राजपथ - जनपथ
कौन किसका प्रवक्ता?
छत्तीसगढ़ में चल रहे ईडी के छापों को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है कि खुद ईडी ने जो प्रेस नोट जारी नहीं किया है, वह भूतपूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह के ट्विटर पेज पर कैसे आ गया। आज सुबह तक यह प्रेस नोट न तो ईडी की वेबसाइट पर था, और न ही ईडी के ट्विटर पेज पर। लेकिन बीती रात नौ बजे के पहले रमन सिंह ने यह प्रेस नोट पोस्ट किया जिसके ऊपर से ईडी की सील कटी हुई थी, रमन सिंह की लिखी टिप्पणी में भी ईडी का जिक्र नहीं था, लेकिन प्रेस नोट ईडी का दिख रहा था। अब देश की एक सबसे बड़ी जांच एजेंसी अगर इतनी बड़ी जांच के दौरान भी औपचारिक प्रेस नोट जारी नहीं करती है तो कई तरह की सही और गलत जानकारी हवा में तैरने लगती है। लोग सोच-समझकर भी झूठ फैलाने लगते हैं, और कुछ लोग मासूमियत में भी गलत बातें लिख बैठते हैं। इसलिए जांच एजेंसियों को समय-समय पर सही जानकारी औपचारिक रूप से जारी करनी चाहिए। आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसे ही प्रेस नोट को लेकर रमन सिंह को ईडी का प्रवक्ता करार दिया है।
सत्यम का सत्य बाहर आने दें...
तेलंगाना में कांग्रेस से जुड़े केजी सत्यम की अन्य नक्सलियों के साथ हुई गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस और भाजपा में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला चल निकला है। पूर्व मंत्री महेश गागड़ा कह रहे हैं कांग्रेस नक्सलियों को पार्टी की सदस्यता दे रही है। उन्हें बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी का करीबी भी बताया गया।
जवाब में मंडावी ने वे नाम गिना दिए जो भाजपा से जुड़े हैं और नक्सली गतिविधियों में शामिल पाए गए हैं। इस मुद्दे पर उठ रहे सवालों पर सबसे गंभीर प्रतिक्रिया प्रभारी मंत्री होने के नाते कवासी लखमा की ओर से आनी चाहिए लेकिन उनका बयान अजीब रहा। गिरफ्तारी के बाद प्रतिक्रिया दी कि चार दिन पहले सत्यम का अपहरण कर लिया गया था। यह बयान शायद ही किसी के गले उतरे। वजह ये कि यदि छत्तीसगढ़ से किसी पार्टी कार्यकर्ता को अगवा किया गया तो पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज कर खोजबीन शुरू क्यों नहीं की। पुलिस को शिकायत लखमा के बयान के बाद हुई है, जब तेलंगाना से गिरफ्तारी की खबर चलने लगी। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही ऐसे दल हैं जिनके पास हजारों कार्यकर्ता हैं। एक-एक कार्यकर्ता की गतिविधि पर निगरानी नहीं रखी जा सकती। यदि किसी पर नक्सलियों से मिले होने का आरोप लगता है तो बजाय सच्चाई सामने आने देने के, उसका बचाव करने में लग जाना कहां की समझदारी है।
अबूझमाड़ का यह खास थाना
बस्तर के सबसे अंदरूनी इलाकों में से एक अबूझमाड़ का कोहकामेटा थाना इस समय सुर्खय़िों में आ गया है। 80 के दशक में जब माओवादियों का प्रभाव बस्तर में बढऩे लगा और वारदात करके अबूझमाड़ के भीतरी घने जंगलों में छिपने लगे, तब कोहकामेटा में एक पुलिस चौकी खोली गई। मगर माओवादियों का दबाव बढ़ा और सुरक्षा बलों को पीछे हटना पड़ा। सन 1984 के बाद यहां चौकी बंद कर सुरक्षा बलों के कैंप लगाए गए। आइटीबीपी के जवानों को नवंबर 2018 से तैनात किया गया। इस बीच नक्सली मोर्चे के अलावा सडक़, पानी, बिजली और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया गया। एक जनवरी 2020 को फिर से यहां थाना खोल दिया गया। अब यह बस्तर का सबसे शांत थाना है। ऐसा नहीं है कि इस इलाके से माओवादी पूरी तरह उखड़ चुके हैं। अभी भी यहां पर कई संगठन सक्रिय हैं पर पुलिस जवान उन पर भारी पड़ रहे हैं। हाल ही में यहां के दुर्गम इलाकों में सौर ऊर्जा से चलने वाले जीओ के मोबाइल टावर लगाए गए। इससे सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में भी मदद मिली है। पुलिस सुरक्षा के बीच यहां साप्ताहिक बाजार में लग रहे हैं। एक दूसरे बड़े गांव सोनपुर में पुलिस का बेस कैंप भी बनाया जा चुका है। प्रदेश के तीन पुलिस थानों को कलेक्टर एसपी कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उत्कृष्टता का खिताब दिया, उनमें से दुर्ग के पाटन और रायगढ़ के कोतवाली के बारे में तो सबको पता है लेकिन एक वक्त नक्सली बेस बने अबूझमाड़ में पुलिस थाने का बेहतर संचालन होना अलग मायने रखता है।
पानी टंकी में भालू
कांकेर नगर में घूम रहे दो भालुओं का ध्यान गया कि यहां की पानी टंकी के ऊपर मधुमक्खियों का छत्ता है। शहर चखने के लालच में उन्होंने जोखिम उठाया और सीढिय़ों के रास्ते ऊपर चढ़ गए। जैसे ही उन्होंने छत्ते को छेड़ा, मधुमक्खियों का झुंड उन पर टूट पड़ा। वे उल्टे पांव नीचे भागे। पूरी घटना वीडियो में भी कैद हो गई। यहां मधुमक्खियों से बचकर भालू नीचे तो सुरक्षित तो उतर आए, पर इस आरईएस कॉलोनी के लोगों में इन भालुओं की अक्सर धमक हो जाने से डर बना रहता है।
साइबर ठगी का त्यौहार
दीपावली पर एकाएक ऑनलाइन शॉपिंग वाले साइट्स बढ़ गए हैं। इनमें 70-75 प्रतिशत तक छूट का दावा किया जाता है। लोग झांसे में आ रहे हैं और एडवांस ऑनलाइन पेमेंट कर रहे हैं। उसके बाद सामान की डिलवरी ही नहीं हो रही है। वेबबायमाल, स्कैम एडवाइजर जैसे कुछ साइट्स का अनुभव लोगों ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है और बताया है कि उन्होंने सामान का ऑर्डर दिया, ऑनलाइन भुगतान भी कर दिया लेकिन सामान की डिलिवरी नहीं की गई। पोर्टल पर शिकायत दर्ज करने का विकल्प भी दिखाई नहीं दे रहा है। न ई मेल और न ही कोई फोन नंबर या पता। छत्तीसगढ़ में भी कई लोग इस तरह की ठगी के शिकार हो चुके हैं। इनकी रकम ज्यादा बड़ी नहीं है इसलिये पुलिस में शिकायत नहीं पहुंची है।