राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मुख्यधारा में आने मशक्कत
09-Nov-2022 4:17 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मुख्यधारा में आने मशक्कत

मुख्यधारा में आने मशक्कत

भूपेश सरकार के कार्यकाल को दस माह बाकी रह गए हैं। इन सबके बीच पुलिस और प्रशासन में फेरबदल की गुंजाइश बनी हुई है। ऐसे में लूप लाइन में तैनात कई अफसर मुख्य धारा में लौटना चाहते हैं, और इसके लिए कुछ प्रयास भी कर रहे हैं।   सुनते हैं कि एक आईपीएस अफसर ने पिछले दिनों सरकार के ताकतवर मंत्री से मुलाकात की। आईपीएस अफसर को पिछली सरकार में अहम पदों पर रहे हैं। उन्हें कई विशेष प्रकरणों की जांच का भी जिम्मा दिया गया था, लेकिन सरकार बदलते ही  बुरे दिन शुरू हो गए। रमन सरकार के कई करीबी अफसर, तो सरकार में एडजेस्ट हो गए, लेकिन इस आईपीएस के दिन अब तक नहीं फिर पाए। वो अभी भी नक्सल इलाकों में पदस्थ हैं। अब आईपीएस को मंत्रीजी से अपनी वापसी का भरोसा है। मंत्रीजी अफसर की कितनी मदद कर पाते हैं, यह देखना है।  

चुनाव देखकर बढ़ाई सक्रियता

विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा के लोग स्मार्ट सिटी में अनियमितताओं की सुध ले रहे हैं। एक के बाद एक खुलासे कर रहे हैं। इससे पहले तक अनियमितताओं को लेकर भाजपा के नेता गंभीर नहीं रहे। बताते हैं कि वृक्षारोपण में भी भारी गड़बड़ी हुई है। वृक्षारोपण के लिए स्मार्ट सिटी मद से 2 साल से करीब 7 करोड़ से अधिक फूंक दिए गए। बड़े भाजपा नेताओं के पास इस विषय को प्रमुखता से उठाने के लिए दबाव भी बनाया गया, लेकिन आगे बात नहीं बढ़ पाई। यह पता चला कि पौधों की सप्लाई का काम जिस व्यक्ति को दिया गया था वह भाजपा से जुड़ा था। बाद में वह गुजर गया। इसके बाद प्रकरण की जांच का विषय ही ठंडे बस्ते में चला गया।

अफवाहों का बाजार गर्म

छत्तीसगढ़ ईडी की जांच की आंच से तप रहा है। अब तक तो सरकारी अफसर और सरकार के साथ लगातार काम करने वाले कारोबारियों की गिरफ्तारी और जांच चल रही थी, लेकिन अब दूसरे बड़े उद्योगपतियों को बुलाकर पूछताछ की जा रही है, उनके बयान लिए जा रहे हैं। उद्योगपतियों के घेरे में आने से राज्य के उद्योग-व्यापार में एक खलबली मची हुई है, और कारोबार के लोगों का यह कहना है कि जैसी चर्चा है, अगर पचास से अधिक उद्योगपतियों से पूछताछ होती है, तो उस खलबली में काम-धंधा ठप्प हो सकता है। अभी यह साफ नहीं है कि इन उद्योगपतियों का जांच के निशाने पर चल रहे मामलों में कैसा किरदार था, लेकिन ईडी की जांच, और उसके लिए गए बयान अदालत में दिए गए बयान सरीखे होते हैं, इसलिए भी उद्योगपतियों में हड़बड़ाहट अधिक है, वरना इतने बड़े तमाम उद्योग इंकम टैक्स के छापे तो झेले हुए रहते ही हैं, ईडी का कानून अधिक कड़ा है, उसके अधिकार बहुत बड़े हैं, और कारोबारी दहशत में हैं।
ऐसी दहशत के बीच अफवाहों का बाजार बहुत गर्म है, और बीती शाम रायपुर में यह हल्ला उड़ा कि एयरपोर्ट पर एक विशेष विमान आकर उतरा है। लोगों ने अपने-अपने पहचान के अफसरों से इस बारे में सवाल किए, और अफसरों की आपसी बातचीत में उन्हें यह पता लगा कि दर्जनों और लोग भी ऐसे ही किसी विमान के बारे में पूछ रहे हैं। बड़े पैमाने पर फैली यह अफवाह, अफवाह ही साबित हुई, और एयरपोर्ट के रिकॉर्ड में दर्ज हुए बिना कोई उड़ान न तो आ सकती है, न जा सकती है, इसलिए यह अफवाह तेजी से अफवाह साबित हो सकी। लेकिन आज सुबह से जिस तरह कुछ लोगों पर इंकम टैक्स के छापे पड़े हैं, और ईडी में जिस तरह कुछ दिनों से लगातार उद्योगपतियों की पूछताछ जारी है, उससे सनसनी फैली हुई है, जो कि कम होने का नाम नहीं ले रही।

भूपेश का बड़ा सवाल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ईडी को जो चि_ी लिखी है, उससे पिछली भाजपा सरकार के लंबे कार्यकाल को कटघरे में खड़ा किया गया है। अब छत्तीसगढ़ के कुख्यात नान घोटाले के पत्तों और फूलों की जांच की जाए, डालों तक को खंगाला जाए, तने को टटोला जाए, या फिर जड़ों को भी खोदा जाए, यह सवाल खड़ा हो गया है। भ्रष्टाचार तो हुआ है, लेकिन उसकी जांच कबसे शुरू की जाए, यह मुद्दा भूपेश बघेल ने ईडी के सामने औपचारिक रूप से रख दिया है। अब भला इस बात से कौन इंकार कर सकते हैं कि भ्रष्टाचार अगर बहुत लंबा है, तो उसकी जांच जड़ों तक जानी ही चाहिए, चाणक्य के बारे में भी कहा जाता था कि वे जिसे नष्ट करना चाहते थे, उसकी जड़ों मेें मठा डालते थे ताकि वह जड़़ से ही खत्म हो जाए। अब भूपेश बघेल ने जमीन में छेद करके कई बरस पुरानी जड़़ों तक मठा डाला है, यह देखने की बात होगी कि ईडी भ्रष्टाचार के इस विशाल वृक्ष की जांच में कितने नीचे तक पहुंचती है। कल शाम एक दिलचस्प बात यह रही कि भूपेश बघेल के आसपास के जिन लोगों की सलाह ऐसी चि_ी के पीछे मानी जा रही थी, वैसे कुछ अफसरों और दूसरे लोगों का कहना था कि उन्हें तो चि_ी तब देखने मिली जब भूपेश बघेल के ट्विटर पेज पर उसे पोस्ट किया गया। अब पता नहीं यह बात सच है, या लोग अपने आपको ऐसी चि_ी से जुड़ा हुआ साबित होने से बचने के लिए ऐसा कह रहे हैं। फिलहाल भूपेश बघेल ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, और आगे देखना है कि इस पर होता क्या है।

सती की समाधि पर मेला

सती प्रथा गुजरे जमाने की बात नहीं है। इस पर रोक लगाने के लिए 1987 से कड़ा कानून बन तो चुका है पर अब भी जगह-जगह सती स्मारक बने हुए हैं। कई स्थानों पर जब प्रशासन ने सख्ती बरती तो कई सती मंदिरों को शक्ति मंदिर नाम दे दिया गया। पर, पूजा अर्चना होती है। सालाना उत्सव होते और मेले लगते हैं। बम्हनीडीह ब्लॉक के सिलादेही ग्राम में हसदेव नदी के तट पर पिछले साल से एक मेला लगना शुरू हुआ है। यहां पर एक बाबा ने करीब 7 साल तक साधना की, फिर रायगढ़ चले गए। उनको वापस बुलाने के उद्देश्य से पिछले साल से मेले का आयोजन किया जाने लगा। यहां तक तो ठीक है, पर इसी जगह को लेकर यह भी कथा प्रचलित है कि वर्षों पहले एक महिला ने अपने पति के साथ चिता पर जलकर जान दे दी थी। यहां समाधि है और जाहिर है वहां भी पूजा हो रही है। इस साल भी यहां पूर्णिमा के दिन से सप्ताह भर का मेला शुरू हुआ है। मेले के आयोजन में प्रशासन से पूरी मदद मिली। विधायक केशव चंद्रा भी इसमें शामिल हुए, जबकि इन दोनों का काम है कि सती प्रथा का महिमामंडन रोकें।

रेल लाइन पर फिर रेड सिग्नल

रायपुर से जगदलपुर की सीधी रेल लाइन का पहला 70 साल पहले हो चुका था। लगातार मांग के बाद एक कंपनी बस्तर रेलवे प्राइवेट लिमिटेड का गठन किया गया। इसमें एनएमडीसी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, इरकॉन इंटरनेशनल और छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को शामिल किया गया। इस कंपनी को 140 किलोमीटर लंबी रेल लाइन रावघाट से जगदलपुर तक तैयार करनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दंतेवाड़ा प्रवास के दौरान एमओयू हुआ था। अब मालूम हो रहा है कि बीआरपीएल ने केंद्र सरकार और रेलवे मंत्रालय को पत्र लिखा है कि कंपनी यह रेल लाइन पूरी नहीं कर पाएगी। इसे रेलवे से पूरा कराया जाए। कारण सामने नहीं आया है, पर बताया जाता है कि इसमें शामिल चारों उपक्रमों के बीच भारी खींचतान चल रही है। सेल ने पहले पूरी तरह हाथ खींचना चाहा, पर केंद्रीय इस्पात मंत्री को राज्य सरकार की ओर से लिखे गए पत्र के बाद उसने भागीदारी नहीं छोड़ी पर अपना शेयर कम कर दिया। बचे हुए शेयर एनएमडीसी को दिए गए, जिसके पास पहले से ही 43 प्रतिशत शेयर था, सेल के 9 प्रतिशत शेयर भी उसे ही दे दिए गए। यह भी मालूम हुआ है कि राज्य सरकार को बीआरपीएल ने कोई जानकारी नहीं दी है कि वह रेल निर्माण से पीछे हटना चाहता है। सीधे केंद्र को पत्र लिखा गया है। अब रेलवे के ऊपर है कि बीआरपीएल के इस प्रस्ताव को वह मानता है या नहीं। मान भी ले तो कब नए सिरे से काम शुरू होगा? फिलहाल तो 70 साल का इंतजार और पांच-दस साल बढऩे की स्थिति बन रही है।

[email protected]

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news