राजपथ - जनपथ
फेरबदल एक साथ, बड़ा जोखिम...
प्रदेश की सत्ता दोबारा हासिल करने के लिए भाजपा ने संगठन के स्तर पर जिस तेजी से बदलाव किया है उसे लेकर पार्टी के अंदरखाने में सवाल खड़े हो गए हैं। कई लोग पूछ रहे हैं, आखिर यह हो क्या रहा है? प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश प्रभारी सब बदल दिए गए। प्रदेश कार्यकारिणी की पहली सूची में कई बड़े चेहरे या उनके करीबी नाम बाहर कर दिए गए।
यह जरूर है कि 2018 के चुनाव में जिन स्थापित नेताओं को जिम्मेदारी मिली, उन्होंने 65 सीट निकाल लेने की गलत फीडबैक दी थी। इसके बावजूद पार्टी चलाने का उनका अनुभव लंबा है और जमीनी स्तर पर पकड़ बनी हुई है। जितनी कम सीटें सन् 2018 में मिली वह हैरान करने वाली तो थी पर तीन कार्यकाल पूरा होने के बाद की एक स्वाभाविक एंटी इंकमबेसी भी थी। जनता ने सबक सिखाया है पर हमेशा के लिए उन्हें खारिज कर दिया यह मान लिया गया है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि हो सकता है कि शीर्ष संगठन ने गुजरात और दूसरे अन्य राज्यों के अनुभव के आधार पर ऊपर से नीचे तक एक सिरे से बदलाव का फैसला लिया हो, पर छत्तीसगढ़ में भी यह तरीका कामयाब ही होगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता। चेहरा बदलकर हम ने ओबीसी फैक्टर का तोड़ निकालने की कोशिश तो की है पर ज्यादातर इसी वर्ग से आने वाले किसान और मजदूर तबके में असंतोष की पहचान किए बिना बात नहीं बनेगी।
लंबी फेंक तो नहीं आए मरकाम...
50 किलोमीटर चलते हैं एक दिन में। हम लोग दंतेवाड़ा जाते हैं माई के दर्शन के लिए तो 170 किलोमीटर तीन दिन में पूरा कर लेते हैं। अभी आजादी गौरव यात्रा में भी हम 100-100 किलोमीटर चले हैं। अभी दो अक्टूबर को हम लोग भी छत्तीसगढ़ में भारत जोड़ो यात्रा शुरू करेंगे...। चाय की चुस्की लेते राहुल गांधी इत्मीनान से छत्तीसगढ़ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की बात सुन रहे हैं, फिर सिर हिलाते हुए कहते हैं- 50 तो बहुत होता है। भारत जोड़ो यात्रा में दो दिन पहले मरकाम शामिल हुए और उन्होंने राहुल गांधी और अन्य पदयात्रियों के साथ चाय पी। इसका वीडियो खुद मरकाम ने सोशल मीडिया पर डाला है।
वैसे जानकार बताते हैं कि अभ्यस्त हो तो एक सामान्य व्यक्ति एक घंटे में 5 से 6 किलोमीटर चल सकता है। यानि यदि मरकाम 170 किलोमीटर की यात्रा तीन दिन में पूरी कर लेते हैं तो रोजाना 8 से 10 घंटे चले। एक दिन में 50 से 60 किलोमीटर चला जा सकता है, पर लगातार, बिना विश्राम किए। पर ऐसी पदयात्रा जिसमें जगह-जगह स्वागत हो, यह मुश्किल है। फिर कई लोग यात्रा में ऐसे भी होते हैं जो पैदल चलने के आदी नहीं होते। शायद इसीलिए सोमवार की रिपोर्ट है कि राहुल गांधी 6 दिन में 100 किलोमीटर का सफर पूरा कर पाए।
देश में जब अचानक लॉकडाउन लगा तो लोग हजारों की संख्या में सडक़ों पर पैदल निकल पड़े थे। उन्होंने एक दिन में 50-60 किलोमीटर यात्रा की, वह भी बच्चों को गोद में लिए और पीठ पर सामान लादकर।
दो अक्टूबर से प्रदेश कांग्रेस भी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है, उनके साथ चलने वालों को अभी से इतना अभ्यास कर लेना चाहिए ताकि मरकाम के साथ कदम मिलाते हुए हर दिन 50-60 किलोमीटर चल सकें।
नो मोर हमदर्दी प्लीज..
कोई हाथ में प्लास्टर बांधे इस तरह दफ्तर, बाजार पहुंचे तो जो कभी हाय, हैलो नहीं करता, वह भी सहानुभूति जताने के लिए ठहर जाता है। उसे लगता है, दुर्घटना के बारे में पूछताछ नहीं करने से वह बुरा मान जाएगा, देखो उसे मेरी फिक्र भी नहीं। दिलचस्पी यह भी रहती है कि कहीं ये मारपीट, लड़ाई-झगड़े में तो नहीं उलझ गए थे। पर सामने वाला सबको जवाब देते-देते परेशान हो जाता है। कुछ ऐसी ही हालत इनकी हो गई। इसीलिए उन्होंने फै्रक्चर की पट्टी पर एक पर्ची चटका दी...और कोई सवाल कृपया मत करें। गिर गया था, टूट गया है..। चेहरा क्रॉप करने की वजह यह है कि शायद आप इन्हें तुरंत पहचान जाएं, और फिर उनसे सवाल पूछे बिना मानेंगे नहीं।