राजपथ - जनपथ
चुनाव में हैवी वेट को मौका !
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए सियासतदारों ने कमर कसना शुरू कर दिया है। टिकटार्थी जोड़-तोड़ में अभी से लग गए हैं। ऐसे ही एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सत्ताधारी दल के टिकटार्थी का आमना-सामना हुआ। इसमें अलग-अलग जिलों के निगम-मंडल के पदाधिकारी, मंत्री और प्रदेश पदाधिकारी शामिल थे। इनमें से एक मंडल के पदाधिकारी ने आयोग की एक महिला पदाधिकारी की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस बार केवल हैवी वेट ही उम्मीदवार बनेंगे ? दरअसल, महिला पदाधिकारी ने पिछले कुछ दिनों में अपना वजन काफी कम किया है। हैवी वेट का फार्मूला लाने वाले पदाधिकारी खुद भारी-भरकम डीलडौल वाले हैं, तो वे अपनी टिकट पक्की बता रहे थे। टिप्पणी करने वाले पदाधिकारी का कहना था कि चूंकि आपने वजन कम कर लिया है, इसलिए टिकट की दौड़ से बाहर हो गई हैं। लेकिन महिला पदाधिकारी मंत्री जी के साथ आई थीं, तो उन्होंने उनकी तरफ देखते हुए कहा कि आप चिंता न करें, हमारे पास हैवी वेट भी हैं। इतना सुनते ही मंत्री समेत सभी लोग ठहाका लगाने लगे। कुल मिलाकर महिलाएं यहां बाजी मारते दिख रही थीं। खैर, यहां तो हास-परिहास के अंदाज में टिकट का फार्मूला तय किया जा रहा था, लेकिन सियासत में तो हास-परिहास में कही गई बातों के भी मायने निकाले जाते हैं। इसका सिलसिला भी शुरू हो गया। जानकारों ने अपनी राय दी कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि चुनाव में हैवी वेट को ही मौका मिलेगा, लेकिन राजनीति में हैवी वेट का आशय काफी वृहद माना जाता है। अब यह तो समय ही बताएगा कि कौन-कौन हैवी वेट सियासी खिलाड़ी क्वालीफाई कर पाते हैं ?
अफसर का टेंशन
मुख्यमंत्री भेंट-मुलाकात के दूसरे चरण में मैदानी जिलों के विधानसभा क्षेत्रों के दौरे पर हैं। इस अभियान के कारण अधिकारी सर्वाधिक टेंशन में रहते हैं, क्योंकि कब कौन मुख्यमंत्री के सामने शिकायत कर दे और उनकी भृकुटी तन जाए, इसकी गारंटी तो रहती नहीं। पहले चरण का अनुभव भी यही रहा कि मुख्यमंत्री जनता के काम में बाधा डालने वाले अफसरों को स्पॉट में निपटा रहे थे। पहले चरण में एक बड़े अधिकारी के खिलाफ इधर शिकायत मिली और उधर उनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश जारी हो गया। बेचारे साहब को सफाई देने तक का मौका नहीं मिला। अब चूंकि मुख्यमंत्री के निर्देश पर आदेश जारी हुआ था तो कोई संशोधन की गुंजाइश भी नहीं थी। साहब ने मन मसोसकर अटैचमेंट में कुछ महीनों का समय़ काटा और जैसे-तैसे जिले में पोस्टिंग मिल गई। नई पोस्टिंग मिलने से थोड़ी राहत की सांस ली ही थी कि उनके जिले में मुख्यमंत्री के भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम जारी हो गया। अब साहब फिर टेंशन में कि बड़ी मुश्किल से तो पोस्टिंग मिली थी कहीं मामला न उलटा पड़ जाए। काश थोड़े दिन रूक गए होते। तरह-तरह के ख्याल मन में आ रहे थे। इस बीच मुख्यमंत्री पहुंचे तो किसी ने अधिकारी की शिकायत का पुलिंदा खोल दिया। अब साहब की हालत खराब हो गई, क्योंकि पिछली बार भी ऐसा ही कुछ हुआ था। साहब मुख्यमंत्री के जिले से उडऩे तक तनाव में थे कि कहीं आर्डर न निकल जाए। हालांकि मुख्यमंत्री शिकायत से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए कार्रवाई नहीं हुई। जबकि साहब ने तो बोरिय़ा-बिस्तर बांधने का मन बना लिया था। मुख्यमंत्री के उडऩे के घंटों बाद तक वे कभी मीडिया तो कभी अफसरों से फॉलोअप लेते रहे कि कही उनका पत्ता फिर से साफ न हो जाए। काफी देर तक कोई सूचना नहीं मिली तब उनके जान में जान आई।
काजू बाड़ी की तख्ती
अभी काजू का मौसम नहीं है। कोई अगर इस बाड़ी में घुस भी जाए तो क्या चुरा लेगा? पर चारों तरफ बाड़े के अलावा तख्तियां भी जगह-जगह लिखकर टांगी गई है। इसमें कहा गया है कि कोई भीतर प्रवेश करेगा तो उससे 500 रुपये जुर्माना देना होगा। खोजबीन करने पर पता चला कि इसे शराबखोरी का अड्डा बना लिया गया है। कुछ आपराधिक किस्म के लोगों का यहां डेरा जमा होता है। पता नहीं यह तख्ती कारगर साबित हुई या नहीं। तस्वीर घरघोड़ा- लैलूंगा मार्ग पर स्थित मस्कुरा गांव की है। गांव वाले बताते हैं कि पहले यहां इस तरह का खतरा नहीं था। पर पास में ही एक कोयला खदान खुल गई है तब से लोगों की आमदनी बढ़ गई है और शराब पीने के लिए जगह ढूंढने वालों की संख्या भी...।