राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : महादेव का ऐसा अपमान!
14-Nov-2022 4:25 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : महादेव का ऐसा अपमान!

महादेव का ऐसा अपमान!

छत्तीसगढ़ में चल रहे ऑनलाईन सट्टेबाजी के महादेव ऐप का मामला खतरनाक मोड़ लेते दिख रहा है। एक केन्द्रीय एजेंसी लगातार इस मामले की जांच कर रही है, और छत्तीसगढ़ के एक बड़े सट्टेबाज पर अभी इंकम टैक्स का छापा भी पड़ा। ऐसा अंदाज है कि उसने सट्टे की कमाई के सैकड़ों करोड़ रूपये जमीन-जायदाद के धंधों में और कारखानों में लगाए हैं। लेकिन जांच इससे और आगे बढक़र कुछ बड़े अफसरों तक भी पहुंच रही है जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने पकड़ाए हुए सट्टेबाजों को छुड़वाने और उनका जब्त मोबाइल फोन वापिस करवाने का काम किया था जिसमें महादेव ऐप के बहुत सारे सुबूत थे। केन्द्रीय एजेंसियों का यह भी मानना है कि राज्य की पुलिस जिन बहुत छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ रही है, वह महज दिखावा है, क्योंकि उससे हजारों गुना अधिक रकम बैंक खातों में जमा हुई थी, जिसे महादेव के संचालकों ने हर शाम निकाल लिया था। जांच करने वालों से यह भी पता लगा है कि सट्टे पर लगाई गई रकम बैंक खातों से हर शाम निकाल ली जाती थी, और उन खातेदारों से रात में महादेव-संचालक कैश जमा कर लेते थे, उन्हें पांच फीसदी कमीशन देते थे।

अब हैरानी की बात यह है कि भगवान महादेव के नाम पर ऐसी खुली सट्टेबाजी करने वाले लोगों के खिलाफ किसी हिन्दू संगठन ने धार्मिक भावना आहत होने का जुर्म दर्ज नहीं कराया है। दूसरी तरफ अब तक जो नाम घोषित रूप से यह ऑनलाईन सट्टेबाजी चलाने में सामने आए हैं, उनकी जातियां और उनकी रिश्तेदारी भी जोडक़र देखी जा रही है कि सिरा कहां तक पहुंचता है।

असर दो दिन भी न रहा

रायपुर में हुआ एक बहुत बड़ा धार्मिक प्रवचन बड़ी भीड़ खींच रहा था। मुख्यमंत्री भी इसमें अपने मंत्री साथियों के साथ हो आए, और भाजपा के नेता तो वहां डेरा डाले हुए थे ही। दूसरी तरफ प्रवचन करने वाले अपनी धार्मिक बातों के बीच में राजनीतिक और साम्प्रदायिक बातें भी करते जा रहे थे, लेकिन मामला चूंकि भीड़ का था इसलिए उनकी इन बातों से असहमत नेता भी जाकर मत्था टेक रहे थे। धर्म और राजनीति में अब कोई विभाजन रेखा तो रह नहीं गई है इसलिए राजनीति में धर्म की बातें होती रहती हैं, धर्म में राजनीति की, और दोनों में मोटेतौर पर अधर्म की बातें होती हैं। इतने बड़े धार्मिक आयोजन के बाद होना तो यह चाहिए कि राजधानी रायपुर में जुर्म खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन इसी प्रवचन के इलाके गुढिय़ारी में एक नौजवान की ऐसे भयानक तरीके से गला काटकर और चाकू से गोदकर हत्या हुई है कि तस्वीर भी देखते न बने। भगवान के नाम का असर दो दिन भी कायम नहीं रह सका, शायद इसलिए भी कि प्रवचन के पीछे नीयत सिर्फ भगवान की भक्ति की नहीं थी, राजनीतिक भी थी।

पुरानी पेंशन योजना की राजनीति

काफी आसार दिखाई दे रहे हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम छत्तीसगढ़ के अगले चुनाव में एक अहम् मुद्दा बन जाएगा। आठ माह पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने जब इसे लागू करने की घोषणा की थी तो प्रदेश के 2.95 लाख कर्मचारियों के बीच मिठाईयां बंटी। पर अब तक यह लागू नहीं हो पाया। राज्य सरकार को पुरानी पेंशन स्कीम में करीब 140 करोड़ रुपये कम अंशदान देना पड़ेगा। इस तरह साल में करीब 1700 करोड़ रुपये की बचत होगी। 2004 से लागू नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों और सरकार के अंशदान की राशि शेयर बाजार में लगा दी जाती है और सेवानिवृत्ति के दिन उनकी जमा रकम के हिसाब से पेंशन तय कर दी जाती है। इस पर टैक्स भी देना होता है। आश्रितों का पेंशन जारी रखने का भी कोई प्रावधान नहीं है। जबकि पुरानी स्कीम में अंतिम मूल वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन और महंगाई भत्ते समय-समय पर होने वाले संशोधन के साथ मिलता है। मृत्यु के बाद आश्रित को भी 50 प्रतिशत पेंशन मिलता है। पर इसमें पेंच फंस गया है। केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के कह दिया कि कर्मचारियों के जमा पैसों पर राज्य सरकारों का अधिकार नहीं है। यह राशि नेशनल पेंशन स्कीम के तहत जमा है। जब तक यह राशि राज्य सरकार को नहीं मिलेगी, पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा पूरा नहीं किया जा सकेगा। राजस्थान, झारखंड और पंजाब में भी सरकारों की घोषणा के बावजूद यहीं पर मामला उलझ गया है। कई दूसरे राज्य भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करना चाहते हैं, पर केंद्र की असहमति आड़े आ रही है। दिलचस्प यह है कि खुद केंद्र सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का दबाव है। लोकसभा में पिछले सत्र में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड की ओर से बताया गया था कि पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं हो रही है। केंद्र सरकार अभी केवल नि:शक्त कर्मचारियों को इस दायरे में रखने जा रहा है। उत्तरप्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने पुरानी पेंशन स्कीम को अपने  घोषणा पत्र में शामिल किया था। हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में भी विपक्षी दलों ने इसका वादा किया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जब अगले साल चुनाव होने वाले हों, ओल्ड पेंशन स्कीम एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। कांग्रेस तो बच सकती है कि हमें केंद्र योजना को लागू नहीं करने दे रहा है। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को इसका जवाब ढूंढना होगा, क्योंकि कोई भी राजनैतिक दल कर्मचारियों को नाराज करना नहीं चाहता।

बाल दिवस पर सांस की दरकार...

  

रायपुर के एम्स के गेट नंबर एक के बाहर एक मां अपने बच्चे को पैरों से चलने वाले पंप से ऑक्सीजन पहुंचाकर जान फूंकती हुई नजर आई। उसने दो पेड़ों के सहारे अपने बच्चे के लिए पुरानी साड़ी का पालना बना रखा है। इसका पूरा परिवार फुटपाथ पर गुजर-बसर करता है। आजीविका के लिए बगल में एक ठेला लगाकर कुछ सामान बेचता है। डॉक्टरों ने बताया है कि उसे ब्रेन ट्यूमर और ब्लड कैंसर दोनों ही हैं। ( सोशल मीडिया से) [email protected]

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