राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ का पहला बैगा इंजीनियर
कबीरधाम जिले के मन्ना बेदी गांव के युवा भारत लाल विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय से आते हैं। वे ऐसे पहले बैगा नौजवान हैं, जिन्होंने संयुक्त इंजीनियरिंग परीक्षा (जेईई) की कठिन प्रतियोगिता में सफलता हासिल की। सन् 2018 में जब चयनित हो गए तो दाखिले के लिए फीस की व्यवस्था नहीं हो पाई। कवर्धा के सुधा देवी ट्रस्ट से मदद मिली और फीस जमा हो पाई। अब भारत की पढ़ाई पूरी हो गई है। उन्हें दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) से इंजीनियरिंग स्नातक डिग्री मिल गई है। पर, अफसोस की बात है कि इस पहले बैगा सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पास कोई रोजगार नहीं है। उसकी आर्थिक स्थिति खराब है। वे गांव वापस लौट चुके हैं और इन दिनों बच्चों को मुफ्त कोचिंग दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में 27 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ जनजाति सलाहकार परिषद् की बैठक हुई थी, जिसमें विशेष पिछड़ी जनजाति के सभी शिक्षित युवाओं का सर्वे कराकर पात्रता के अनुसार सरकारी सेवाओं में नियुक्ति देने का निर्णय लिया गया था। एक मोटा अनुमान भी लगा लिया गया था कि सरकार पर इस योजना से 346 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
जून के आखिरी सप्ताह में जशपुर जिले के बगीचा में मुख्यमंत्री का भेंट-मुलाकात कार्यक्रम हुआ था। इसमें मौजूद कोरवा बिरहोर जनजाति के युवाओं ने इस मुद्दे को उठाया था। मुख्यमंत्री ने इस योजना के बारे में उन्हें बताया था। अधिकारियों का कहना है कि सर्वे का काम शुरू किया जाएगा, सूची बनेगी फिर नियुक्ति होगी। ध्यान देने की बात है परिषद् के निर्णय को तीन साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है। शायद सर्वे अब तक पूरा नहीं पाया है। बैगा समुदाय से जेईई के जरिये सॉफ्टवेयर इंजीनियर तो पूरे प्रदेश में एक ही बन पाया है। इसमें किसी तरह के सर्वे की जरूरत क्यों होनी चाहिए? भारत लाल और राष्ट्रपति के बाकी पढ़े लिखे दत्तक पुत्रों तक इस योजना का लाभ पहुंचाने में इतनी देर क्यों होनी चाहिए?
प्रतिभाशाली भृत्य मिलेंगे...
सरकारी दफ्तरों में इस बार जो भृत्य तैनात होंगे, उन्हें एक अलग तरह से देखना होगा। रविवार को सामान्य प्रशासन विभाग के 80 तथा छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के 11 रिक्त पदों के लिए परीक्षा हुई। इसमें करीब 2 लाख 25 हजार लोगों ने आवेदन किया था। इनमें इंजीनियरिंग और पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री रखने वाले भी शामिल थे। दो लाख से अधिक प्रतिभागियों में से जिन 91 उम्मीदवारों को मौका मिलेगा वे अपने दफ्तर में साहबों से कह सकते हैं कि हम भी आप ही तरह कड़ी परीक्षा पास करके आए हैं, अदब से पेश आइये। सरकार ने पहली बार इस पद का महत्व समझा। जबकि यह सदा से बहुत खास रहा है। साहब की शान यही भृत्य होते हैं। घंटी बजे और साहब के कमरे में भृत्य हाजिर हो तो साहब, साहब हुए- वरना बाबू भी नहीं। आगंतुकों को किसी साहब से मिलने के लिए इनकी मेहरबानी पर निर्भर रहना पड़ता है। आप मुलाकात की पर्ची थमाएं और भृत्य, साहब के व्यस्त होने का हवाला देते हुए उन तक न पहुंचाए तब? करते रहिये घंटों इंतजार। फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल तक समय पर पहुंच जाए इसमें भी भृत्य से ही काम लेना पड़ता है। वैसे बहुत से बेरोजगारों ने इसलिए भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया ताकि उन्हें पीएससी की दूसरी परीक्षाओं का अभ्यास हो जाए। [email protected]