राजपथ - जनपथ
और इधर खदान शुरू करने की मांग
हसदेव अरण्य में पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई रोकने के बाद भी आंदोलन जारी है। प्रभावित आदिवासियों को लगता है कि जिस दिन वे धरना रोक देंगे, खदान का काम तेजी से चल निकलेगा। अभी भी वहां फारेस्ट क्लीयरेंस यथावत है। केंद्र की लीज भी कायम है। पेड़ों की कटाई बंद है पर मशीनें वहां लग रही हैं। इसलिए आशंका जायज है। राजस्थान बिजली बोर्ड (आरआरवीयूएनएल) और एमओडी धारक अडानी समूह की ओर से अब तक सरकार और प्रशासन पर कई दबाव डाले जा चुके हैं। स्वयं राजस्थान के मुख्यमंत्री सामने आए। अधिकारियों का दल मंत्रालयों में तो पहुंचता ही रहा। उन्होंने सरगुजा, सूरजपुर के अफसरों को यह समझाने का प्रयास किया कि 30 जून तक खदान का काम शुरू नहीं हुआ तो अंधेर हो जाएगा, तब पेड़ काटने के लिए पुलिस फोर्स की सुरक्षा भी दे दी गई। अडानी समूह ने सोशल मीडिया, प्रेस नोट और आउटडोर विज्ञापनों को भी हथियार बनाया। कुछ स्थानीय लोगों को बैनर पोस्टर लेकर खदान के समर्थन में तस्वीर छापी गईं। अब सरगुजा में स्थानीय ग्रामीणों की एक रैली निकली है। वे अगले चरण की परियोजना को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। बिलासपुर मार्ग पर साल्ही ग्राम में वे बीते एक सप्ताह से धरने पर भी हैं। उनका कहना है कि मौजूदा खदान जल्दी बंद होने वाला है। पेटी ठेकेदार के अंदर वे काम करते हैं, जो उनकी ड्यूटी में कटौती करने लगे हैं। खदान की बदौलत चल रहा व्यापार खत्म हो जाएगा। अच्छी शिक्षा और अस्पताल से वंचित हो जाएंगे। रैली में करीब 100-150 लोग शामिल थे। हालांकि दावा है कि 5000 लोगों का रोजगार छिन जाएगा।
एक पक्ष यह भी है कि पहली खदान बंद होने की आज नौबत आई है तो दूसरी खदान जो खुलेगी वह भी दोहन के बाद कुछ सालों में बंद हो जाएगी। फिर रोजगार, अस्पताल और स्कूल भी कौन सी कंपनी चलाना चाहेगी? जंगल और उससे मिलने वाली आमदनी तो खत्म हो ही चुकी रहेगी। ऐसा चिरमिरी, कोरबा, बैलाडीला, अमरकंटक जैसे बंद हो चुकी खदानों के कई उदाहरण सामने हैं। ऐसी स्थिति में तो हसदेव को बचाने लिए किए जा रहे अपने आंदोलन को वहां के आदिवासी सही भी ठहरा सकते हैं।
गुम मोबाइल पुलिस के कब्जे में...
पुलिस ने चोरी किए गए ये फोन बरामद किए हैं। इनकी संख्या 120 है, जो चुरा लिए या गुम हो गए थे। बिलासपुर पुलिस ने एक समारोह रखा। सभी मोबाइल फोन धारकों को बुलाया और तस्वीरें खिंचवाकर उन्हें फोन वापस किए गए। जो तस्वीरें आईं उनसे लगा कि मोबाइलधारक इनाम पा रहे हैं। पर बात यह है कि ये फोन एक दिन में तो जब्त किए नहीं गए। जब्त मोबाइल को पुलिस बरामद होने के तुरंत बाद नहीं लौटाती। महीनों तक थानों में जमा करके रखा जाता है। बहुत से लोगों को इस बीच पता ही नहीं चलता कि उनका फोन मिल चुका है। उम्मीद छोड़ दी और नया खरीद लिया। एक अफसर का कहना है कि ऐसा तो हर जिले में होता है। मोबाइल जब्त होते ही लौटाने लगें तो पुलिस को शाबाशी कैसे मिलेगी? दिलचस्प यह भी है कि इनमें से कई फोन ऐसे हैं जिसमें चुराने वाले ने ही मालिक का नाम बताया, फिर उसे थाने बुलाया गया और एफआईआर दर्ज करने की औपचारिकता पूरी की गई।
सरपंचों को पेंशन क्यों नहीं?
सरपंचों के एक संगठन ने प्रदेशव्यापी हड़ताल शुरू की है। कर्मचारियों, अधिकारियों की हड़ताल की शोर में यह घटना दब गई है। वैसे भी सरपंचों को रोजाना दफ्तर जाने जैसा काम करना नहीं पड़ता। इसलिए भी असर दिखाई नहीं दे रहा है। इन्होंने 11 मांगें रखी हैं, जिनमें जोर इस बात पर भी दिया है कि कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें भी विधायकों-सांसदों की तरह आजीवन पेंशन दें। ज्यादा बड़ी रकम नहीं, केवल 10 हजार रुपये महीने की मांग कर रहे हैं। विधायक भी पांच साल के बाद पेंशन पाने लगते हैं, फिर उन्हें क्यों नहीं मिले? अभी जरूर ग्राम पंचायतों में इतना फंड, खासकर केंद्रीय मदों से आने लगा है कि सरपंच चुनाव भी विधायक-सांसद चुनाव की तरह लड़ा जाने लगा है। खूब पैसा खर्च किया जाता है। पर यह सब पांच साल के लिए ही होता है। उसके बाद क्या? सरकार ने यह मांग अगर मांग ली तो सरपंची में करियर बनाने के लिए ज्यादा होड़ मच जाएगी।