथा बिलासपुर के गुर्गों और सरगनाओं ने रात्रि भोज का लुत्फ उठाया। तपन से मेल-मुलाकात करने के लिए ढ़ाबे के बाहर दर्जनों लक्जरी कारें देखकर ढ़ाबा मालिक भी हैरान दिखा।

तपन सरकार को कुछ अरसा पहले मुठभेड़ में मारने की कथित पुलिस योजना काफी सुर्खियों में रही। उसकी पत्नी ने बकायदा हाईकोर्ट में तपन को फर्जी मुठभेड़ में मारने का डर दिखाते एक याचिका भी दायर की। इसके बाद से तपन को करीब डेढ़ दशक तक छत्तीसगढ़ के लगभग सभी बड़े केंद्रीय जेल में हर छह माह के अंतराल में शिफ्ट किया जाता रहा। जमानत पर बाहर निकलते ही तपन ने अपनी पुरानी धाक को खुलकर जाहिर किया है। तपन का राज्य की आपराधिक दुनिया के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड और उड़ीसा में भी नेटवर्क है। दुर्ग-भिलाई में उसके गुर्गों ने तपन के इशारे पर कई कारोबारियों के पसीने छुड़ा दिए। कहा जाता है कि जेल में रहते हुए भी इसकी वसूली तगड़ी रही। अब बाहर आए तपन का रुआब बरकरार दिखा है।

नो बैग डे की रचनात्मकता

सरकारी स्कूलों में शनिवार के दिन को नो बैग डे घोषित कर बच्चों के भीतर छिपी हुई प्रतिभा को सामने लाने का अच्छा मौका दिया गया है। कोरबा जिले की सुदूर पहाड़ी में बसे गढक़टरा के प्राथमिक स्कूल में श्रीकांत सिंह सहायक शिक्षक हैं। वे पहले ही बच्चों को अनेक तरह की क्रियेटिव गतिविधियों से जोड़ चुके हैं। पहले पढ़ाई के बाद बचने वाले समय में ऐसा किया जाता था, पर अब शनिवार का पूरा वक्त भी उनके साथ है। इसी कड़ी में उन्होंने जींस के कपड़ों का गमला तैयार किया है। पहले एक जींस खुद अपने घर से लेकर आए, फिर बच्चों ने भी घर गांव में ढूंढकर कई इस्तेमाल की जा चुकी जींस ले आए। सबमें मिट्टी भरी गई और पौधे लगा दिए गए। इन पौधों की देखभाल बच्चे खुद ही करते हैं। जींस से गमले तैयार करने का लाभ यह है कि पौधों को अच्छी खुराक मिल जाती है। यहां की कुछ जमीन बंजर, पथरीली भी है। पानी भी बेकार नहीं जाता। स्कूल प्रांगण पर काफी हरियाली हो चुकी है। अब गांव के दूसरे हिस्सों में, सडक़ों के किनारे भी पौधे रोपे जा रहे हैं। स्कूल परिसर की जमीन पर ही बच्चे मध्यान्ह भोजन के लिए जरूरी कुछ साग-सब्जियां भी उगा रहे हैं। पौधों के साथ बच्चों की आत्मीयता बढ़े, इसके लिए वे इनके समीप ही बैठकर दोपहर का भोजन करते हैं। मतलब यह है कि यदि शनिवार के नो बैग डे का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह बहुत उपयोगी है। वरना, कई स्कूलों में तो इसे छुट्टी का एक और दिन मान लिया गया है। बच्चों को तराशने में शिक्षकों की रुचि कितनी है, इस पर बात निर्भर है।

जालसाजों की पहली पसंद अफसर

महीने, दो महीने में एक दो केस छत्तीसगढ़ से ही आने लगे हैं। जालसाज फेसबुक या वाट्सएप पर किसी आईएएस, आईपीएस के नाम का इस्तेमाल कर एकाउंट बनाते हैं और लोगों से संपर्क कर पैसे मांगते हैं। इस बार दंतेवाड़ा कलेक्टर विनीत नंदनवार के नाम का इस्तेमाल कर अधिकारियों से पैसे मांगे जा रहे हैं। कलेक्टर ने एफआईआर दर्ज कराई है, पुलिस जांच कर रही है। कलेक्टर को अपने वाट्सएप स्टेटस पर लिखना पड़ा है कि कोई अज्ञात व्यक्ति उनके नाम से जालसाजी कर रुपये मांग रहा है। ऐसे संदेश आते हैं तो उस पर ध्यान न दें।

सामान्य धारणा है कि कोई आईएएस या आईपीएस पैसे की ऐसी खुलेआम डिमांड क्यों करेगा। वैसे भी सक्षम हैं। बहुत जरूरी हुआ तो दोस्तों, परिवारों के दायरे में व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर लेंगे। पर जालसाज मनोविज्ञान की अच्छी समझ रखते हैं। किसी अनजान, अपरिचित चेहरे का फर्जी एकाउंट बनाकर मांगेंगे तो उन्हें देगा कौन? इसलिए उनके सेलिब्रिटी तो ये बड़े अफसर ही हैं।

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