राजपथ - जनपथ
झंडे की एक फोटो पर बहस...
जिस तरह भारतीय संसद भवन के ऊपर बनाए गए विशाल और विकराल राजचिन्ह को लेकर यह विवाद चल रहा है कि उसके शेर असली अशोक स्तंभ के शेरों से अधिक हिंसक बनाए गए हैं क्या, ठीक उसी तरह आज जगह-जगह यह विवाद चल रहा है कि देश भर में चलाए जा रहे तिरंगा अभियान के झंडे सही बने हैं या गलत? सरकार डाकघरों से झंडे बेच रही है, और सोशल मीडिया पर जब बहुत से लोगों ने यह लिखा कि ये झंडे गलत बने हुए हैं, तो इस अखबार ने भी काउंटर से एक झंडा खरीदकर मंगवाया। इसे छांटकर खराब वाला नहीं खरीदा गया था, जो मिला था वही लिया गया, और इसमें अशोक चक्र बीच में होने के बजाय एक किनारे पर था, जो कि झंडा नियमों के बहुत ही खिलाफ है। अब देश के एक प्रमुख उद्योगपति, और ट्विटर पर भारी सक्रिय आनंद महिन्द्रा ने अपनी एक फोटो पोस्ट की है जिसमें मुम्बई की पोस्ट मास्टर जनरल जाकर उन्हें तिरंगा भेंट कर रही हैं। अगर यह तस्वीर झंडे को सही बतला रही है, तो इसमें केसरिया रंग हरे के मुकाबले करीब डेढ़ गुना चौड़ा दिख रहा है। हो सकता है कि कैमरे के एंगल की वजह से भी तस्वीर ऐसी आई हो, लेकिन तुरंत ही सैकड़ों लोगों ने आनंद महिन्द्रा की इस फोटो पर उन्हें झंडा कानून बताना शुरू कर दिया, झंडे के आकार का अनुपात भी गलत होने की बात गिनाई। लोगों ने कहा कि झंडे का असली आकार आयताकार होता है, जो कि इस झंडे में उस अनुपात में नहीं दिख रहा है। जागरूक लोगों ने संविधान सभा की झंडा-बहस तक को पोस्ट कर दिया, और इस झंडे को राष्ट्रीय प्रतीक के साथ खिलवाड़ बताया गया।
सीतानदी में बाघ हैं भी या नहीं?
उदंती सीतानदी के मैनपुर में पिछले दिनों अतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया गया था। सीतानदी क्षेत्र में बाघ हैं या नहीं, इस पर कई बार सवाल उठाए जा चुके हैं। अब एक संस्था प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाइटी ने दावा किया है कि यहां बाघ ही नहीं है। इसके बावजूद बीते 12 वर्षों से करीब 40 करोड़ रुपये बाघ संरक्षण के नाम पर फूंक दिए गए। संस्था ने कई तथ्यों के साथ प्रधानमंत्री ही नहीं, सीजेआई को भी शिकायत भेजी है। इसमें बताया गया है कि बाघ अभयारण्य के बाहर गरियाबंद जिले में और ओडिशा से सोनाबेड़ा अभयारण्य में है, पर सीतानदी में जिस इलाके को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है, उसमें तो एक भी नहीं।
बाघ संरक्षण के नाम पर जब भारी बजट और संसाधन खर्च किए जाते हैं तो ऐसी शिकायतों की जांच जरूर करनी चाहिए। बहुत सालों से अचानकमार अभयारण्य को लेकर भी यही कहा जाता है कि यहां बांधवगढ़ और कान्हा नेशनल पार्क से बाघ विचरण करने जरूर आते हैं, पर बाघों का यह स्थायी ठिकाना नहीं।
प्रकृति के सफेद सफाई कर्मी...
दुनिया भर में गिद्धों के विलुप्त होने पर चिंता बढ़ रही है। इसे प्रकृति का स्वाभाविक सफाई कर्मी माना जाता है। शव और मृत पशु इनका आहार होता है। आम तौर पर ये काले रंग के होते हैं। सफेद गिद्ध का दिखना दुर्लभ है। यह तस्वीर अचानकमार अभयारण्य के समीप कोटा की है। माना जाता है कि ये सफेद गिद्ध इजिप्त से प्रवास कर यहां पहुंचते हैं। इनका नाम ही इजिप्शियन वल्चर है।