राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ग्राम पंचायत ने दिखाई है राह
27-Oct-2022 3:31 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ग्राम पंचायत ने दिखाई है राह

ग्राम पंचायत ने दिखाई है राह

छत्तीसगढ़ में शराबबंदी एक बड़ा मुद्दा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शराबबंदी का वायदा करके सरकार में आई थी, और उसके बाद से अब तक इसके लिए बनाई गई सत्यनारायण शर्मा कमेटी साल-छह महीने में एकाध बैठक कर लेती है, और बात आई-गई हो जाती है। भाजपा भी कांग्रेस को शराबबंदी की उसकी घोषणा याद दिलाते हुए उसे बीच-बीच में कोंचती रहती है, लेकिन उसमें भी इतना राजनीतिक साहस नहीं है कि वह अगले चुनाव के बाद शराबबंदी करने की घोषणा अभी से कर सके। कांग्रेस के लिए तो अगला चुनाव जीतने की संभावना बढ़ाने के लिए चुनाव के कई महीने पहले से पूरी शराबबंदी कर देना जरूरी होगा क्योंकि पिछला वायदा उसने अभी तक पूरा नहीं किया है, लेकिन भाजपा तो आज से अगर सिर्फ घोषणा कर दे, तो उससे भी उसकी चुनावी संभावनाएं बढ़ जाएँगी। अब ऐसे माहौल में बेमेतरा जिले की एक ग्राम पंचायत ने अपने गांव में शराबबंदी कड़ाई से लागू की है। इसमें शराब बेचते हुए पाए जाने पर 51 हजार रूपये का जुर्माना रखा गया है, शराब खरीदते पाए जाने पर 21 हजार रूपये, बताने वाले को 10 हजार रूपये का ईनाम, और खुलेआम शराब पीते पकड़ाने पर 5 हजार का जुर्माना रखा गया है। ऐसे शराबियों की खबर देने वालों के लिए एक हजार रूपये का ईनाम भी रखा गया है। लोगों को याद होगा कि केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कुछ हफ्ते पहले यह घोषणा की थी कि केन्द्र सरकार ऐसा कानून बनाने जा रही है कि ट्रैफिक नियम तोडऩे वालों की खबर देने पर चालान से जो जुर्माना मिलेगा, उसका एक हिस्सा ऐसे खबरची लोगों को भी मिलेगा। इस अखबार ने इस घोषणा के समर्थन में लिखा भी था कि सडक़ों पर नियम तोडऩे वालों की तस्वीरें और वीडियो बनाकर भेजने वालों को जुर्माने का एक हिस्सा मिलना चाहिए। बेमेतरा की इस ग्राम पंचायत ने यह शुरू भी कर दिया है, और जुर्माने का एक हिस्सा ईनाम की शक्ल में देने से लोगों में भी जागरूकता आ सकती है, और भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था के बजाय निर्वाचित पंचायत ऐसे पुरस्कृत होने वाले जनसहयोग पर अधिक निर्भर कर सकती है। अब देखना है कि आगे कितनी और ग्राम पंचायतें इस तरफ आगे बढ़ती हैं। (फोटो सोशल मीडिया से)

एमपी के मंत्री इसलिये नंगे पांव...

सरकार का हिस्सा बन जाने के बाद जनता की तकलीफें दिखाई तो देती है पर उसे स्वीकार करना मुश्किल होता है। सत्ता पक्ष के विधायक कभी-कभी सरकार की नाकामी को सामने ला भी दें पर मंत्री ऐसा नहीं करते। इधर पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के एक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने ऐलान किया है कि जब तक ग्वालियर शहर की सडक़ें दुरुस्त नहीं हो जाती, वे जूते-चप्पल नहीं पहनेंगे। तोमर ने इस पर अमल भी कर दिया है। उनका कहना है कि सरकार ने फंड जारी कर दिया है पर अफसर काम नहीं करा रहें। ग्वालियर शहर में  सडक़ों की हालत बेहद खराब है। बार-बार कहने के बाद भी अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं। अब वहां सडक़ों की मरम्मत का काम तेजी  से हो रहा है।
दूसरी ओर छत्तीसगढ़ है,जहां सडक़ों के अलावा कानून व्यवस्था, अवैध रेत उत्खनन जैसे कई गंभीर मामले हैं, जिन पर सत्ता से जुड़े विधायकों को कोई मजबूरी बोलने से रोकती है। मध्यप्रदेश की इस खबर से दो बातें निकलकर आती हैं। एक तो चुनाव पास आने के कारण जनप्रतिनिधियों को नागरिकों की नाराजगी दूर करने की चिंता बढ़ रही है। दूसरी बात छत्तीसगढ़ की तरह ही मध्यप्रदेश में भी अफसरों की मनमानी से नेता परेशान हैं।

धान के किसान बढ़ते ही जा रहे

एक नवंबर से शुरू हो रही धान खरीदी के पहले जो आंकड़ा सामने आया है उससे यह बात निकलकर बाहर आ रही है कि हर साल लगभग 1 लाख किसानों की संख्या बढ़ रही है। इस बार 95 हजार नए किसानों ने धान बेचने पंजीयन कराया है। अब पिछले साल के 24 लाख 05 हजार की जगह 25 लाख किसान हो गए हैं। यह तब हो रहा है जब धान की जगह दूसरी फसलों को प्रोत्साहित करने की कई योजनाओं पर सरकार ने काम किया और लगातार धान की खेती का रकबा घटाया गया। बीते चार सालों में 9 लाख हेक्टेयर से अधिक धान का रकबा कम किया गया। पर इन्हीं चार सालों में हर साल किसानों की संख्या बढ़ रही है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि परिवार में बंटवारा होने के बाद किसान अलग-अलग पंजीयन करा रहे हों लेकिन रकबा के साथ-साथ खरीदी का लक्ष्य भी बढ़ रहा है। इस बार 110 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी की जानी है, जो बीते साल के मुकाबले करीब 17 लाख मीट्रिक टन हेक्टेयर अधिक है। यह स्थिति तब है जब फसल चक्र परिवर्तन के लिए रबी-खरीफ की लगभग हर फसल पर प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। समर्थन मूल्य भी इन फसलों पर घोषित किया गया है, ताकि बाजार न मिलने पर सरकार ठीक दाम पर खरीदने की गारंटी दे सके। दरअसल, धान की खेती के साथ किसानों को पीढिय़ों से जमा हुआ भरोसा है। इसके लिए उन्हें किसी प्रशिक्षण की अलग से जरूरत नहीं होती। कब जोताई करनी है, बीज डालना है, खाद का छिडक़ाव करना है और कब कटाई करनी है। सरकारी खरीदी और उसके साथ बोनस के चलते किसी बाजार में उन्हें भटकना नहीं पड़ता। यह मानी हुई बात है कि दूसरी फसलों में धान से अधिक आमदनी है। दूसरी फसलों के लिए प्रोत्साहन राशि और समर्थन मूल्य की गारंटी होने के बाद भी किसान तैयार नहीं हो रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि उन्हें कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी फील्ड पर जाकर परामर्श नहीं दे रहे। बीते साल मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने कलेक्टरों के लिए आदेश निकाला था कि धान की उपज लेकर भी कम आमदनी पाने वाले किसानों के साथ बैठकर वे चर्चा करें और संवाद कायम कर दूसरी फसलों के फायदे बताएं। पर अब तक सुनाई नहीं दिया कि किसी कलेक्टर ने ऐसी कोई पहल की हो।

अब खडग़े से उम्मीद...

संविदा, अनियमित और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी धरना प्रदर्शन और आंदोलन के बाद भी चुनावी वादा पूरा नहीं होने के कारण सरकार से नाराज चल रहे हैं। अब उनकी उम्मीद कांग्रेस के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े पर आ टिकी है। उनको सोशल मीडिया पर बधाई देने के साथ-साथ वे पोस्टर, कतरन डालकर मांग कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार को उनका चुनावी वायदा निभाने के लिए कहें। खडग़े उनकी मांग सुनें न सुनें लेकिन इस बहाने राज्य सरकार का ध्यान खींचने का एक और मौका कर्मचारियों को मिल गया है। मांगों को जिंदा रखना और दबाव बनाए रखना जरूरी है, खासकर तब जब विधानसभा चुनाव धीरे-धीरे करीब आ रहे हों।

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