राजपथ - जनपथ
अफसर गुप्ता प्रकरण से सीख लें
पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता को कोयला घोटाले के एक अन्य प्रकरण में दिल्ली की अदालत ने तीन साल कैद की सजा सुना दी। दो अन्य प्रकरण में पहले ही उन्हें सजा हो चुकी है। आप सोच रहे होंगे कि गुप्ता का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है? दरअसल, गुप्ता के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में कई उद्योगों को कोयला खदान आबंटित किया गया था, लेकिन बाद में सभी निरस्त भी हो गए।
गुप्ता को यूपीए सरकार में सबसे ईमानदार, और अच्छी साख वाला अफसर माना जाता रहा है। और जब उनके खिलाफ सीबीआई ने प्रकरण भी दर्ज किए, तो भी आईएएस अफसरों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। सब जानते थे कि पीएमओ के दबाव में आकर उन्होंने खदान आबंटित किए हैं। उनका अपना कोई एजेंडा नहीं था। यूपी कैडर के अफसर गुप्ता का पूरा कैरियर बेदाग रहा है। बावजूद उन्हें प्रक्रिया त्रुटि के चलते खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन सीएस शिवराज सिंह, और कई अन्य अफसरों ने गुप्ता के पक्ष में गवाही भी दी थी, लेकिन वह भी कोई काम नहीं आ पाई।
बताते हैं कि गुप्ता को अदालती लड़ाई लडऩे के लिए उनके साथी आईएएस अफसरों ने व्यक्तिगत तौर पर एक से पांच हजार रुपए एसोसिएशन में जमा किए थे, और गुप्ता को वकील की फीस के लिए दिए गए। छत्तीसगढ़ के कई अफसरों ने भी एसोसिएशन के माध्यम से उन्हें सहयोग किया। गुप्ता ऑटो से रोजाना कोर्ट जाते थे, और घंटों कटघरे में खड़ा रहते थे। जांच एजेंसी सीबीआई के अफसरों को भी उनसे व्यक्तिगत सहानुभूति रही, लेकिन वो कोई मदद नहीं कर पाए। नियम कायदों को ताक पर रखकर सरकारी धन-योजनाओं के जरिए गुलछर्रे उड़ा रहे अफसरों को गुप्ता प्रकरण से सीख लेनी चाहिए। क्योंकि उन्हें कम से कम गुप्ता जैसी सहानुभूति तो नहीं मिल सकती है।
घोषणा होते-होते रह गई
प्रदेश के सरकारी अफसर-कर्मी डीए बढ़ाने की मांग पर अड़े हुए हैं। वो पांच दिन के सामूहिक अवकाश पर गए थे, और अब बेमुद्दत हड़ताल पर जाने का ऐलान कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि दाऊजी को सरकारी सेवकों की चिंता नहीं है। वे 9 से 10 फीसदी डीए एक साथ बढ़ाने पर विचार कर रहे थे कि उत्साही कर्मचारी नेताओं ने अपने मांगों के समर्थन में राजनीतिक दलों के नेताओं को मंच पर बुलाना शुरू कर दिया।
विष्णुदेव साय कर्मचारियों के साथ धरने पर बैठे, और आंदोलन को पार्टी की तरफ से समर्थन की घोषणा कर दी। सामूहिक अवकाश के बाद कर्मचारी नेता दाऊजी से मिलने की कोशिश की, तो उन्हें समय नहीं मिला। सुनते हैं कि दाऊजी कर्मचारी नेताओं के विपक्ष के नेताओं के साथ मंच साझा करने से नाराज हैं। यही वजह है कि डीए की घोषणा होते-होते रह गई।
किसानों ने की फसल बीमा से तौबा....
कुछ साल पहले यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में थी, जिसमें बताया गया था कि धमतरी जिले के एक ढाई एकड़ खेत के मालिक को फसल सूखने पर 2.83 रुपए का मुआवजा मिला। इसी जिले में कुछ और किसानों को 4 या 5 रुपये ही मुआवजा मिला। बाद में भी यही सिलसिला चलता रहा। बिलासपुर जिले के मस्तूरी के किसान को तो सिर्फ 90 पैसे का भुगतान किया गया। छत्तीसगढ़ के दूसरे कुछ जिलों से भी ऐसी खबरें आईं।
जनवरी 2016 में केंद्र ने बड़े जोर-शोर से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की घोषणा की थी और इसे ऐतिहासिक कदम बताया था। प्राय: सभी लघु और मध्यम श्रेणी के किसान सहकारी बैंकों से खाद-बीज के लिए कर्ज लेकर ही खेती कर पाते हैं। इन सभी के लिए फसल बीमा योजना में पंजीयन कराना जरूरी था। प्रीमियम राशि का 5 प्रतिशत कर्ज लेते समय ही काट लेने का नियम बनाया गया था।
लोगों ने आंकड़े निकालकर बताया कि बीमा कंपनियां कैसे मालामाल हो गईं और किसान किस तरह लुट गया। चौतरफा विरोध का नतीजा यह निकला इस साल बीमा कराने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। बीमा कराने में किसान रुचि नहीं ले रहे हैं। पहले 15 जुलाई फिर 31 जुलाई बीमा की आखिरी तारीख तय की गई। अब 16 अगस्त तक बढ़ा दी गई है। अभी अंतिम आंकड़े नहीं आए हैं पर हर जिले से खबर आ रही है कि बीमा कराने वाले किसानों की संख्या कम हो रही है। यानि किसान मानकर चल रहे हैं कि बीमा कराने से उनका फायदा नहीं है।
नए बस-स्टैंड में अवैध वसूली
रायपुर के भाठागांव में नया बस स्टैंड शुरू होने के बाद एक नई व्यवस्था शुरू हो गई, जो शायद प्रदेश के दूसरे और किसी बस-स्टैंड में नहीं है। यहां गेट के पहले बैरियर लगाकर पार्किंग के नाम पर राशि वसूली शुरू हो गई है। मालूम हुआ कि अधिकारिक रूप से नगर-निगम ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है, किसी को ठेका नहीं दिया गया है, पर वसूली जारी है। क्या नगर निगम के अधिकारी और जनता के प्रतिनिधि इस बात को नहीं जानते? पिछले दिनों रायपुर पुलिस ने बस स्टैंड में काम करने वाले एजेंटों को बुलाया। यात्रियों की ओर से लगातार आ रही शिकायत पर चर्चा करते हुए उनसे कहा कि वे असामाजिक तत्वों से काम न लें और उनसे दुर्व्यवहार न करें। इस समस्या पर बात नहीं हुई। पुलिस के पास भी क्या इसकी खबर नहीं है कि टिकट कटाने या परिजनों, दोस्तों को बस-स्टैंड छोडऩे के लिए जा रहे लोगों की जेब काटी जा रही है?
क्या खाक डूब मरेंगे...
निर्माण कार्यों में कई बार ठेकेदार जानबूझकर देरी करते हैं। बहुत से अफसर भी ऐसा चाहते हैं। अलग-अलग कारण बताकर देरी को जायज ठहरा दिया जाता है, पर योजना की लागत बढ़ जाती है। मुंगेली जिले के कलेक्टर राहुल देव लोरमी दौरे पर गए तो देखा कि वहां प्रस्तावित स्वामी आत्मानंद स्कूल भवन का काम पूरा ही नहीं हुआ है। चार छह महीने के भीतर इसके पूरा होने की संभावना भी नहीं है, जबकि स्कूल का सत्र शुरू हो चुका है। देरी को लेकर उन्होंने आरईएस के अधिकारियों और ठेकेदारों पर जमकर नाराजगी जताई और कहा- समय पर काम पूरा नहीं कर पाने वालों को तो डूबकर मर जाना चाहिए। बात अफसरों और ठेकेदार की कितनी बुरी लगी होगी, यह तो पता नहीं पर उनके लौटने के बाद भी काम ने गति नहीं पकड़ी है।