राजपथ - जनपथ
दलबदल और तनाव
खबर है कि दो विधायकों की अपने पार्टी के मुखिया से तनातनी चल रही है। दोनों विधायकों ने पार्टी छोडऩे का फैसला ले लिया है, और दूसरी पार्टी के बड़े नेताओं से बातचीत भी चल रही है। विधायकों की दूसरी पार्टी के संगठन प्रभारी के साथ एक बैठक भी हो चुकी है। इस बात की जानकारी विधायकों ने अपने पार्टी के मुखिया को नहीं दी। इससे पार्टी मुखिया, विधायकों से खफा चल रहे हैं। चर्चा है कि एक विधायक के साथ तो गाली-गुफ्तार की भी नौबत आ गई थी। देर सवेर विवाद सडक़ पर आने की आशंका जताई जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
पतलून पर निशान की तस्वीर
भाजपा में नए-नए पद पाए एक नेता की तस्वीर वायरल हो रही है। वायरल तस्वीर में नेताजी की पैंट के ऊपरी भाग में दाग साफ-साफ दिख रहा है। हुआ यूं कि नेताजी के पद पाने की खुशी में एक नेता ने पार्टी रखी थी। पार्टी में सुरा, और चिकन-मटन समेत शाकाहारी-मांसाहारी व्यंजन थे। नेताजी और साथियों ने पार्टी का खूब लुत्फ उठाया। किसी तरह लडखड़़ाते हुए नेताजी उठे, तो चिकन की तरी पैंट में निशान छोड़ गई। नेताजी ने मेजबान को निराश नहीं किया, और उसी हालत में फोटो खिंचवा ली। फोटो वायरल हुआ, तो विरोधी इसका उपहास उड़ाने लगे। नेताजी समर्थक सफाई दे रहे हैं कि पैंट पहले से ही मैली थी। खैर, पार्टी के भीतर नेताजी के इस फोटो की खूब चर्चा हो रही है।
ग्यारह बरस की उम्र में...
शहरी और संपन्न परिवारों में अगर किसी की 11 बरस की बेटी हो, तो उसके लिए कपड़े लाने, उसके शौक पूरे करने, और उसकी तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट करने से ही लोग खुश होते रहते हैं। लेकिन सरगुजा के एक देहाती परिवार में एक बाप ने लाठी से पीट-पीटकर 11 बरस की बेटी को मार डाला क्योंकि वह कुछ दिनों से खाना नहीं बना रही थी। घर पर सौतेली मां थी, न उसने बचाया, और न बच्ची के मर जाने के बाद किसी को खबर की। बाप ने लाश ले जाकर जंगल में पेड़ से टांग दी, और खुद ही जाकर पुलिस में रिपोर्ट कर दी। हफ्तों बाद जब यह लाश बरामद हुई तो पुलिस ने शक के आधार पर मां-बाप से सख्ती से पूछा, तो उन्होंने जुर्म कुबूल किया। बेटियां अपने पिता को सबसे अधिक प्यारी मानी जाती हैं, लेकिन हर बेटी की ऐसी किस्मत नहीं होती। ग्यारह बरस की उम्र में किसी वजह से घरेलू काम न करने पर, मां-बाप के लिए खाना न पकाने पर, बैलों को चारा न देने पर जिस बच्ची को पिट-पिटकर मरना पड़ता हो, उस देश-प्रदेश में सामाजिक इंसाफ की भला क्या बात हो सकती है।
साव के लिए अदद सीट की तलाश...
भाजपा ने ऐसे जिला अध्यक्षों और प्रदेश पदाधिकारियों को संगठन का पद छोडऩे के लिए कहा है जो विधानसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। पर नव-नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को लेकर कहा जा रहा है कि वे संगठन में रहते हुए भी लड़ाए जा सकते हैं। कम लंबी राजनीतिक यात्रा होने के बावजूद साव को भी अब पार्टी के भीतर अगले मुख्यमंत्री पद का एक दावेदार माना जाने लगा है। खासकर साहू समाज जिससे साव आते हैं, ने बड़ी उम्मीद कर रखी है। कांग्रेस से ताम्रध्वज साहू का नाम बीते विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए चला था, लेकिन बन नहीं पाए। समाज के कुछ लोगों का मानना है कि इसकी भरपाई भाजपा करेगी। चर्चा में है कि प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए साव का ऐसी सीट से खड़ा किया जाएगा, जहां जीतने के लिए अधिक भाग-दौड़ करने की जरूरत न पड़े और संगठन का काम चलता रहे। ऐसा बिलासपुर और मुंगेली जिले की सीटों में ही मुमकिन है। एक उनका गृह जिला है, दूसरे से वे सांसद हैं। मुंगेली जिले की लोरमी सीट पर धर्मजीत सिंह ठाकुर हैं। उन्होंने पिछला चुनाव 25 हजार वोटों से जीता था। इस समय उनकी भाजपा में जाने की चर्चा जोर पकड़ी हुई है। साव जहां से निकले हैं, वह लोरमी इलाके में ही आता है पर धर्मजीत सिंह यदि भाजपा में शामिल होते हैं तो भी इस सीट से लडऩे की शर्त रखेंगे। तखतपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी हर्षिता पांडेय की कम अंतर से हार हुई थी। अगली बार फिर टिकट मिलने की उम्मीद में वे क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। वे भाजपा के कद्दावर नेता व मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री रहे स्व. मनहरण लाल पांडेय की पुत्री हैं। यह उनकी पारंपरिक सीट रही। एक सीट बिल्हा है, जहां एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस को जीतने का मौका मिलता है। यहां से पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने भारी अंतर से पिछला चुनाव जीता। वरिष्ठ हो चुके मौजूदा नेताओं को अगली बार खड़ा नहीं करने की नीति पर भाजपा ने काम किया तो उनकी दावेदारी पर संकट आ सकता है। यही स्थिति बिलासपुर की है। यहां अमर अग्रवाल करीब 10 हजार मतों से हार गए थे। पर इन दोनों की टिकट कटने से उनके समर्थकों की प्रतिक्रिया से पार्टी को नुकसान भी हो सकता है। कोटा सीट से भाजपा कभी जीत नहीं पाई, पर कई बार बहुत कम अंतर से हारी। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की डॉ. रेणु जोगी इस समय यहां से विधायक हैं। चर्चा यह भी है कि कुछ दावेदारों की पारंपरिक सीट बदलने का प्रयोग कर साव के लिए कोई सुविधाजनक जगह बनाई जाएगी।
इससे तो बेहतर रद्द ही कर दें ट्रेन...
गौर से देखिये...पूरी बोगी खाली नहीं है। एक यात्री इसमें बैठा हुआ है। यह रायगढ़ से गोंदिया जा रही जनशताब्दी एक्सप्रेस की तस्वीर है। ऐसी कुछ और बोगियों में भी गिनती के यात्री हैं। न तो कर्फ्यू है न कोरोना, फिर यह स्थिति क्यों? दरअसल यात्री ट्रेनों को घंटों देर से चलाया जा रहा है। कम दूरी की ट्रेनों की तो हालत और बुरी है। चार घंटे का सफर आठ घंटे में तय हो रहा है। कोई माई-बाप नहीं। किसी भी जगह रोक दी जा रही है। ऐसी ट्रेनों का रद्द होना या नहीं होना एक बराबर है। लोग या तो अपनी यात्रा टाल रहे हैं या फिर दूसरे विश्वसनीय साधनों को पकड़ रहे हैं। ट्रेनों को रद्द करने के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है, रेल मंत्री का पुतला भी फूंका जा रहा है। मगर, स्थिति इतनी गंभीर है कि अब ट्रेनों को समय से चलाने के लिए भी आंदोलन की जरूरत महसूस की जा रही है।
पढ़ाने का तरीका समझते शिक्षक..
स्वामी आत्मानंद स्कूलों में जिन शिक्षकों की भर्ती हो रही है, उनका शैक्षणिक रिकॉर्ड अच्छा है। मेरिट लिस्ट के आधार पर ही लिया गया है, पर पढ़ाने का ट्रैक कैसा है? शायद उन्हें शून्य से शुरू करना होगा। खुद पढऩे में निपुण होना और दूसरों को ठीक तरह से पढ़ा पाना- दोनों में फर्क है। यदि शिक्षक ठीक तरह से नहीं पढ़ा पाए तो उत्कृष्ट विद्यालयों का रिजल्ट तो उत्कृष्ट आने से रहा। इस समस्या का समाधान बलरामपुर जिले में वहां के कलेक्टर विजय दयाराम ने निकाला है। इन स्कूलों में नियुक्त किए गए शिक्षकों की क्लास ली जा रही है। क्लास लेने वाले लोग हैं कॉलेजों के लेक्चरर, प्रोफेसर। आत्मानंद स्कूलों के शिक्षकों को लग रहा है कि यह ठीक भी है। अनुभवी प्रोफेसर, लेक्चरर पढ़ाने का जो गुर उन्हें सिखा रहे हैं, उसका प्रयोग वे अपने बच्चों के साथ करेंगे।